गंभीर लापरवाही: सूबे के ढाई सौ तालाबों को लील गया भू माफिया

भू माफिया

भोपाल/गौरव चौहान /बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है , जिसमें अधिकांश शहरी व ग्रामीण इलाकों में तालाब ही पानी का प्रमुख स्रोत है, लेकिन यही तालाब भू माफिया और सरकारी अनदेखी का शिकार जमकर हो रहे हैं, फलस्वरुप उनका अस्तित्व ही समाप्त होता जा रहा है। हालात यह है कि बीते कुछ सालों में करीब ढाई हजार तालाब ही गायब हो चुके हैं। अगर सरकारी लापरवाही इसी तरह की बनी रही तो वो दिन दूर नहीं जब प्रदेश के कई इलाकों से तो तालाबों का नामोनिशान ही समाप्त हो जाएगा। यह बात अलग है कि सरकारी महकमा इसके बाद भी यह मानने को तैयार नही है कि प्रदेश में किसी तालाब पर अतिक्रमण किया गया है या फिर किसी तालाब को नष्ट किया गया है।  सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में वैसे तो कुल छोटे -बडेÞ तालाबों की संख्या करीब चार लाख है। इनमें भी अगर बड़े तालाबों की बात की जाए तो शहरी व ग्रामीण इलाकों के पास बड़े तालाब यानि की दो हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल वाले तलाबों की संख्या 15 हजार है।
इनमें से जल-संसाधन विभाग के पास 21 बड़े, 101 मध्यम और 5116 छोटे तालाब हैं। विभाग का दावा है कि किसी तालाब में अतिक्रमण नहीं है।  इस दावे की जब पड़ताल की गई तो सरकारी दावों की हवा पूरी तरह से खुल गई। पड़ताल से हुए खुलासे में अकेले 13 जिलों में सरकारी अनदेखी व भू माफिया द्वारा  260 तालाब को लील लिया गया है। राहत की बात यह है कि इन जिलों में अब भी 500 से ज्यादा तालाबों से सिंचाई या पेयजल की जरूरतें पूरी की जा रही हैं। यही नहीं प्रदेश में मौजूद तालाबों में से अधिकतर पर अतिक्रमण का काम जारी है। 13 जिलों में से ऐसा कोई नहीं है जहां पर तालाबों पर कब्जे नहीं हों। इसमें भी सबसे दयनीय हालत जबलपुर की है। इस जिले में 52 तालाब व 84 तलैया हैं , लेकिन इनमें से 16 तालाब अब गायब हो चुके हैं। इसके बाद भी जो बचे हुए हैं वे सरकार की अनदेखी की वजह से अब गंदा पानी मिलने से सीवर टैंक के रुप में पहचान बना चुके हैं। हद तो यह हो गई है यहां प्रशासन ने तालाब पूर कर निर्माण करा दिए। मढ़ोताल अब सिविक सेंटर एरिया हो गया। हाथीताल को भी कॉलोनी की शक्ल दे दी गई है। इसी तरह से राजधानी से सटे रायसेन में भी 4 तालाब गायब हो चुके हैं। विदिशा में कई तालाबों को खेतों का रूप दे दिया गया है।
इस तरह के हाल हैं जिलों में
रायसेन जिले में चार तालाब लापता हो चुके हैं और दो में खेती की जा रही है। इस जिले में हलाली, बारना, रातापानी, दाहोद, पलकमति समेत 8 बड़े और 20 छोटे तालाब हैं। दाहोद बांध रिस रहा है। पुराने तालाबों में अधिकतर पर अतिक्रमण है। कुछ तालाबों में सिंघाड़े की खेती की जा रही है। विदिशा जिले के उदयपुर, ग्यारसपुर के मानसरोवर के तालाब पर जमकर अतिक्रमण है। लोग खेती भी कर रहे हैं।  हाजीबली, महामाई तालाब अतिक्रमण से अपना वजूद ही खो चुके हैं। जंबार, घटेरा, पुरागुसाई, हैदरगढ़, पठारी तालाब से सिंचाई व सिंघाड़े की खेती हो रही है। उधर, सीहोर जिले में हालात कुछ अच्छे हैं। जिले में तालाबों की संख्या 65 है जो अभी खुद को बचाए हुए हैं। पर अब इन पर भी कब्जा होना शुरू हो गया है। जमोनिया, भगवानपुरा, काहिरी. आष्टा के रामपुरा तालाब का पानी लोग पीने के लिए उपयोग कर रहे हैं।
सर्वाधिक तालाब शहडोल में हुए गायब
यहां 300 से अधिक तालाब थे, लेकिन अंधाधुंध निर्माण व अतिक्रमण से अधिकतर गायब हो गए। 60 तालाब बचे हैं। इनमें से दो तालाबों के जीर्णोद्धार किया गया ह ै। यही नहीं कुछ के लिए योजना बनी, पर जमीन पर अब तक नहीं अतर सकीं हैं। इसी तरह से मंडला जिले में 12 तालाबों पर अतिक्रमण हो चुका है। इनमें बिनैका, बिझिया, बड़ी खैरी, लालीपुर के तालाब शामिल हैं। यहां माफियाओं ने मिट्टी, मुर्रम से तालाब को समतल कर दिया। अब यहां कई निर्माण हो गए। गुना जिले के के, सिंगवासा, भुजरिया, गोपालपुरा, जगनपुरा में पानी तो है , लेकिन इन तालाबों पर अतिक्रमण है। अनूपपुर का तालाब भी  अतिक्रमण से सिकुड़ रहा है। दुर्गा मंदिर तालाब में गंदगी भरी हुई है। लगभग यही हालात अन्य जिलों के तालाबों की भी है।

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