
शोध से हुआ यह खुलासा…
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की पुलिस कितने भी दावा करे, लेकिन हकीकत यह है कि वह वाहनों की तेज रफ्तार पर अंकुश नहीं लगा पा रही है। यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि, हाल ही में किए गए शोध की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है। इस शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश में होने वाली दुर्घटनाओं की बड़ी वजह वाहनों की तेज रफ्तार ही है, जिसकी वजह से लोगों की जाने जा रहीं हैं। इसके अलावा रिपोर्ट में दुघर्टना की दूसरी बड़ी वजह सड़कों की खामियों को भी बताया गया है। यह दोनों ही वजह से दुर्घटनाएं होती है और्र्र असमय ही लोगों की जान चली जाती है।
मौलाना आजाद प्रौद्योगिकी संस्थान, भोपाल (मैनिट) और सम्राट अशोक टेक्नॉलॉजिकल इंस्टीट्यूट, विदिशा (एसएटीआई) द्वारा किए गए शोध के लिए पुलिस ट्रेनिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (पीटीआरआइ) ने इसी साल मई में दोनों संस्थानों से एमओयू किया था। इसमें सड़क हादसों के कारणों को तलाश कर उसमें कमी लाने पर शोध किया जा रहा है। प्रदेश में बीते साल 48877 सड़क हादसों में 12057 मौतें हुई। इसमें तेज रफ्तार की वजह से 36895 हादसे हुए जिसमें 9541 मौतें हुईं।
रफ्तार की सीमा जरूरी: मैनिट के डिपार्टमेंट आॅफ आर्किटेक्ट एंड प्लानिंग विभाग के मुताबिक हादसों की वजह शहरी क्षेत्रों में वाहनों की गति सीमा का निर्धारण नहीं होना है। भोपाल के अलग-अलग क्षेत्र में हुए शोध के अनुसार, तेज गति पर चालानी कार्रवाई न होने से समस्या बढ़ी है। रिसर्च में इलेक्ट्रॉनिक स्पीड डिस्प्ले सिस्टम से राजधानी में इंदौर-भोपाल स्टेट हाईवे पर भैंसाखेड़ी व खानूगांव के पास वीआइपी रोड पर वाहनों की गति औसत तय सीमा 40 किमी प्रति घंटे की बजाय 65 किमी मिली। भैंसाखेड़ी पर चार पहिया 68 तो दोपहिया 48 से अधिक की गति से दौडते मिले। वीआइपी रोड पर चार पहिया गाड़ी की गति 55 व दोपहिया की 52 किमी से अधिक थी। तेज रफ्तार से दुनियाभर में सड़क हादसों में मौतों का आंकड़ा बढ़ने पर डब्ल्यूएचओ ने ट्वेंटी इज पलेंटी अभियान शुरू किया है। इसका उद्देश्य वाहनों की गति 20 मील प्रति घंटे तय करना है। मप्र में शहरी क्षेत्रों में 40 किमी प्रति घंटे की गति तय होने से हादसे कम होंगे। पुलिस रडार गन से गति नापती है। इसमें वाहन व चालक की तस्वीर नहीं आती। इलेक्ट्रॉनिक स्पीड डिस्प्ले सिस्टम से चालानी कार्रवाई संभव है। दिल्ली-यूपी के शहरों में इसका इस्तेमाल हो रहा है।
45 किमी में 30 ब्लैक स्पॉट
भोपाल से विदिशा के बीच 45 किमी का मार्ग सड़क हादसों के लिहाज से हमेशा से संवेदनशील है। यहां 30 से अधिक ब्लैक स्पॉट हैं। इस टू-लेन मार्ग की चौड़ाई कई जगह तय मानक 15 मीटर से कम है। मार्ग में जगह- जगह अतिक्रमण, स्ट्रीट लाइट, संकेतकों का न होना और रोड मार्किंग की कमी से हादसों की आशंका रहती है। एसएटीआई के छात्रों के साथ इस मार्ग रोड सेफ्टी आॅडिट किया। इसमें सामने आया मवेशियों की मौजूदगी, कृषि यंत्रों ट्रैक्टर-ट्रॉली की आवाजाही, ओवरलोड वाहन इस सड़क को असुरक्षित बनाते हैं। फुटपाथ न होने व सड़क किनारे शोल्डर न बनने से अधिक हादसे होते हैं। सूखी सेवनिया के पास बालमपुर घाटी में कर्व को दुरुस्त करने की जरूरत है। इसी तरह मैनिट की ग्राउंड रिसर्च में पता चला कि भोपाल के सुभाष नगर स्थित ओवरब्रिज और होशंगाबाद रोड के वीर सावरकर सेतु में कई इंजीनियिरंग डिफेक्ट हैं। यहां ब्रिज की लैंडिंग में खामियां हैं। साथ ही कर्व अधिक होने से हादसों की आशंका बनी रहती है।