- गौरव चौहान
देश में एनजीओ किस तरह सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के नाम पर लूट कर रहे हैं इसका नजारा ग्वालियर-चंबल अंचल में देखने को मिल रहा है। अंचल के गांवों के पते पर रजिस्टर्ड एनजीओ भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय से अनुदान लेकर मालामाल हो रहे हैं। अंचल के हर जिले में विज्ञान के नाम पर गोलमाल किया जा रहा है। गौरतलब है कि भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा समाज में वैज्ञानिक नवाचार एवं नव प्रवर्तन के लिए कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसके लिए एनजीओ का सहारा लिया जा रहा है। लेकिन मप्र के ग्वालियर-चंबल अंचल में जो नजारा देखने-सुनने को मिल रहा है उससे ऐसा लगता है कि प्रदेश में एनजीओ का कोई संगठित तंत्र का कर रहा है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार की इस योजना का उदेश्य लोकहित में विज्ञान सम्मत नागरिक दृष्टि का निर्माण है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में एक बुनियादी विसंगति है। राज्य सरकार या स्थानीय जिला प्रशासन को स्वीकृति, क्रियान्वयन के स्तर पर शामिल ही नहीं किया गया है। आम तौर पर केंद्रीय अनुदान से संचालित इस तरह की योजनाओं में कलेक्टर के माध्यम से राज्य सरकारें सबंधित प्रस्ताव केंद्र को भेजती हैं। लिहाजा योजनाओं के मूल्यांकन, अनुश्रवण निगरानी में स्थानीय प्रशासन की भूमिका बनी रहती है। इस योजना में मंत्रालय आईआईटी, आईआईएम, यूनिवर्सिटीज को अनुदान देने के साथ एनजीओ को जिस तरह पैसा जारी कर रहा है उससे उसके दुरुपयोग की आशंकाएं बनी रहती हैं। हालांकि केंद्र का हेतु भी इसमें यही रहा होगा कि लोक हित में स्वयंसेवी संगठन तेजी से कार्य करें। इसी के चलते केंद्र ने बड़े लक्ष्य के लिए सीधा अनुदान दिया होगा पर देखने में आ रहा है कि इसका दुरुपयोग हो रहा है। बेहतर यह है कि दुरुपयोग रोकने के लिए राज्य सरकार का हस्तक्षेप और उसकी कोई भूमिका भी केंद्र तय करे। मंत्रालय के आधिकारिक दस्तावेजों में मप्र को 174 करोड़ रुपये के अनुदान का हवाला है लेकिन मप्र सरकार की भूमिका इसमें कहीं भी नजर नहीं आती।
विज्ञान के नाम पर गोलमाल
भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए जो नवाचार शुरू किया गया है उसमें एनजीओ खुब गोलमाल कर रहे हैं। ग्वालियर अंचल के हर जिले में विज्ञान के नाम पर गोलमाल हुआ है। ग्वालियर में सी-109 न्यू साकेत नगर तानसेन रोड पर पंजीकृत आगाज एनजीओ की श्रीमती सुनीता के नाम 11.50 लाख रुपए महिलाओं के लिए स्वच्छता एवं स्वास्थ्य पर 2022 में जारी किए गए है यह परियोजना भी अभी क्रियान्वयन के दौर में है। श्योपुर की विजय लक्ष्मी ने विज्ञान के लिए जन जागरूकता हेतु 8.65 लाख रुपए श्योपुर में खर्च किए हैं। विजय लक्ष्मी को 10.80 लाख का दूसरा अनुदान जागरूकता के नाम पर फिर से स्वीकृत किया गया दोनों प्रोजेक्ट पूरे कर लिए गए हैं। श्योपुर की विजय लक्ष्मी को उनके एनजीओ चिल्ड्रन वेलफेयर एजुकेशन सोसायटी के नाम से ग्वालियर में एसटीईएमएम संचार के लिए 11.50 लाख की राशि मिली खास बात यह कि यह राशि श्योपुर के इस एनजीओ को यमुनोत्री अपार्टमेंट 96 नेहरू नगर