शिव ‘राज’ की योजनाएं बनी नजीर

शिव ‘राज’
  • देश में विकास का पर्याय बना मप्र
  • चौतरफा विकास की ओर बढ़ रहा मप्र
  • आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश की दिशा में तेजी से कदम

2005 में जबसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बीमारू मप्र की कमान संभाली है, तब से लेकर आज तक मप्र देश में विकास का पर्याय बन गया है। आज मप्र सरकार की योजनाएं अन्य राज्यों के लिए नजीर बन गई हैं। शिवराज सरकार की दर्जनों योजनाओं को अन्य राज्यों ने अपने यहां लागू किया है। चौथी पारी में जबसे शिवराज ने सत्ता संभाली है, विकास की गति और तेज हो गई है। आज प्रदेश कई मामलों में देश के अन्य राज्यों से काफी आगे निकल चुका है।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
किसान पुत्र शिवराज सिंह चौहान ने जबसे प्रदेश की कमान संभाली है, तभी से स्वर्णिम मप्र के सपने को साकार करने में हर पल गुजरा है। आज विकास के विभिन्न क्षेत्र में उपलब्धियां अर्जित करते हुए मप्र तेजी से बदल रहा है। प्रदेश ने पिछले सालों में विकास के जो अध्याय लिखे हैं उससे कई राज्य सीख ले रहे हैं। सबसे बड़ी उपलब्धि तो यह है कि प्रदेश की विकास दर वर्तमान मूल्यों पर 19.7 प्रतिशत तक पहुंच गई जो देश में सर्वाधिक है। सकल घरेलू उत्पाद 10 लाख करोड़ है। पूजीगत व्यय भी 48 हजार करोड़ हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था का जो लक्ष्य तय किया है, उसे पूरा करने में मप्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इसके लिए मप्र में केंद्र सरकार की योजनाओं को तेजी से अमली जामा पहनाया जा रहा है। गौरतलब है कि मप्र केंद्र सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन में भी देश में अन्य राज्यों से काफी आगे है।
प्रदेश सरकार ने स्थायी विकास और आत्मनिर्भर मप्र की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए हैं। करीब 20 साल में प्रति व्यक्ति आय 13 हजार से बढक़र अब एक लाख 23 हजार रुपये हो गई है। औद्योगिक निवेश, मध्यम, सूक्ष्म और लघु उद्योगों को बढ़ाने के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं। इसका उद्देश्य स्वरोजगार को बढ़ाना है। रोजगार मेलों का जरिए अभी तक प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से 10 लाख से ज्यादा युवाओं को रोजगार दिलाया गया है। पहले मध्यप्रदेश की पहचान बिना सडक़ों वाले राज्य की थी। आज तीन लाख किलोमीटर शानदार सडक़ें बन गई हैं। मध्यप्रदेश पहले लालटेन का प्रदेश कहा जाता था। अब 24 घंटे बिजली देने वाला प्रदेश है। मध्यप्रदेश के खेत सूखे और कंठ प्यासे थे। साढ़े सात लाख हेक्टर में सिंचाई क्षमता थी जिसे बढ़ा कर 45 लाख हेक्टर कर लिया गया है। वर्ष 2026 तक सिंचाई क्षमता 65 लाख हेक्टेयर हो जाएगी। मध्यप्रदेश कुआँ और बावड़ी का पानी पीता था। अब 54 लाख घरों में सीधे नल कनेक्शन दिए गए हैं। सवा करोड़ घरों तक नल से जल पहुँचाने का अभियान चलाया जा रहा है। नई क्रांति की शुरूआत मध्यप्रदेश में की गई है। प्रदेश में पहले एक हजार बालकों पर 912 बालिकाएँ जन्म लेती थी। अब यह संख्या 976 हो गई है।

देश की सर्वाधिक विकास दर
