
- मप्र पर्यावरण संरक्षण में निभा रहा महत्वपूर्ण भूमिका
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत मिशन के तहत देश में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में नई संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। इसी को देखते हुए देश के हृदय स्थल मध्यप्रदेश को सौर ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। कोयले से बिजली बनाने में अग्रणी रहा मध्यप्रदेश अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कुशल नेतृत्व में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी देश में अपनी नई पहचान बना रहा है और पर्यावरण के संरक्षण में अपनी बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर में हर घर जल पहुंचाने के लिए अब सौर ऊर्जा का उपयोग होगा। इसके लिए जलूद में सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया जाएगा। यहां अभी नर्मदा का जल परंपरागत बिजली के माध्यम से घरों में पहुंचाया जाता है।
मप्र में सौर ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। प्रदेश में पिछले 10 साल में नवकरणीय क्षमता में 11 गुना वृद्धि हुई है। औसतन हर साल सौर परियोजनाओं में 54 प्रतिशत और पवन परियोजनाओं में 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके चलते प्रदेश ने अब इस क्षेत्र में तीसरा स्थान हासिल कर लिया है। पहले नंबर पर गुजरात और दूसरे स्थान पर राजस्थान है। विभाग का दावा है कि एक साल के भीतर राजस्थान से आगे निकल जाएंगे। प्रदेश में अब 6 हजार मेगावाट से अधिक सोलर बिजली उत्पादन क्षमता हो गई है। यहां विश्व का सबसे बड़ा 750 मेगावाट क्षमता का सोलर प्लांट रीवा में है। चार हजार करोड़ की लागत से निर्मित रीवा सौर परियोजना में बिजली उत्पादन प्रारंभ भी चुका है और दिल्ली मेट्रो को बेची जाने लगी है। अभी उत्पादन क्षमता 2,567 मेगावाट है। इससे आठ सौ लोगों को रोजगार भी मिला है।
स्वच्छ ऊर्जा की असीम संभावनाएं
मप्र में स्वच्छ ऊर्जा की असीम संभावनाएं हैं। अक्षय ऊर्जा के तय लक्ष्यों को समय पर पूरा करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की संस्थाएं एकजुट होकर प्रयास कर रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मानना है हमें इस धरती को बचाना है तो पर्यावरण को बचाना होगा। इसके लिए जहां वह हर दिन वृक्षारोपण करने पर जोर दे रहे हैं वहीं, प्रदेश में किसानों की मदद से सौर ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने की दिशा में बड़ी कार्य योजना तैयार कर रहे हैं। आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश के अपने मिशन को पूर्ण करने के लिए उनके द्वारा 2023 तक 45,000 सोलर पंप किसानों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। वहीं पवन विद्युत परियोजनाओं में मध्यप्रदेश देश में सातवें स्थान पर है। जानकारों की मानें तो इसके पीछे प्रमुख कारण माना जा रहा है कि राज्य में पानी के बड़े स्त्रोत नहीं है। जबकि तमिलनाडु में समुद्र का किनारा है। इस राज्य में सबसे ज्यादा परियोजनाएं हैं।
10 साल में नवकरणीय क्षमता में 11 गुना वृद्धि
वर्ष 2012 में प्रदेश में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता 500 मेगावाट से भी कम थी। पिछले 10 साल में नवकरणीय क्षमता में 11 गुना वृद्धि हुई है । औसतन हर साल सौर परियोजनाओं में 54 प्रतिशत और पवन परियोजनाओं में 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ओंकारेश्वर में बन रहा फ्लोटिंग सौर ऊर्जा संयंत्र में आगर, शाजापुर, नीमच में अगले वर्ष से सौर ऊर्जा का उत्पादन शुरू कर दिया जाएगा। छतरपुर और मुरैना में सौर 600 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता है। परियोजना हायब्रिड और स्टोरेज के साथ विकसित की जाएंगी। प्रमुख सचिव ऊर्जा संजय दुबे का कहना है कि सौर ऊर्जा उत्पादन में हम भले ही देश में तीसरे स्थान पर हैं लेकिन प्रदेश में ही विश्व का पहला सयंत्र स्थापित हो • रहा है। गुजरात के पास समुद्र है, कच्छ इलाके में सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं। तमिलनाडु में समुद्र होने से पवन उद्योग की संभावनाएं ज्यादा हैं। फिर भी हमें विश्वास है कि सौर ऊर्जा में राजस्थान से आगे निकलेंगे।