मप्र ने एक बार फिर देहदान में मारी बाजी

मध्यप्रदेश

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश ऐसा राज्य बन गया है ,जहां पर लोग अब देहदान के मामले में बेहद जागरूक हो चुके हैं। खासतौर पर भोपाल में इसको लेकर जागरूकता तेजी से बढ़ रही है।  इसका फायदा चिकित्सा की पढ़ाई करने वाले छात्रों को भी मिल रहा है। यही वजह है कि इस मामले में मप्र सेंट्रल इंडिया में पहले नंबर पर आ चुका है।  अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो इस साल बीते 6 माह में भोपाल के 22 लोगों द्वारा तो अपनी देहदान की ही जा चुकी है , जबकि अभी  152 से अधिक लोगों द्वारा देहदान करने की इच्छा जताते हुए रजिस्ट्रेशन फॉर्म भी भरे जा चुके हैं। यही वजह है कि भोपाल देहदान के मामले में आगे चल रहा है।  भोपाल के बाद इंदौर दूसरा ऐसा शहर है जो दूसरे नंबर पर बना हुआ है।  खास बात यह है कि मप्र अकेले देहदान के मामले में ही नहीं, बल्कि नेत्रदान में भी आगे है।  यह बात अलग है कि प्रदेश में इस मामले में भी भोपाल ही आगे है। भोपाल में बीते छह माह में 26 नेत्रदान हुए हैं।  गांधी मेडिकल कॉलेज के फॉरेंसिक विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अविनाश ठाकुर का कहना है कि जब भी कोई नई तकनीक आती है, तो उसे सीखने और प्रैक्टिकल के लिए कैडेवरिक वर्कशॉप (मानव शरीर पर प्रयोग ) के लिए बॉडी की जरुरत होती है। अगर मेडिकल कॉलेज में किसी मनुष्य का शरीर नहीं होता है तो फिर कई  डॉक्टर जटिल ऑपरेशन करने से पहले जानवरों के मृत शरीर पर भी प्रैक्टिकल करते हैं। देहदान से डॉक्टरों को काफी सहूलियत हो जाती है।
पहली बार इंदौर को पीछे छोड़ा
देहदान जागरूकता के लिए काम करने वालों का कहना है कि देहदान और अंगदान के साथ ट्रांसप्लांट में लगभग हमेशा ही इंदौर पहले नंबर पर आता रहा है, लेकिन बीते कुछ सालों में भोपाल में भी इस मामले में जागरूकता बढ़ी है। कई मेडिकल कॉलेज भी अवेयरनेस प्रोग्राम चला रहे हैं। यही वजह है कि भोपाल में देहदान बढ़ रहा है। दरअसल एक देह पर मेडिकल छात्र 2 से 5 साल तक प्रैक्टिकल करते हैं। इसके बाद नई देह की जरूरत होती है। अगर कोई मौत के बाद देहदान करना चाहता है तो परिजन को 6 घंटे के भीतर संबंधित मेडिकल कॉलेज को इसकी जानकारी देनी होती है क्योंकि, इसके बाद बॉडी डिकम्पोज होने लगती है या फिर डीप फ्रीजर के माध्यम से हम 48 घंटों के भीतर देहदान कर सकते हैं। कुछ लोग जीते जी तो बहुत अच्छा काम करते हैं, लेकिन मरने के बाद भी समाज के काम आते हैं। ऐसे लोगों में जो अपनी मौत के बाद अपने अंग दान कर देते हैं या फिर कॉलेजों में अपनी देह दान कर मेडिकल स्टडी कर रहे बच्चों के काम आते हैं।
कौन-कौन से अंग किए जा सकते हैं डोनेट
अंगदान दो तरह का होता है। पहला जीवित अंगदान और दूसरा मृत्यु के बाद अंगदान। जीवित अंगदान में कोई व्यक्ति किडनी और पैंक्रियास का कुछ हिस्सा जरूरतमंदों की मदद के लिए दान कर सकता है। मृत्यु के बाद अंगदान में मृत व्यक्ति के वो सभी अंग दान किए जा सकते हैं जो ठीक से काम करते हो। अंगदान में सामान्य रूप से 8 अंग शामिल हैं, जिनका दान किया जा सकता है। मृत व्यक्ति का किडनी, लीवर, फेफड़ा, हृदय, पैंक्रियास और आंत का अंगदान किया जा सकता है। जीवित शख्स अगर चाहे तो वो अपनी एक किडनी, एक फेफड़ा, लीवर का कुछ हिस्सा, पैंक्रियास और आंत का कुछ हिस्सा दान कर सकता है।  इसके अलावा आंखों समेत बाकी तमाम अंगों दान मृत्यु के बाद ही किया जाता है।

Related Articles