पानी के पहरेदारों की लापरवाही पड़ रही जल स्रोतों पर भारी

जल स्रोतों
  • जिम्मेदार नहीं दिखा पा रहे हैं सक्रियता  …

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। कहते हैं जब चौकीदार सो जाता है , तो चोरी जरुर हो जाती है। ऐसा ही कुछ है भूमिगत जल के दोहन के मामले में। इसकी वजह से अब अधिकांश प्रदेश के इलाके में पानी का जलस्तर तेजी से कम हो रहा है। दरअसल जल दोहन के लिए केंद्र सरकार द्वारा भले ही नियम बना दिया गया लेकिन उस पर अमल करवाने वाले अब भी गहरी नींद में सोए हुए हैं। यही वजह है कि बनाए गए नियमों का पालन ही नहीं हो पा रहा है। दरअसल दो साल पहले बड़े उद्योगों और आवासीय परिसरों के लिए बोरवेल की अनुमति केंद्रीय भू जल बोर्ड से लेना अनिवार्य किया जा चुका है, लेकिन इसका पालन ही नहीं हो रहा है। इसमें बोर्ड संबंधित क्षेत्र में पानी की उपलब्धता के आधार पर ही अनापत्ति प्रमाण पत्र देता है। इसकी वजह है पानी के दोहन को नियंत्रित करना। अगर इस मामले में प्रदेश की कहीकता देखी जाए तो बीते दो सालों में मात्र 525 लोगों ने ही अनापत्ति प्रमाण पत्र लिया है। अगर इस मामले में भोपाल की बात की जाए तो यह ऐसा शहर है जहां पर भू-जल स्तर इस साल का छोड़ दिया जातए तो बीते तीन सालों में तेसी से नीचे गया है। अच्छी बात यह है कि इस साल अधिक बारिश होने की वजह से जल स्तर में जरुर कुछ हद तक सुधार हुआ है। अगर औसत से अधिक बारिश नहीं होती तो इस साल भी भू जल स्तर में गिरावट का दौर जारी रहता। खास बात यह है कि प्रदेश में निकायों के पास नए आवासों में भू जल रिचार्ज का सिस्टम देखने व लगवाने का अधिकार है , लेकिन इस मामले में निकायों के अफसर भी पूरी तरह से नकारा साबित होते आ रहे हैं। लगभग यही हाल केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड का भी है। केन्द्र सरकार द्वारा 24 सितंबर 2020 को भूजल का दोहन करने से पूर्व केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने का नियम बनाकर उसे लगो कर दिया गया था, लेकिन वह भी सक्रिय नजर नहीं आ रहा है। नियमानुसार बोरवेल से प्रतिदिन हो रहे जल के उपयोग केंद्रीय भूमिगत जल की मात्रा के आधार पर शुल्क वसूलता है, लेकिन प्रदेश में इस नियम का भी पालन नहीं हो पा रहा है। इसकी वजह है नियम के बाद भी लोगों द्वारा भू-जल केंद्र से एनओसी का नहीं लिया जाना। इसके साथ ही केंद्र के नियम के बाद भी शासन-प्रशासन ने प्रदेश में चल रहे बोरवेल की सटीक जानकारी अब तक नहीं जुटाई है। बोर्ड के अधिकारी के अनुसार प्रदेश में भूजल का दोहन कर रहे बोरवेल की संख्या भी उनके पास नहीं है।
इनके लिए है एनओसी जरूरी
नियम के अनुसार शहरी क्षेत्र में सभी रहवासी अपार्टमेंट, हाउसिंग सोसायटी और सभी सरकारी जलापूर्ति एजेंसियों के अलावा भू-जल का उपयोग करने वाले सभी उद्योग, खनन और आधारभूत परियोजना से जुड़े संस्थानों के साथ ही माइक्रो और छोटे उद्योग के लिए भी अनुमति लेना जरुरी है।
क्रिटिकल कंडीशन में पहुंच रहा जल स्तर  
बीते साल की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश का भू-जल स्तर लगातार घट रहा है।  इंदौर के लिए भू-जल के मामले में खतरे की घंटी बज रही है। इसके अलावा   रतलाम, मंदसौर, शाजापुर, उज्जैन में भी भू-जल के मामले में स्थिति चिंताजनक हो गई है। यहां जितना पानी जमीन में जमा नहीं होता, उससे ज्यादा भू-जल निकाला जा रहा है। इंदौर के अलावा रतलाम, मंदसौर, शाजापुर, उज्जैन में भी भू-जल के मामले में स्थिति चिंताजनक है। यहां जितना पानी जमीन में जमा नहीं होता, उससे ज्यादा भू-जल निकाला जा रहा है। यह खुलासा डायनामिक ग्राउंड वॉटर रिसोर्स और मध्यप्रदेश की बीती  रिपोर्ट से हो चुका है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के 317 ब्लॉक में से 26 ब्लॉक ऐसे थे , जहां भू-जल भंडार लगभग खत्म होने के कगबार पर था, जबकि 50 ब्लॉक सेमी-क्रिटिकल श्रेणी में आंके जा चुके हैं।  
मुरैना में सर्वाधिक हालात खराब
बोर्ड द्वारा जिलों में स्थित विभिन्न कुओं के आधार पर भू-जल की स्थिति का आंकलन किया जाता है। 2021-22 के आंकड़ों के अनुसार सबसे ज्यादा मुरैना में जल स्तर 20 से 40 मीटर तक गिरा है। यहां स्थिति ज्यादा चिंताजनक है। भोपाल में भी कई जगहों पर भूजल स्तर जमीन से 10 से 20 मीटर नीचे चला गया है। भोपाल में 2020 में ऐसे कुओं की संख्या 10 थी, हालांकि अच्छी वर्षा के चलते 2021-22 में स्थिति में सुधार हुआ और इन कुओं की संख्या घटकर पांच पर आ गई है।
इन 26 ब्लॉक में हालात चिंताजनक
सूखे के मामले में बुंदेलखंड क्षेत्र की स्थिति भले ही खराब हो, लेकिन पानीदार समझे जाने वाले मालवांचल में भू-जल सूखने की करार पर पहुंच गए हैं. भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर सहित प्रदेश के 317 ब्लॉक में से 26 की स्थिति बेहद चिंताजनक है. इसमें इंदौर, रतलाम का भू-जल सूखने की कगार पर  हैं। हालांकि इस मामले में सबसे बेहतर स्थिति प्रदेश के डिंडोरी की है, यहां सिर्फ 10.64 फीसदी भू-जल का ही दोहन किया जा रहा है।

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