- भाजपा के दिग्गज नेताओं को सौंपी गई है जिम्मेदारी
- गौरव चौहान
इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर वैसे तो कांग्रेस व भाजपा दोनों ही दल अपनी-अपनी रणनीति को आंतिम रुप देने व मैदानी सक्रियता बढ़ाने में जुटे हुए हैं, लेकिन इन दोनों ही दलों की ऐसी सीटों पर भी नजरें हैं, जो दोनों ही दलों के लिए मुश्किल भरी बनी हुई हैं। यही वजह है कि ऐसी सीटों के लिए अलग से रणनीति बनाई जा रही है। अब भाजपा ने ऐसी सीटें चिन्हित कर उनके लिए विशेष रणनीति तैयार की है।
इन सीटों का जिम्मा भाजपा के रणनीतिकारों ने अपने ऐसे नेताओं को सौंप दी है, जो चुनावी बिसात बिछाने से लेकर संगठन को मजबूत करने के महारथी माने जाते हैं। इन्हें अब कांग्रेस के गढ़ मानी जाने वाली विधानसभा सीटों पर चक्रव्यूह रचने की जिम्मेदारी दी जा चुकी है। इनमें से कुछ नेताओं को सुविधाओं के लिए सत्ता में भागीदारी देते हुए उन्हें निगम मण्डलों में पहले ही एडजस्ट किया जा चुका था। अब यह नेता पार्टी की जिम्मेदारी वाले इलाकों में लगातार दौरे कर मैदानी हकीकत जानने के साथ ही हर तरह के समीकरणों के हिसाब से रणनीति बनाने का काम कर रहे हैं। इसमें भी अहम बात यह है कि इनमें से कुछ नेता संघ से भाजपा में आने के बाद संभागीय संगठन मंत्री का काम भी कर चुके हैं। दरअसल भाजपा का फोकस उन 96 सीटों पर है, जो इस समय कांग्रेस के पास हैं। इसके अलावा भाजपा के रणनीतिकार उन दो दर्जन सीटों पर भी पूरी तरह से निगाह रखे हुए हैं, जो लगातार भाजपा के लिए मुश्किल बनी हुई हैं। इनमें से कई सीटों पर तो लगातार कांग्रेस की जीत होती आ रही है। उल्लेखनीय है कि बीते विधानसभा के आम चुनाव में कांग्रेस ने 114 सीट जीतकर डेढ़ दशक बाद सत्ता में वापसी की थी, लेकिन 15 माह बाद ही दो दर्जन से अधिक विधायकों द्वारा पाला बदलकर सरकार गिरा दी गई थी, जिसकी वजह से भाजपा एक बार फिर से सत्ता में लौट आयी थी। यही वजह है कि भाजपा इस बार पूरी तरह से फूंक-फंूक कर कदम रख रही है। यही नहीं हर वो कदम भी उठा रही है जिससे कांग्रेस की सत्ता में वापसी न हो सके। कांग्रेस को चुनावी जीत से रोकने के लिए ही प्रदेश भाजपा संगठन ने अपने चुनावी प्रबंधन के दक्ष नेताओं के जरिए वहां कांग्रेस की घेराबंदी करने की योजना बनाई है। इन सभी सीटों पर वरिष्ठ भाजपा नेताओं को प्रभारी बनाया गया है, इनमें से कुछ सांसद, वरिष्ठ विधायक, पूर्व संगठन महामंत्री, निगम मंडल के मौजूदा अध्यक्ष-उपाध्यक्ष है। उनकी निगरानी में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं को उनके ही घर में घेरने की तैयारी है।
तीन दर्जन सीटों पर नजर
प्रदेश की करीब तीन दर्जन ऐसी विधानसभा सीटें है, जहां से भाजपा या तो जीती नहीं है या बहुत लंबे समय से उनके प्रत्याशी कांग्रेस प्रत्याशी के सामने टिक नहीं पा रहे हैं। इनमें नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविन्द सिंह की भिण्ड जिले की लहार विधानसभा सीट है, तो वहीं पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के गृह क्षेत्र राधोगढ़ की सीट है, जहां से उनके बेटे जयवर्धन सिंह विधायक है। पीसीसी के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव के प्रभाव वाली कसरावद विधानसभा सीट जहां से सचिन यादव विधायक है। इसी तरह भोपाल की उत्तर विधानसभा सीट पर भी भाजपा कांग्रेस से लगातार हारती आ रही है। इनके अलावा केपी सिंह की पिछोर ,पूर्व मंत्री जीतू पटवारी की राऊ सीट, पूर्व गृहमंत्री बाला बच्चन की बड़वानी जिले की राजपुर विधानसभा सीट एवं सतना जिले की चित्रकूट सीट जहां से नीलंाशु चतुर्वेदी लगातार दो पंचवर्षीय से चुनाव जीते हंै।
इस तरह की भी है योजना
भाजपा ने इन सीटों पर जिन नेताओं को लगाया है, उनके द्वारा माइक्रो परीक्षण कर जीत का फार्मूला तैयार किया है, जिसे प्रदेश नेतृत्व के पास भेजा गया है। इनमें से कुछ दिग्गज नेताओं के खिलाफ ऐसे प्रत्याशी खड़ा करने की योजना बनाई गई है, जो कभी इन नेताओं के राजदार रहे और अब भाजपा में अहम भूमिका निभा रहे है। यदि ऐसे नेताओं को प्रत्याशी बनाया जाता है, तो दिग्गज कांग्रेसी नेता अपने चुनाव क्षेत्रों से बाहर नहीं जा पाएंगे और इसका लाभ भाजपा को मिलेगा।