मध्य प्रदेश ने पिछले सालों में विकास के जो अध्याय लिखे हैं उससे कई राज्य सीख ले रहे हैं। सबसे बड़ी उपलब्धि तो यह है कि प्रदेश की विकास दर वर्तमान मूल्यों पर 19.7 प्रतिशत तक पहुंच गई जो देश में सर्वाधिक है। सकल घरेलू उत्पाद 10 लाख करोड़ है। पूजीगत व्यय भी 48 हजार करोड़ हो गया है। प्रदेश सरकार ने स्थायी विकास और आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए हैं। करीब 20 साल में प्रति व्यक्ति आय 13 हजार से बढक़र अब एक लाख 23 हजार रुयये हो गई है। औद्योगिक निवेश, मध्यम, सूक्ष्म और लघु उद्योगों को बढ़ाने के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं। इसका उद्देश्य स्वरोजगार को बढ़ाना है। रोजगार मेलों का जरिए अभी तक प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से 10 लाख से ज्यादा युवाओं को रोजगार दिलाया गया है। बुनियादी सुविधाएं जैसे आवास, पानी, बिजली और सडक़ों का विस्तार किया जा रहा है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अभी तक 33 लाख आवास बनाए जा चुके हैं। मौजूदा वित्तीय वर्ष में इसके लिए 10 हजार करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। माफिया से 21 हजार एकड़ जमीन मुक्त कराई गई है। इस पर सुराज कालोनी बनाकर गरीबों को आवास दिलाए जाएंगे।
निवेश आए इसके लिए ग्लोबल इन्वेस्टर समिट ही नहीं, प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी होगा। लगभग 100 देशों के प्रतिनिधि उपस्थित होंगे। मध्यप्रदेश के इंदौर में बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय शामिल होंगे। खेलो इंडिया गेम्स भी मध्यप्रदेश में होंगे। शासकीय पदों पर बड़ी संख्या में नई भर्तियाँ की जाएंगी। रोजगार दिवस पर 2 लाख स्व-रोजगार के अवसर उपलबध कराए जाएंगे। आगामी 28 नवम्बर से नागरिकों को रहने के लिए जमीन का टुकड़ा देने का अभियान शुरू हो जाएगा। बालिकाओं की उच्च शिक्षा की फीस राज्य सरकार भरवाएगी। यह अभियान लगातार जारी रहेगा। प्रदेश का कोई बच्चा अनाथ नहीं रहेगा। मख्यमंत्री बाल आशीर्वाद योजना में नि:शुल्क शिक्षा दी जाएगी। मुख्यमंत्री खेत सडक़ योजना में खेतों तक सडक़ ले जाने का कार्य करेंगे। नशा विनाश की जड़ है। नशा नहीं करें। गाँव को नशा मुक्त करें और स्वयं भी नशे से दूर रहे।

नल का पानी पहुंचाना लक्ष्य
जल जीवन मिशन के तहत एक करोड़ 22 लाख परिवारों को 2024 तक नल का पानी पहुंचाया जाना है, जिसमें 53 लाख घरों तक पानी पहुंच चुका है। बुरहानपुर देश का पहला जिला है जहां सभी घरों में नल का पानी मिल रहा है। देश की आजादी और फिर राज्य का गठन जैसी घटनाओं का साक्ष्य इतिहास के रूप में हमारे सामने उपस्थित रहा है। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। कल, आज और कल के पूरे परिदृश्य में जल प्रत्येक जीव की पहली जरूरत रही है। कालांतर में ग्रामीण आबादी की पेयजल व्यवस्था के स्रोत कुआँ, बाबड़ी, तालाब, पोखर और नदियाँ जरूर रहे हैं, लेकिन परिवार की जल व्यवस्था की जिम्मेदारी हमारी आधी आबादी (महिलाओं) पर ही रही है। पानी के स्त्रोत कितनी भी दूर हों और मौसम कैसा भी दुष्कर, पर पानी लाने का काम माँ, बहन, बहू और बेटियों को ही करना होता था। प्रदेश के विकास और जन-कल्याण के लिए समय के अनुरूप बदलाव की आवश्यकता और सुगमता को देखते हुए प्रदेश में मुख्यमंत्री पेयजल योजना और राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के कार्य प्रारंभ किये गये। इनमें ग्रामीण आबादी के घरों में नल कनेक्श्न से पेयजल उपलब्ध करवाने का कार्य हुआ। केंद्र, राज्य और वित्तीय संस्थाओं के सहयोग से अप्रैल 2020 तक 17 लाख 72 हजार ग्रामीण परिवारों तक नल कनेक्शन से जल पहुँचाया गया।
