पंजाब की मटर ने फीकी की जबलपुर की चमक

मध्य प्रदेश

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश में किसान बड़े पैमाने पर मटर की खेती करते हैं। हालांकि इस साल किसानों को मटर की फसल का सही दाम नहीं मिल रहा है। इसकी वजह यह है कि इस बार पंजाब की मटर ने जबलपुर की मटर से पहले बाजार पर कब्जा कर लिया है।
जबलपुर का मटर बेंगलुरु, मुंबई और नागपुर, मद्रास तक भेजी जाती रही है। इस बार बड़े शहरों में पंजाब के मटर की डिमांड ज्यादा है। इससे जबलपुर के मटर की चमक फीकी पड़ गई है। किसान जितेंद्र देसी ने बताया कि बाहर 20 रुपए किलो मटर के रेट्स मिल रहे हैं, जबकि किराया 12 रुपए किलो पड़ रहा है। इससे घाटा हो रहा है।  देश भर में मशहूर जबलपुर का मटर की इस बार पूछ-परख कम हो गई है। यही कारण है कि मटर उत्पादक किसान इस बार मटर की खेती कर पछता रहे हैं।  हाल ये हैं कि किसान लागत तक नहीं निकाल पा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि तत्कालीन कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी. ने किसानों को मटर लगाने के लिए प्रोत्साहित किया था। इससे गत वर्ष 30 हजार हेक्टेयर की बजाय 50 हजार हेक्टेयर में मटर का उत्पादन किया गया, लेकिन बाहर से  मटर का ऑर्डर न मिलने के कारण लोकल में भी मटर के रेट्स नहीं मिल पा रहे हैं।
बीते साल मटर में अच्छा मुनाफा: किसानों का कहना है कि बीते साल तो मटर में अच्छा मुनाफा हुआ था, लेकिन इस साल बेहद ही निराशा है। जबलपुर की मंडी में मटर का भाव 8 से 15 रुपए किलो चल रहा है जबकि, बड़े शहरों में मटर के दाम काफी ऊपर है। जबलपुर में सबसे अच्छी क्वालिटी का मटर 15 से 20 किलो है, जो कि अन्य प्रदेशों में 40 से 50 रुपए किलो तक बिक रहा है।
किसानों की मानें तो आमतौर पर सितंबर अक्टूबर में होने वाली बोनी इस वर्ष  बरसात की वजह से लेट हुई उसके बाद फिर पानी गिरने से फसल भी खराब हुई, बची जो फसल थी तो उसके दाम भी कम मिल रहे हैं। थोक व्यापारी अजीत साहू ने बताया कि जबलपुर में पहले व दूसरे राउंड का मटर बारिश की भेंट चढ़ गया। फल्लियां सड़ऩे से उत्पादन कम रहा। अब तीसरे राउंड के मटर की ज्यादा आवक होने से मांग घट गई है।
उचित मूल्य नहीं मिलने से किसान परेशान
वर्तमान में जबलपुर में मटर 18 से 20 रुपए किलो बिक रहा है। जिसकी वजह से किसानों की लागत भी निकलना मुश्किल है। आपको बता दें कि मध्य प्रदेश में एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत जबलपुर जिले के लिए मटर का चयन हुआ था। जिला प्रशासन ने इस योजना का लाभ किसानों को मिले इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। किसानों का कहना है एक जिला एक उत्पाद योजना का किसानों को सीधा लाभ नहीं हो रहा है।

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