अब 3,000 करोड़ के ई-टेंडर घोटाले की जांच होगी बंद

ई-टेंडर

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। करीब पांच साल पहले मप्र की राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिका में तहलका मचाने वाले 3,000 करोड़ रुपए से अधिक के बहुचर्चित ई-टेंडर घोटाले में पुलिस क्लोजर रिपोर्ट पेश करने की तैयारी में है। 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले सामने आए करीब तीन हजार करोड़ रुपये के ई-टेंडर कथित घोटाले की जांच कर रही आर्थिक अपराध शाखा को इस मामले में किसी भी तरह की अनियमितता नहीं मिली है। वहीं सात महीने पहले इसके सभी छह आरोपी भी न्यायालय से दोषमुक्त हो चुके हैं।
बड़ी बात ये है कि हार्ड डिस्क में टेम्परिंग की पुष्टि होने के बाद भी जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू यह पता नहीं कर सकी कि आखिर टेंडर में छेड़छाड़ किसने की थी। इसीलिए इसकी जांच ठंडे बस्ते में चली गई। गौरतलब है कि जल संसाधन, सडक़ विकास निगम, नर्मदा घाटी विकास, नगरीय प्रशासन, नगर निगम स्मार्ट सिटी, मेट्रो रेल, जल निगम, एनेक्सी भवन सहित निर्माण कार्य करने वाले विभाग इस घोटाले में शामिल हैं। इन टेंडर्स में ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन और एंटेरस सिस्टम कंपनी के पदाधिकारियों के माध्यम से निविदा में टेंपरिंग किए जाने तथा इसमें कई दलालों, विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियों और राजनेताओं के शामिल होने का आरोप था। हालांकि इस कथित घोटाले के पीछे कुछ वरिष्ठ नौकरशाहों के आपसी झगड़े को भी कारण माना गया था। गौरतलब है की ई-टेंडर घोटाला सामने आने के बाद  कई विभागों के अधिकारी शक के दायरे में आ गए थे। प्रदेश की जांच एजेंसियों के साथ ही केंद्रीय एजेंसियां भी सक्रिय हो गईं थीं। कई जगह छापामारी की गई। दावा किया गया कि यह प्रदेश का सबसे बड़ा घोटाला साबित होगा। लेकिन ईओडब्ल्यू को भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (सीईआरटी- इन) से मिली निविदा हैगिंग और फिशिंग परीक्षण रिपोर्ट में ई-निविदा में हेरफेर को लेकर कोई साक्ष्य नहीं मिला था। अब इस मामले की फाइल बंद करने से पहले ईओडब्ल्यू ने इस मामले में सीईआरटी-इन से अनियमितता को लेकर स्पष्ट रिपोर्ट मांगी है। सीईआरटी- इन की रिपोर्ट में इस बार भी अगर अपराध स्पष्ट नहीं होता है तो आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) इस कथित घोटाले की जांच में खात्मा लगाकर इसकी फाइल को बंद कर सकती है।  आर्थिक अपराध शाखा का तर्क है कि ई-टेंडर मामले में सीईआरटी-इन की रिपोर्ट स्पष्ट नहीं थी। इस कारण निविदा में किसी भी तरह के हेरफेर के प्रमाण स्पष्ट नहीं हो सके थे। सीईआरटी- इन को एक बार फिर से स्पष्ट रिपोर्ट भेजने के लिए पत्र लिखा गया है। स्पष्ट रिपोर्ट प्राप्त होने पर इस प्रकरण में कार्रवाई को लेकर निर्णय लिया जाएगा।
जून 2018 में उजागर हुआ था मामला
तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के निर्देश पर जून 2019 के मध्य से जांच शुरू हुई थी। तत्कालीन मुख्य सचिव बीपी सिंह ने ईओडब्ल्यू को एमपीएसईडीसी के पूर्व निदेशक मनीष रस्तोगी द्वारा नौ निविदाओं को रद्द करने के बाद प्रस्तुत एक अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर जांच शुरू करने के लिए कहा था। सूत्रों का कहना था कि ई-टेंडर मामले को गैर-सबूत तकनीकी साक्ष्य पर कुछ स्तरों पर अनिच्छा के बावजूद, एजेंसी ने अब तक की सबसे बड़ी जांच को माना है। यह कथित तौर पर सीनियर नौकरशाहों के एक झगड़े रूप में उभर कर आया।
 ईओडब्ल्यू नहीं दे पाई सबूत
नवंबर 2020 में  लोकायुक्त की एक विशेष अदालत ने ईओडब्ल्यू की तरफ से दर्ज कथित ई-टेंडर मामले में सभी छह आरोपियों को बरी कर दिया है। दरअसल ईओडब्ल्यू कोई सबूत नहीं दे पाई। मामले में विनय चौधरी, वरुण चतुर्वेदी और सुमित गोलवरकर आरोपी थे, जिनकी संयुक्त उद्यम कंपनी ओस्मो आईटी सॉल्यूशंस की तलाशी कंप्यूटर और लैपटॉप की जब्ती के लिए की गई थी। कंपनी के मालिक चौधरी ने ईओडब्ल्यू को दिए अपने बयान में एमपी स्टेट इलेक्ट्रॉनिक डेपलपमेंट कॉरपोरेशन की तरफ से जारी किसी भी निविदा में अपनी भूमिका से इनकार किया था। आरोप था कि निविदा के दस्तावेजों के साथ इन्होंने छेड़छाड़ की थी। ईओडब्ल्यू का कहना है कि जांच जारी है, पिछले महीने ही बीपीएन डेटा और बैकअप फाइल कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पोंस टीम (सर्ट-इन) को भेजी हैं।

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