अब तक प्रदेश के 6 हजार 783 ग्राम शत-प्रतिशत हर घर जल युक्त हो चुके हैं, इनमें से केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा सर्वाधिक सर्टिफाइड घोषित ग्रामों की संख्या मध्यप्रदेश की ही है। अब तक प्रदेश के 53 लाख 97 हजार 911 ग्रामीण परिवारों तक नल से जल पहुँचाया जा चुका है। इसी श्रंखला में ग्रामीण क्षेत्र में संचालित 41 हजार 271 आँगनवाडिय़ों और 71 हजार 92 शालाओं में नल कनेक्शन से जल उपलब्ध करवाने की व्यवस्था भी की गई है। शेष शालाओं एवं आँगनवाडिय़ों में भी नल कनेक्शन के कार्य निरंतर जारी हैं। हमारा प्रदेश 12 बड़े राज्यों में सर्वाधिक ग्रामों को शत-प्रतिशत हर घर जल उपलब्ध करवाने में दूसरे पायदान पर है। विभाग की मिशन की व्यूह-रचना में प्रदेश के करीब एक करोड़ 20 लाख लक्षित ग्रामीण परिवारों में से शेष रहे परिवारों को केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित वर्ष 2024 की समय-सीमा में नल कनेक्शन से जल पहुँचाना है। विभागीय सर्वेक्षण में 10 हजार 409 ग्राम स्त्रोत विहीन पाये गये हैं। राज्य शासन ने इन ग्रामों की जल-प्रदाय योजनाओं के लिए जल-स्त्रोत आकलन समिति गठित की है, जो वैकल्पिक स्त्रोत के संबंध में सूक्ष्म परीक्षण कर रिपोर्ट देगी जिसके आधार पर जल-संरचनाओं के निर्माण के कार्य प्रारंभ किए जा सकेंगे।

बिजली उत्पादन क्षमता
प्रदेश की बिजली उत्पादन क्षमता 21 हजार मेगावाट तक पहुंच गई है। दो हजार 444 मेगावाट बिजली पवन ऊर्जा और दो हजार 452 मेगावाट सौर ऊर्जा से तैयार की जा रही है। विद्युत एक महत्वपूर्ण कार्य क्षेत्र है। वर्ष 2003-04 में जब हमारी सरकार सत्ता में आई, उस समय प्रदेश में बिजली की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। आये दिन विद्युत कटौती होती थी एवं उद्योगों और कृषकों को भी नियमित विद्युत प्रदाय नहीं हो पा रहा था। उस समय हमारी सरकार ने प्रदेश के विद्युत क्षेत्र में सुधार को एक चुनौती के रूप में लिया और न केवल प्रदेश को बिजली के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनाया, अपितु विद्युत आधिक्य वाले राज्य के रूप में भी स्थापित किया। वर्ष 2003-04 में प्रदेश की विद्युत उपलब्ध क्षमता मात्र 5173 मेगावॉट थी, जो आज 21 हजार 615 मेगावॉट हो गई है, जिसमें नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों का योगदान 4080 मेगावाट है। मैं यह बताना चाहूँगा कि वर्ष 2003-04 में नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों से राज्य की संबद्ध क्षमता शून्य थी। इसी दौरान म.प्र. पावर जनरेटिंग कंपनी की उत्पादन क्षमता को भी 2148 मेगावाट से बढा़ कर 5400 मेगावाट किया गया। यह भी अवगत कराना चाहूँगा कि वर्ष 2003-04 में राज्य में कुल विद्युत प्रदाय मात्र 2860 करोड़ यूनिट था, जो अब तीन गुने से अधिक बढ़ कर 8670 करोड़ यूनिट हो गया है। हमारी सरकार द्वारा विद्युत अधो-संरचना के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य किए गए हैं। अति उच्च दाब लाइनों की लम्बाई, जो वर्ष 2004 में मात्र 18 हजार 48 सर्किट कि.मी. थी, अब बढ़ कर 41 हजार 325 सर्किट कि.मी. एवं अति उच्च दाब उप केन्द्रों की संख्या जो वर्ष 2004 में 162 थी, अब बढक़र 406 हो गई है। इसी प्रकार 33 के.व्ही. लाइनों की लम्बाई वर्ष 2004 में 29 हजार 556 कि.मी. से बढ़ कर वर्तमान में 57 हजार 905 कि.मी. तथा 11 के.व्ही. लाइनों की लम्बाई 1 लाख 60 हजार 865 कि.मी. से बढ़ कर वर्तमान में 4 लाख 63 हजार 449 कि.मी. पर पहुँच गई है। वितरण ट्रांसफार्मरों की संख्या, जो वर्ष 2004 में मात्र 1 लाख 68 हजार 346 थी, अब बढ़ कर 9 लाख 53 हजार 295 हो गई है।
