
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। 2018 में मप्र में कांग्रेस की सरकार बनाने में महती भूमिका निभाने वाले श्रीमंत यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस नेता राहुल गांधी की आंख और कान माने जाते थे। लेकिन 2020 में अपनी उपेक्षा से नाराज होकर सिंधिया ने जब से भाजपा का दामन थामा है, तभी से वे कांग्रेस के दुश्मन नंबर वन हो गए हैं। अब विधानसभा चुनाव में भी वे मप्र कांग्रेस के नेताओं के साथ ही राहुल गांधी के टारगेट पर हैं। जहां कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की रणनीति है कि श्रीमंत को उनके गढ़ में घेर कर रखा जाए, वहीं राहुल गांधी ने उनके गढ़ यानी ग्वालियर-चंबल से चुनाव का आगाज करने की तैयारी शुरू कर दी है। मप्र में राहुल गांधी की पहली चुनावी सभा ग्वालियर से होगी। इसको लेकर कांग्रेस में अभी से तैयारियां शुरू हो गई हैं।
गौरतलब है कि कर्नाटक के चुनाव परिणाम से उत्साहित कांग्रेस हाईकमान का सबसे ज्यादा फोकस मप्र पर है। गांधी परिवार भी मप्र के विधानसभा चुनाव को लेकर गंभीर है। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी जबलपुर से कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान का शंखनाद कर चुकी हैं। जबलपुर में उन्होंने मां नर्मदा की पूजा कर जहां सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलने का संकेत दे गई हैं, वहीं उन्होंने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मप्र सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वे प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने पर पांच गारंटी का ऐलान भी कर गई। अब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की बारी है।
कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी जुलाई में मप्र के दौरे पर आएंगे। वे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ ग्वालियर से अपने चुनाव प्रचार का आगाज करेंगे। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े भी राहुल गांधी के साथ आएंगे। गौरतलब है कि ग्वालियर व चंबल संभाग के 8 जिलों में कुल 34 सीटें हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 26 सीटों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा को 7 सीटें मिली थीं और सीट बसपा के खाते में गई थी। कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव में पिछले चुनाव की परफॉरमेंस को बरकरार रखना चाहती है। कांग्रेस नेतृत्व ने केंद्रीय पर्यवेक्षकों के साथ ही नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अज पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह आदि य सिंह, अजय ग्वालियर चंबल अंचल में सक्रिय किया है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि ग्वालियर, चंबल अंचल में कांग्रेस का निश्चित वोट बेस है। वर्ष 2013 और 2008 के चुनावों में भी कांग्रेस को यहां अच्छा वोट शेयर मिला था।
दोस्ती से दुश्मनी तक सियासत के बदलते रंग!
मप्र में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच आमने-सामने की टक्कर देखने को मिल सकती है। इसका कारण यह है कि सत्ता में वापसी की कोशिश करने के लिए कांग्रेस के चुनावी अभियान की कमान राहुल के पास होगी। दूसरी ओर, सिंधिया को ग्वालियर-चंबल में अपना गढ़ बचाने के लिए अपने पुराने दोस्त से मुकाबला करना ही होगा। गौरतलब है कि कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कभी घनिष्ठ मित्र हुआ करते थे। इतने कि कांग्रेस में रहते हुए सिंधिया, राहुल की कोर टीम के अहम सदस्य थे। प्रियंका गांधी भी उनसे अपने भाई की तरह व्यवहार करती थीं। दोनों परिवारों के बीच यह दोस्ती दो पीढिय़ों से चली आ रही थी। सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया और राहुल के पिता राजीव गांधी के बीच भी प्रगाढ़ दोस्ती थी। फिर आया मार्च, 2020 जब ज्योतिरादित्य कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हो गए। बीते तीन साल में सियासत ने ऐसी करवट ली कि अब मप्र में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में राहुल और ज्योतिरादित्य के बीच आमने-सामने की टक्कर देखने को मिल सकती है। तीन साल पहले भाजपा में जाने के बाद भी सिंधिया आम तौर पर गांधी परिवार पर सीधा हमला करने से परहेज करते थे। राहुल के बयानों के बारे में पूछे जाने पर वे इसे कांग्रेस का आंतरिक मसला बताकर पल्ला झाड़ लेते थे, लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं।
जुलाई में सिंधिया के गढ़ में हल्लाबोल
जानकारी के अनुसार जुलाई में ग्वालियर में राहुल गांधी की विशाल जनसभा का आयोजन किया जाएगा। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनाने में ग्वालियर चंबल अंचल की सबसे बड़ी भूमिका रही थी। इसके बाद महाकौशल में कांग्रेस को सबसे ज्यादा समर्थन मिला था। यही वजह है। कि महाकौशल के साथ ही कांग्रेस का सबसे ज्यादा फोकस ग्वालियर चंबल अंचल पर है। कांग्रेस ग्वालियर में राहुल गांधी की जनसभा जरिए पार्टी कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करना चाहती है। दरअसल, मार्च, 2020 ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी। वे अपने 22 विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे, जिससे कमलनाथ सरकार गिर गई थी। उनके साथ बड़ी संख्या में ग्वालियर, चंबल अंचल के कांग्रेस नेता और पार्टी कार्यकर्ता भी भाजपा में चले गए थे सिंधिया समर्थक विधायकों और नेताओं को पार्टी में तवज्जो मिलने से भाजपा के पुराने नेता नाराज हैं। उनके बीच शुरुआत से ही पटरी नहीं बैठ रही है। अब जब चुनाव में टिकट बंटवारे का वक्त नजदीक आ गया है, तो उनके बीच खाई और बढ़ती जा रही है। पुराने भाजपाई सिंधिया समर्थकों को फिर से टिकट दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी भाजपा में मची अंदरूनी खींचतान का फायदा उठाना चाहती है। यही वजह है कि राहुल गांधी की पहली चुनावी सभा ग्वालियर में रखने का निर्णय लिया। सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी के ग्वालियर आगमन पर बड़ी संख्या में भाजपा नेता कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। इस दिशा में काम शुरू कर दिया गया है।
सिंधिया के लिए गढ़ बचाने की चुनौती
विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लगी कांग्रेस का सबसे ज्यादा ध्यान ग्वालियर-चंबल क्षेत्र पर है जो सिंधिया का गढ़ है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इस इलाके में लगातार सक्रिय हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी लगातार इस क्षेत्र के दौरे कर रहे हैं। कांग्रेस की सारी रणनीति सिंधिया को उन्हीं के गढ़ में पटकनी देने की है ताकि उनसे बदला लिया जा सके। ऐसे में सिंधिया के लिए अपना गढ़ बचाने की चुनौती है। वे चाहकर भी इस लड़ाई से दूर नहीं रह सकते नहीं तो उनके राजनीतिक वजूद पर ही खतरा पैदा हो सकता है। कांग्रेस से मुकाबले के लिए उन्हें खुद मोर्चा संभालना होगा और अपने पुराने दोस्त से टक्कर लेना उनकी मजबूरी होगी। इसमें कोई शक नहीं कि तीन राज्यों में सिमट चुकी कांग्रेस मप्र में सत्ता में वापसी के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी। यह भी करीब-करीब तय है कि चुनाव अभियान में राहुल गांधी की अहम भूमिका होगी। भाजपा के पास उनसे मुकाबले के लिए कोई युवा चेहरा नहीं है। दूसरी ओर, युवाओं के बीच सिंधिया की लोकप्रियता भी जगजाहिर है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन का श्रेय भी काफी हद तक सिंधिया को ही मिला था। यह बात और है कि 15 महीने बाद कांग्रेस सरकार के पतन की वजह भी वही बने। ऐसे में भाजपा राहुल की काट के लिए सिंधिया पर बड़ा दांव खेल सकती है।