प्रदेश में ‘उच्च शिक्षा’ प्रभारियों के भरोसे

उच्च शिक्षा

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भले ही मप्र ऐसा राज्य बन चुका है, जहां पर सबसे पहले नई शिक्षा नीति को लागू किया गया है, लेकिन इस मामले में सरकार को प्रशासनिक अमले का सहयोग नहीं मिल पा रहा है, जिसकी वजह से शुरुआत में ही इस नीति का पलीता लगाया जाने लगा है। इसकी वजह से प्रदेश में उच्च शिक्षा के हाल बेहद दयनीय बने हुए हैं। अगर सरकार की बात की जाए तो उसके द्वारा 13 विवि और 536 कालेजों का संचालन किया जा रहा है। हालात यह बने हुए हैं कि किसी भी विवि में रजिस्ट्रार तक नही हैं। हद तो यह है कि पांच सैकड़ा कालेजों में तो प्राचार्य तक नही हैं। इन सभी पदों पर रसूखदारों को प्रभार देकर काम चलाया जा रहा है। इसकी वजह से उच्च शिक्षा की स्थिति बेहद लचर बन चुकी है। हालात कैसे बने हुए है इससे समझा जा सकता है कि प्रदेश में महाविद्यालय पहले से ही हजारों प्रोफेसरों की कमी से जूझ रहे हैं, ऐसे में पांच सौ प्रोफेसरों को प्रभारी प्राचार्य  बनाकर काम कराए जाने से शिक्षा तक चौपट हो रही है। यही वजह है कि कॉलेजों में पढ़ाई समेत अन्य गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं। इसकी वजह यूजीसी के भर्ती नियम 1990 में संशोधन न हो पाना है। संशोधन न होने से वर्ष 2011 के बाद से प्रोफेसरों की पदोन्नतियां नहीं हुई है। इसका खामियाजा कॉलेज विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है। अगर भोपाल की ही बात की जाए तो यहां के पूरे एक दर्जन कालेजों में एक भी प्राचार्य नहीं है। वहीं प्रदेश के सभी13 विश्वविद्यालयों में भी यही हाल रजिस्ट्रार पद के  हैं। इन विवि में डिप्टी रजिस्ट्रार को रजिस्ट्रार का प्रभार देकर कामकाज चलाया जा रहा है।
नहीं ले पाते निर्णय  
विवि में स्थायी रजिस्ट्रार और कॉलेजों में स्थायी प्राचार्य नहीं होने की वजह से पढ़ाई का स्तर भी लगातार गिर रहा है। कुछ सालों पहले उच्च शिक्षा विभाग द्वारा कराई गई जांच में भी यह पाया गया था कि, इस तरह के कॉलेजों में पढ़ाई तक सही ढंग से नहीं हो रही है। प्रभारी प्राचार्यों को अधिकार नहीं रहते। ऐसे में वे कोई निर्णय भी नहीं ले पाते, जिसका खामियाजा संबंधित कॉलेज और छात्रों को भुगतना पड़ता है। इस मामले में विभाग के मंत्री की भी रुचि नहीं दिखाई देती है। ऐसा नहीं हैं कि उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव को इसकी जानकारी नहीं हैं, लेकिन वे भी इस मामले में कुछ करते नजर नहीं ं आ रहे हैं।
पढ़ाई अतिथि विद्वानों के भरोसे
प्रदेश में कई कॉलेज ऐसे हैं, जिनमें इक्का-दुक्का प्रोफेसर ही हैं। इसकी वजह से अधिकांश महाविद्यालयों में पढ़ाई का काम अतिथि विद्वानों के भरोसे ही चल रहा है। इसके बाद भी शासन भर्ती नियमों में संशोधन करने को तैयार नही है। इसकी वजह से प्रदेश के 293 पुराने कॉलेज और वर्ष 2011 के बाद खुले नए कॉलेजों को प्राचार्य तक नहीं मिल पा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक भर्ती नियमों में संशोधन के लिए उच्च शिक्षा विभाग शासन के पास चार बार प्रस्ताव भेज चुका है, लेकिन शासन इसे गंभीरता से लेने को तैयार ही नही है। गौरतलब है कि वर्ष 2011 में ग्वालियर हाईकोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी। इसमें कहा गया था शासन 1990 के भर्ती नियमों में संशोधन करें, इसके बाद पदोन्नति करें। ग्वालियर खंडपीठ ने इस याचिका को सही ठहराया था। इसके बाद से यूजीसी के भर्ती नियम 1990 में यूजीसी के नए भर्ती नियम 2010 के तहत संशोधन होना है, जो अब तक नहीं किया गया है। जिसकी वजह से पदोन्नतियां नहीं हो पा रही हैं।

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