प्रदेश के इतिहास में 24 दिसंबर, 2021 को अभी तक की सर्वाधिक 15 हजार 692 मेगावाट शीर्ष माँग की पूर्ति की गई। प्रदेश की वर्तमान ट्रांसमिशन क्षमता में बढ़ती हुई माँग के अनुरूप वृद्धि की जा रही है। प्रदेश में पारेषण हानियाँ अब मात्र 2.63 प्रतिशत रह गई है, जो पूरे देश में न्यूनतम हानियों में से एक है। वर्ष 2003-04 में राज्य में वितरण कंपनियों की एटी एंड सी हानियाँ 49.60 प्रतिशत थी, ये सरकार के विशेष प्रयासों का ही परिणाम है कि वर्ष 2021-22 में यह हानियाँ कम होकर 20.32 प्रतिशत रह गई है। हमारी सरकार का यह प्रयास रहा है कि प्रदेश के प्रत्येक व्यक्ति को विद्युत उपलब्ध हो, परिणामस्वरूप वर्ष 2003-04 में विद्युत उपभोक्ताओं की संख्या 64 लाख 4 हजार थी, जो अब बढ कर 171 लाख हो गई है। उपभोक्ताओं की संख्या बढऩे के साथ हमारा यह प्रयास रहा है कि हर उपभोक्ता को आवश्यकता के अनुरूप विद्युत उपलब्ध हो। इसके फलस्वरूप प्रदेश में विद्युत की प्रति व्यक्ति खपत, जो वर्ष 2003-04 में 451 यूनिट थी, वर्ष 2021-22 में बढ़ कर 1032 यूनिट हो गई है। हमारी सरकार द्वारा विद्युत क्षेत्र में किए गए विशेष प्रयासों के फलस्वरूप ही आज हम कृषि उपभोक्ताओं को नियमित रूप से 10 घंटे एवं गैर कृषि उपभोक्ताओं को 24 घंटे गुणवत्तापूर्ण विद्युत प्रदाय करने में सफल हुए हैं। इस व्यवस्था को सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए सभी विद्युत कंपनियों की वित्तीय साध्यता सुनिश्चित करने के साथ ही सेवाओं में उत्तरोत्तर बेहतरी लाते हुए उपभोक्ता संतुष्टि में वृद्धि करने के प्रयास किए जा रहे हैं

सीएम राइज स्कूल से साक्षर होगा मप्र
शिक्षा की गुणवत्ता और बेहतर करने के लिए प्रदेश में 360 सीएम राइज स्कूल बनाए जा रहे हैं। इन्हें बनाने में सात हजार करोड़ रुपये खर्च आएगा। डाक्टरों की कमी दूर करने के लिए मेडिकल कालेजों की संख्या बढ़ाई जा रही हैं। अभी 13 कालेजों में दो हजार 35 एमबीबीएस सीटें हैं। पांच साल में 11 और कालेज खोले जाएंगे। इसके साथ एमबीबीएस सीटें तीन हजार 250 हो जाएंगी। प्रदेश के 274 स्कूलों को सीएम राइज के तहत चिन्हित किया गया है। इन स्कूलों के नए भवन का डिजाइन तैयार कर लिया गया है। इन स्कूलों का भवन 40 प्रतिशत ग्रीन बिल्डिंग के कांसेप्ट पर तैयार किया जाएगा। इन स्कूलों को एक से डेढ़ साल में बनाकर तैयार कर लिया जाएगा। ये स्कूल आम स्?