
- बाल आयोग के निर्देशों को भी उड़ा डाला हवा में
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में कितने मदरसे वैध हैं और कितने अवैध रुप से संचालित किए जा रहे हैं, यह किसी को भी पता नहीं है। इस मामले में स्कूल शिक्षा विभाग से लेकर पुलिस महकमा तक पूरी तरह से लापरवाह बना हुआ है। प्रदेश में यह हाल तब हैं, जबकि मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग इसके लिए सात माह पहले ही निर्देश दे चुका है। हद तो यह है कि आयोग के निर्देश को भी इन विभागों ने गंभीरता से ही नहीं लिया। यही वजह है कि यह जानकारी जुटाने के लिए वैध-अवैध मदरसों का भौतिक सत्यापन तक नहीं किया गया। यही नहीं जिम्मेदार इन दोनों विभागों के पास यह भी जानकारी नहीं हैं कि कितने मदरसों को अनुदान दिया जाता है और कितनों की नहीं। यही नहीं यह भी पता करने के भी प्रयास नहीं किए गए हैं कि मदरसों में पढ़ रहे विद्यार्थियों को क्या सुविधाएं मिल रही हैं। शैक्षणिक स्तर का मापदंड क्या है? इस मामले में जब आयोग ने हिदायत दी तो स्कूल शिक्षा विभाग ने यह जरुर बता दिया कि प्रदेश में 2286 और भोपाल में 423 मदरसे ही पंजीकृत हैं। इनकी निगरानी ब्लॉक रिसोर्स कोऑर्डिनेटर के जरिए कराई जाती है। इस मामले में विभाग का तर्क है कि गिनती तो नहीं की गई है, लेकिन समय- समय पर जांच जरूर की जाती है। अब आयोग चाहता है कि इस मामले में दोबारा जांच हो।
इसलिए फिर पकड़ा मामले ने तूल
दरअसल हाल ही में विदिशा जिले में 35 बच्चों के स्कूल से मदरसे में प्रवेश लेने और कुछ बच्चों के मुसिलम नाम रखे जाने की खबरें आने के बाद से एक बार फिर अवैध और वैध मदरसों का मामला तूल पकड़ रहा है। इसी साल करीब छह माह पहले भोपाल में भी दो मदरसों में बिहार के करीब आधा दर्जन जिलों से बच्चों को लाकर रखने का खुलासा हुआ था। जिसकी शुरू में तो जांच की गई , लेकिन मामले के शांत होते ही यह जांच भी बंद कर दी गई। इसी तरह से कुछ समय पहले शहर में दो अवैध चल रहे मदरसों को भी बंद कराया गया था।
मदरसों के बच्चों को होता है नुकसान
दरअसल दीनी तालीम के आधार पर कॉलेजों में प्रवेश नहीं मिलता है। इसकी वजह है मदरसों में केवल उर्दू भाषा ही पढ़ाई जाती है। इसकी वजह से उन्हें महज उर्दू यूनिवर्सिटी में ही प्रवेश मिलता है। यदि दीनी तालीम के बाद मप्र में उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश लेना है तो उसके लिए एसोसिएशन आॅफ इंडियन यूनिवर्सिटी से अनुमति लेनी होती है।