यस एमएलए- आदिवासी मतदाता तय करते हैं हार-जीत

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भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। सिवनी जिले का बरघाट विधानसभा क्षेत्र में प्रदेश की सबसे अच्छी गुणवत्ता वाली धान का उत्पादन होता है। परिसीमन के बाद आदिवासी बहुल क्षेत्र कुरई और खवासा को इस विधानसभा क्षेत्र में शामिल किया गया। अब पवारों के साथ आदिवासी मतदाता भी हर चुनाव में पार्टियों की हार और जीत तय करते हैं। यही वजह है कि यहां की सियासत भी इन्हीं दोनों समुदाय के लोगों को ध्यान में रखकर होती आई है। अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला रहा है। यहां वही पार्टी कामयाब होती है, जो आदिवासियों को साधने में सफल होती है। बरघाट विधान सभा क्षेत्र का आष्टा काली मंदिर प्रसिद्ध है। विधानसभा क्षेत्र की सीमा के बाद बालाघाट जिला आता है । विधानसभा क्षेत्र में सिवनी जिले का पेंच टाइगर रिजर्व आता है ,जहां बड़ी संख्या में बाघ, तेंदुए, जंगली भैंस हिरण और अन्य जानवर रहते हैं।
इस विधानसभा सीट से कांग्रेस में एक ही दावेदार वर्तमान में विधायक अर्जुनसिंह काकोडिय़ा है इसके अलावा पार्टी के पास कोई विकल्प नहीं है। वहीं भाजपा में कमल मर्सकोले जो कि दो बार विधायक रहे चुके हैं तथा भारतीय प्रशासनिक सेवा ने सेवानिवृत श्याम सिंह कुमरे व सहकारी केन्द्रीय बैंक के पूर्व अध्यक्ष अशोक तेकाम के नाम सामने हैं, जिन पर भाजपा विचार कर सकती है। लोगों का कहना है कि बरघाट से जो भी विधायक बने, उसे विकास कार्यों की ओर ध्यान देना चाहिए। जो समस्याएं हैं उन पर विचार करें और समस्याओं का निराकरण करवाए। इस विधान सभा में सिंचाई हेतु निर्मित नहरों का सीमेंटीकरण सहित नगर में सडक़, डिवाइडर निर्माण व अतिक्रमण जैसे मुद्दे बने हुए हैं। आम जनता की समस्याओं का निराकरण समय पर होगा तो निश्चित ही क्षेत्र की तस्वीर बदल जाएगी। लोगों का कहना है कि क्षेत्र का विधायक ऐसा होना चाहिए जो कि शिक्षित हो। जो विधायक बनने के बाद शासकीय योजनाओं का ठीक तरह से क्रियान्वयन करा सके। आम लोगों के लिए हमेशा उपलब्ध रहने वाला विधायक होना चाहिए जो कि जनता की समस्याएं सुने और निराकरण करवाए। ऐसा विधायक चाहिए जो स्वयं के विकास की बजाय क्षेत्र के विकास की ओर ध्यान दे। युवाओं के रोजगार की संभावनाओं को तलाशे। बरघाट में ऐसे विधायक की आवश्यकता है जो  कि पब्लिक की बात सुने। विपक्षी  पार्टी का विधायक बनने से क्षेत्र का विकास नहीं होता पाता है।
सियासी समीकरण
बरघाट सिवनी जिले की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है, जहां 2018 में 30 वर्ष बाद कांग्रेस ने जीत दर्ज की। बरघाट विस सीट साल 1951 से अस्तित्व में आई, जिस पर  1951-1985 तक कांग्रेस का कब्जा रहा। 1985 में प्रभा भार्गव ने इस सीट पर आखिरी बार कांग्रेस को जीत दिलाई थी, लेकिन 1990 के विधानसभा चुनाव में डॉक्टर ढालसिंह बिसेन ने कांग्रेस के पंडित महेश प्रसाद मिश्रा को हराकर यह सीट भाजपा की झोली में डाल दी। इसके बाद 1990 से 2003 तक पूर्व मंत्री रहे डॉ. ढालसिंह बिसेन वहां से चुनाव जीतते रहे। वर्ष 2008 और 2013 में कमल मर्सकोले इस विधानसभा सीट पर भाजपा से विधायक चुने गए। इसके बाद वर्ष 2018 में भाजपा ने अचानक कमल मर्सकोले की टिकट काटकर नरेश बरकड़े को दे दी थी, जिसका परिणाम यह रहा कि इस चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। जहां कांग्रेस प्रत्याशी अर्जुन सिंह काकोडिय़ा ने पिछला 30 साल के रिकॉर्ड को ध्वस्त करते हुए बरघाट सीट पर अपना कब्जा जमा लिया।
विकास के अपने-अपने दावे
विधानसभा क्षेत्र में विकास की बात पर विधायक अर्जुनसिंह काकोडिय़ा का कहना है कि विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य व सिंचाई हेतु अनेक कार्य कराए जाने है। कुरई में कॉलेज का काम प्रारंभ नहीं हो पाया है, वहीं कन्या परिसर की इमारत भी कुरई मे बनाया जाना है, जिसके लिए जगह भी चिन्हित हो गई है। वही बरघाट क्षेत्र में नहरों की लाइनिंग सीमेंटीकृत कराए जाने की आवश्यकता है। ये कार्य आगामी विधानसभा चुनाव के बाद कराए जा सकेंगे। वहीं भाजपा नेता आलोक दुबे का कहना है कि चुनावी दृष्टिकोण से हमारा कार्यकर्ता केन्द्र व प्रदेश सरकार की लोक कल्याणकारी योजनाओं को लेकर घर-घर तक पहुंच रहा है और उनका लाभ दिलाने का प्रयास कर रहा है। यही प्रयास विधानसभा चुनाव में प्रभावी होंगे।

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