कूलों से इन मायनों में अलग हैं कि इनमें शिक्षकों की पदस्थापना परीक्षा के माध्यम से और प्राचार्यों व उपप्राचार्यों की नियुक्ति साक्षात्कार के माध्यम की गई है। इनके पदस्थापना की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। इन स्कूलों में शिक्षकों को एक दिन में चार कक्षाएं लेना अनिवार्य होगा। साथ ही आनलाइन ट्रैकिंग भी की जाएगी। एक कक्षा में 40 से अधिक बच्चे नहीं होंगे, यानी एक दिन में एक शिक्षक को 160 बच्चों को पढ़ाना होगा। पहली से आठवीं तक के स्कूलों में 1184 से अधिक बच्चे नहीं होंगे। वहीं पहली से बारहवीं तक के स्कूलों में चार हजार से अधिक बच्चे नहीं होंगे। स्कूलों के भवन का डिजाइन तैयार कर लिया गया है। शिक्षकों के लिए आवासीय सुविधा उपलब्ध होगी, ताकि अधिकतर समय उनका आवागमन में बर्बाद ना हो। बता दें, कि जहांगीराबाद स्थित रशीदिया स्कूल को सीएम राइज योजना के तहत पायलट प्रोजेक्ट के तहत तैयार किया गया है। वहीं सीएम राइज स्कूलों में केजी-1(उदय) में चार वर्ष और केजी-2(अरूण) में पांच वर्ष के बच्चों को प्रवेश दिया गया। इन स्कूलों में नर्सरी में प्रवेश नहीं दिए गए हैं।इस सत्र में इन कक्षाओं में लाटरी पद्धति के माध्यम से बच्चों को प्रवेश दिए गए।बच्चों का स्क्रीनिंग टेस्ट नहीं लिया गया। इन स्कूलों में बास्केट बाल, वालीबाल ट्रैक, बायो टायलेट, मेडिकल रूम, खेल ग्राउंड, कंप्यूटर लैब, म्यूजिक रूम, भोजन कक्ष आदि बनाए जाएंगे। इसके अलावा इन स्कूलों में यातायात सुविधा उपलब्ध होगी। शिक्षकों के लिए आवासीय सुविधाएं होगी। स्कूलों में स्मार्ट कक्षाएं लगेंगी। सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे, एक-एक बच्चे की ट्रैकिंग एप के माध्यम से होगी। हर शिक्षक का रिपोर्ट कार्ड तैयार किया जाएगा। सीएम राइज चयनित स्कूलों को व्यवस्थित करने का कार्य तेजी से चल रहा है।

सिंचाई क्षमता बढ़ाने पर विशेष ध्यान
कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए सिंचाई क्षमता बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। 2003 में सिंचित भूमि का क्षेत्रफल सात लाख हेक्टेयर था जो अब 43 लाख हेक्टेयर हो गया है। 2025 तक 65 लाख हेक्टेयर करने का लक्ष्य है। कृषि निर्यात को बढ़ावा दिया जा रहा है। 2020-21 में 129 लाख टन गेहूं की खरीदी समर्थन मूल्य पर की गई जो देश भर में सर्वाधिक थी। प्रदेश आज विकसित राज्यों की दौड़ में शामिल है। गेहूँ उत्पादन के साथ ही उपार्जन में भी हम अव्वल हैं। हमने पंजाब जैसे राज्यों को पीछे कर बता भी दिया है और जता भी दिया है कि प्रदेश के किसान मुख्यमंत्री के साथ परिश्रम की पराकाष्ठा करने को दृढ़ प्रतिज्ञ हैं। गुणवत्ता में भी हम सबसे मुकाबला करने को तत्पर हैं। राज्य सरकार की जन-कल्याणकारी योजनाएँ, कुशल और सक्षम नेतृत्व, वैज्ञानिकों के साथ ही किसानों की मेहनत का सुफल है कि प्रदेश की रायसेन मण्डी में धान समर्थन मूल्य से 1200 रूपये अधिक तक बिक रहा है। सरकार सतत प्रयास कर रही है कि किसानों को उनकी उपज का दोगुना से ज्यादा लाभ मिले।
प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना से जनता को लाभान्वित करने में मध्यप्रदेश प्रथम पयदान पर है। उक्त योजना का लाभ देश में सबसे पहले हरदा जिले के किसान रामभरोस विश्वकर्मा को मिला। प्रदेश कृषि अधो-संरचना निधि के उपयोग में भी देश में अव्वल है। प्रदेश में इस निधि से 1508 प्रकरण में 852 करोड़ रूपये की राशि वितरित की गई है, जो देश में अब तक किये गये व्यय की कुल 45 प्रतिशत है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के साथ ही मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना में किसानों को प्रदेश सरकार द्वारा प्रतिवर्ष 2-2 हजार रूपये की दो किश्तें प्रदान की जा रही हैं। अब तक प्रदेश के 80 लाख किसानों को 