टाठीपुर के नाम जारी हुई है। भिंड के विनय कुमार ने विज्ञान मेले आयोजित करने के लिए 2021 में 11 लाख का अनुदान प्राप्त किया है। भिंड में रमन साइंस फाउंडेशन के अखिलेश यादव ने विज्ञान संचार के लिए 11 लाख का अनुदान 2021 में प्राप्त किया। भिंड में गोहदी गेट निवासी सुश्री मोनिका प्रभाकर को जनजाति, अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए विज्ञान प्रदर्शनी लगाने के लिए 28 लाख की धन राशि 2022 में स्वीकृत की गई है।
भिंड, मेहगांव, रौन में रोजमर्रा की जिंदगी में विज्ञान के महत्व को बढ़ावा देने के लिए डॉ. मनोज सिंह बैश ग्राम दबोह को 11.50 लाख की राशि स्वीकृत हुई है। दतिया की बुंदेला कॉलोनी निवासी सुश्री प्रियंका गुप्ता को विज्ञान जागरूकता मेला लगाने के लिए 11 लाख रुपये मिले हैं। दतिया की बुन्देला कॉलोनी पर रजिस्टर्ड शिखर जन सेवा समिति की सुश्री रुचि साहू को दतिया, उन्नाव, भांडेर में विज्ञान जागरूकता के लिए 11.80 रुपये मिले। गुना के सोनी कॉलोनी निवासी रणवीर जादोन को भी विज्ञान जागरूकता के लिए 2022 में 8 लाख रुपये स्वीकृत किये गए हैं। चंदेरी में दिल्ली दरवाजा निवासी शिल्पी जैन के एनजीओ सहारा महिला मंडल को युवा उद्यमियों में विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए 14.40 लाख की परियोजना को स्वीकृति मिली है जिसका क्रियान्वयन जारी है। एल 201 यमुनोत्री अपार्टमेंट नेहरू नगर पर रजिस्टर्ड निर्भय सिंह के जे. सी. बोस फाउंडेशन को मुरैना, ग्वालियर आगरा और झांसी में बच्चों को औद्योगिक इकाइयों का अवलोकन कराने के लिए 19.50 लाख की राशि 2022 के लिए स्वीकृत हुई है।
अनुदान पर फलफूल रहे एनजीओ
अंचल में की गई पड़ताल के बाद यह तथ्य सामने आया है कि विज्ञान या तकनीकी से जिन एनजीओ का कोई लेना देना नहीं है वे भी अनुदान से फलफूल रहे हैं। ग्वालियर अंचल में प्राय: सभी जिलों में कुछ खास एनजीओ ने पिछले दो तीन वर्षों में अनुदान हासिल किए है। जिनमें कुछ तो सुदूर गांवों के पते पर रजिस्टर्ड है जहां न इंटरनेट की पहुंच सुगम है न ऐसे पेशेवर विज्ञान विशेषज्ञ, जो अपनी स्थानीय क्षमताओं से भारत सरकार की मंशाओं के अनुरूप काम कर सकते हैं। अधिकतर एनजीओ के अपने व्यवस्थित कार्यालय या स्टाफिंग पैटन नजर नहीं आता। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि शिवपुरी जिले की करैरा तहसील में एक गांव है अलगी आवास। इस पते से प्रदीप गुप्ता की लक्ष्मी पर्यावरण समिति ने विज्ञान जागरूकता मेले के लिए 10.95 लाख रुपये का अनुदान प्राप्त किया है। तत्कालीन जिला संयोजक आदिम जाति कल्याण राजेश सिंह परिहार का कहना है कि मैं उस अवधि में शिवपुरी में पदस्थ रहा हूं लेकिन मेरी जानकारी में संकट ग्रस्त जनजाति युवाओं के बीच हरित कौशल विकास के लिए कभी कोई कार्य सामने नहीं आया शिवपुरी में जनजातीय समुदाय की ऐसी कोई श्रेणी नहीं है जो संकट ग्रस्त हो। वहीं जिला संयोजक आदिम जाति कल्याण राजकुमार सिंह का कहना है कि मैं शिवपुरी से पूर्व मालवा के अन्य जिलों में पदस्थ रहा हूं लेकिन पूरे सेवा काल मे कभी ऐसे काम करने वाले कोई एनजीओ मेरे सम्पर्क में नहीं आए।
22/02/2023
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