
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे बुंदेलखंड की टीकमगढ़ विधानसभा सीट का अपना अलग मिजाज है। यहां भाजपा का दबदबा है, लेकिन हार-जीत में अहम भूमिका सपा और बसपा निभाती है। कभी प्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में शामिल टीकमगढ़ जिले में रेलवे लाइन के बाद विकास की रफ्तार थोड़ी बढ़ी है, लेकिन युवाओं के लिए रोजगार के साधन सपने जैसे ही हैं। वर्तमान समय में यहां राकेश गिरी विधायक हैं। क्षेत्र में गिरी के खिलाफ माहौल दिख रहा है, लेकिन भाजपा के प्रति लोगों का रूझान होने के कारण कांग्रेस को काफी मेहनत करनी पड़ेगी।
चुनाव नजदीक हैं, इसलिए नेता नगरी से लेकर आम लोगों के बीच चर्चा का विषय यही है कि इस बार भाजपा से कौन उम्मीदवार होगा। यहां एक अनार कई बीमार की स्थिति है। जबकि कांग्रेस में फिर यादवेन्द्र सिंह बुंदेला का मैदान में उतरना तय माना जा रहा है। इनके अलावा दूसरा मजबूत दावेदार ही नहीं है। सालों की मांग के बाद 2013 में टीकमगढ़ जिले में रेलवे सुविधा शुरू हुई। पिछले 10 सालों में सडक़ें अच्छी हुईं, लेकिन उद्योग आज भी दूर की बात हैं। रोजगार के बेहतर साधन नहीं हैं। क्षेत्र की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित ही है। बारिश की कमी समस्या और भी बढ़ा देती है। हालांकि नई-नई घोषणाओं से लोगों में जोश भरने की कोशिश की जाती है। ताजा घोषणा मेडिकल कॉलेज की है। आत्महत्या और पलायन टीकमगढ़ की पहचान बन चुके हैं। स्थिति सुधारने में शासन-प्रशासन नाकाम रहा है। चुनावों के मौसम में वादे और दावे यहां भी थोक के भाव किये जा रहे हैं, जिनका हकीकत से कोई वास्ता नहीं है। रोटी, कपड़े और मकान की जद्दोजहद में उलझे मतदाता के लिए विपक्ष के आरोपों के कोई मायने नहीं हैं। उसे जमीनी स्तर पर काम चाहिए। टीकमगढ़ के आम मतदाता का कहना है कि टिकट चाहे जिसको मिले, आखिर हैं तो सब वही। पान की गुमटी पर बैठे आरिफ कहते हैं कि विधायक रहते हुए केके श्रीवास्तव ने कोई काम नहीं किया और न ही राकेश गिरी ने कुछ किया। आरिफ की इस बात का समर्थन राकेश जैन भी करते हैं।
ये हैं दावेदार
टीकमगढ़ से भाजपा विधायक राकेश गिरी बचपन में पेपर बेचा करते थे, लेकिन आज भाजपा के करोड़पति विधायक हैं। पत्नी लक्ष्मी गिरी नगर पालिका अध्यक्ष रह चुकी हैं, बहन जनपद अध्यक्ष हैं। विधायक की कार्यशैली को लेकर उनकी ही पार्टी के नेता सवाल उठाते रहे हैं। निकाय चुनाव के दौरान हुए विवाद में उन्हें जिले के भाजपा पदाधिकारियों का पर्याप्त समर्थन नहीं मिला। फिलहाल वे एक बार फिर टिकट के लिए दावेदारी की तैयारी में जुटे हैं। हालांकि दावेदारों में स्थानीय भाजपा नेता राजेन्द्र तिवारी भी हैं। वे क्षेत्र में दो बार बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेन्द्र शास्त्री की कथा करा चुके हैं। उन्होंने पिछले चुनाव में भी टिकट मांगा था। भाजपा जिला अध्यक्ष अमित नुना भी क्षेत्र से विधायक के टिकट के लिए जोर लगा रहे हैं। उन्होंने आरएसएस में लंबे समय तक काम किया है। वहीं पूर्व विधायक केके श्रीवास्तव भी इस बार टिकट के लिए मशक्कत में जुटे हैं। उन्हें सीएम शिवराज सिंह का करीबी माना जाता है। हालांकि विधायक रहते वे काफी विवादों में रहे हैं। उधर कांग्रेस एक बार फिर यहां से यादवेन्द्र सिंह बुंदेला को चुनाव मैदान में उतार सकती है। 1985 में उन्होंने पहली बार विधायक का चुनाव लड़ा था। इसके बाद कांग्रेस में प्रतिमा जैन को छोड़ कोई दूसरा दावेदार मजबूती के साथ आज तक खड़ा नहीं हो पाया।
सियासी समीकरण
टीकमगढ़ विधानसभा वही सीट है, जहां भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती अपने ही घर में हार गई थीं। वाक्या 2008 के विधानसभा चुनाव का है। भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री उमा भारती ने भाजपा से अलग होकर भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाई और टीकमगढ़ विधानसभा से चुनाव लड़ा, लेकिन वे कांग्रेस के यादवेन्द्र सिंह बुंदेला से करीब 9 हजार वोटों से हार गईं। जबकि यहां उमा भारती का अच्छा प्रभाव माना जाता रहा है। आजादी के बाद से बुंदेलखंड की दूसरी विधानसभाओं की तरह टीकमगढ़ में भी कांग्रेस का दबदबा रहा है, लेकिन 80 के दशक के बाद यहां भाजपा ने अपनी जड़ें जमाना शुरू की। 1990 में इस सीट से पहली बार भाजपा जीतकर आई। 1990 से यहां 7 चुनाव हुए हैं, इसमें से 2 बार ही कांग्रेस जीत सकी है। 1957 से अब तक इस सीट पर 14 बार चुनाव हुए, इसमें 8 बार कांग्रेस और 6 बार भाजपा ने जीत दर्ज की है।
जातिगत समीकरण
टीकमगढ़ में अनुसूचित जाति की बड़ी संख्या है। इसके अलावा यादव, ठाकुर, जैन और ब्राह्मण वर्ग के वोटर्स हैं। विधानसभा में पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 14 हजार 513 और महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 4 हजार 509 है। इस सीट पर हार-जीत का गणित हमेशा बसपा-सपा बिगाड़ती रही है। 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत का अंतर 4 हजार 175 वोटों का रहा था, जबकि बसपा उम्मीदवार 9 हजार 793 वोटों के साथ तीसरी नंबर पर रही थी। यही स्थिति 2013 के चुनाव में बनी। इसमें सपा उम्मीदवार 13 हजार 552 वोटों के साथ दूसरे और बसपा 7 हजार वोटों के साथ चौथे स्थान पर रही।