4751 करोड़ रूपये की राशि का भुगतान किया जा चुका है। प्रदेश प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से सबसे अधिक किसानों को लाभान्वित करने वाला राज्य है। योजना में रबी 2020-21 में ही 49 लाख किसानों को 7618 करोड़ रूपये की दावा राशि का भुगतान किया गया। सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों को लाभान्वित करने के लिये वन ग्रामों को भी योजना में शामिल करना, फसल अधिसूचित करने के लिये न्यूनतम सीमा 100 के स्थान पर 50 हेक्टेयर करना, क्षति आकलन के लिये बीमा पोर्टल को लेण्ड रिकॉर्ड के एनआईसी पोर्टल से लिंक करना, अवकाश के दिनों में भी बैंक खुलवा कर किसानों का बीमा कराना और बीमा कव्हरेज के स्केल ऑफ फायनेंस को 100 प्रतिशत तक करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य किये।

आधुनिक हुई प्रदेश की स्वास्थ्य संस्थाएं
प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं मेें तेजी सं सुधार हुआ है। प्रदेश में वर्तमान में 12 हजार 386 स्वास्थ्य संस्थाएँ हैं। इनमें 10 हजार 280 उप स्वास्थ्य केन्द्र, 1266 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, 356 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, 119 सिविल अस्पताल, 313 सिविल डिस्पेंसरी (शहरी) और 52 जिला अस्पताल हैं। इन स्वास्थ्य केन्द्रों में 42 हजार 911 सामान्य बिस्तर, 15 हजार 80 आइसोलेशन बेड, 2673 आईसीयू बेड और 6630 एचडीयू बेड्स हैं। यह इसलिए उल्लेखनीय है कि वर्ष 2003 में स्वास्थ्य संस्थाओं में कुल 21 हजार 234 बिस्तर उपलब्ध थे और आइसोलेशन, आईसीयू और एचडीयू बेड्स तो उपलब्ध ही नहीं थे। इस तरह हम पायेंगे कि स्वास्थ्य संस्थाओं में पिछले वर्षों के दौरान 24 हजार 383 आइसोलेशन, आईसीयू और एसडीयू बेड्स की उपलब्धता के साथ ही वर्ष 2003 की तुलना में सामान्य बिस्तरों दोगुनी होकर 42 हजार 911 हो गए हैं।
स्वास्थ्य संस्थाओं में चिकित्सक, विशेषज्ञ चिकित्सक, दंत चिकित्सक और नर्सिंग स्टॉफ में भी बढ़ोत्तरी की गई है। वर्तमान में 5256 चिकित्सक, 1116 विशेषज्ञ चिकित्सक, 103 दंत चिकित्सक और 11 हजार 405 नर्सिंग स्टॉफ है। प्रदेश की स्वास्थ्य संस्थाओं के माध्यम से नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने के लिये 33 हजार 84 एनएचएम की नियुक्ति की गई है। प्रदेश के सभी स्वास्थ्य केन्द्रों में वर्ष 2003 में उपलब्ध 214 प्रकार की ई.डी.एल. औषधियाँ अब बढक़र 530 प्रकार की हो गई है। स्वास्थ्य संस्थाओं में ऑक्सीजन सिलेण्डर के माध्यम से सीमित ऑक्सीजन प्रदाय की सुविधा की तुलना में प्रदेश में 204 पीएसए प्लांट्स के माध्यम से स्वास्थ्य संस्थाओं में ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है।
स्वास्थ्य संस्थाओं में विभिन्न प्रकार की जाँचों की सुविधा भी बढ़ाई गई है। वर्ष 2003 में 45 प्रकार की जाँच होती थी। वर्तमान में 132 प्रकार की जाँच की जा रही हैं। हब एण्ड स्पोक मॉडल पैथालॉजी में 324 हब और 1610 स्पोक्स से प्रत्येक उप स्वास्थ्य केन्द्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र तक 45 प्रकार की पैथालॉजी जाँच की सुविधा उपलब्ध है। पीपीपी मोड पर 49 जिला चिकित्सालयों में सीटी स्केन की भी सुविधा उपलब्ध है। प्रदेश में 58 एस.एन.सी.यू., 165 एन.वी.एस.यू., 59 पी.आई.सी.यू. और 315 एन.आर.सी. की स्थापना भी की गई है। वर्तमान में 59 संस्थाओं में डायलिसिस की सेवाएँ दी जा रही हैं। मरीजों को अस्पताल लाने-ले जाने के लिये वर्ष 2003 में केवल 256 एम्बुलेंस थीं, जिसमें लगभग 8 गुनी वृद्धि करते हुए वर्तमान में 2052 एम्बुलेंस उपलब्ध है।

फिल्म निर्माताओं की पसंद बन रहा एमपी
मध्यप्रदेश 1 नवंबर को अपना 67वां स्थापना दिवस मानने जा रहा है। कभी पिछड़ा और बीमारू कहा जाने वाला मध्यप्रदेश आज विकास की राह पर तेजी से बढ़ रहे राज्यों की श्रेणी में अग्रणी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में प्रदेश ने विकास की नई संभावानाएं तलाशने के साथ ही उपलब्धियों के कई आयाम भी गढ़े हैं। आज प्रदेश की पहचान फिल्म उद्योग के लिए अपार अवसरों के रूप में हुई है। मध्यप्रदेश में फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई फिल्म नीति के परिणाम अब सामने आने लगे हैं। प्रदेश में मिल रही बेहतर सुविधाओं के कारण आज फिल्म निर्माताओं का रुझान मध्यप्रदेश की तरफ बढ़ा है। फिल्मांकन के लिए आवश्यक अनुमतियां प्राप्त करने में अब किसी के आगे चक्कर नहीं लगाने पड़ते हैं। एक ही प्लेटफार्म पर सभी अनुमतियां आसानी से मिल जाती हैं। पिछले कुछ समय से मध्यप्रदेश में फिल्मों की शूटिंग की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। शिवराज सरकार प्रदेश में फिल्म उद्योग को लगातार प्रोत्साहित कर रही है।
शूटिंग के लिए खास एवं बेहद खूबसूरत लोकेशंस के अलावा सुविधाजनक स्थल होने की वजह से डायरेक्टर्स मध्यप्रदेश खिंचे चले आते हैं। फिल्म निर्माताओं को शूटिंग की अच्छी लोकेशन यहां आसानी से मिल जाती हैं, साथ ही मध्यप्रदेश सरकार फिल्म के अनुकूल बुनियादी ढांचा स्थापित करने के साथ- साथ उसे प्रोत्साहन भी दे रही है। यहाँ शूटिंग के लिए परमिशन और एनओसी मिलना भी अन्य राज्यों की अपेक्षा आसान है। मध्यप्रदेश सरकर ने 2016 में पर्यटन बोर्ड का गठन किया और 2019 में फिल्म के लिए अपनी पॉलिसी जारी की। वर्तमान में यह देश का ऐसा राज्य है, जो शूटिंग के लिए 5 श्रेणियों में सब्सिडी दे रहा है। प्रदेश में फिल्म निर्माण की गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए फिल्म पर्यटन नीति 2020 लागू की गई है। इसमें फिल्मांकन की अनुमति अलग-अलग कार्यालयों की जगह एक स्थान से दिए जाने की व्यवस्था बनाई गई है। अंतरराष्ट्रीय फिल्म, टीवी सीरियल या वेब सीरीज के लिए अधिकतम 10 करोड़ रुपये तक अनुदान देने का प्रविधान किया गया है। वहीं, राष्ट्रीय फीचर फिल्म के लिए 25 प्रतिशत या दो करोड़ रुपये, टीवी सीरियल अथवा वेब सीरीज के लिए 25 प्रतिशत या एक करोड़ रुपये तक अनुदान देने की व्यवस्था है। इसी तरह डाक्यूमेंट्री के लिए अधिकतम 40 लाख रुपये का अनुदान दिया जा रहा है। राज्य के स्थानीय कलाकारों को फिल्म निर्माण में लेने पर 25 लाख रुपये अतिरिक्त देने का प्रविधान है। फिल्म से संबंधित अधोसंरचना विकास पर 30 प्रतिशत तक अनुदान के साथ फिल्म से जुड़े अमले के लिए पर्यटन विभाग के होटल और रिसार्ट में ठहरने पर 40 प्रतिशत छूट दी जाती है। प्रदेश में फिल्म उद्योग के विकास के लिए फिल्म सिटी, फिल्म स्टूडियो, कौशल विकास केंद्र आदि स्थापित करने निजी निवेश को प्रोत्साहन और भूमि देने का प्रावधान भी नीति में किया गया है। फिल्म सिटी के निर्माण के लिए विभिन्न जिलों में भूमि भी आरक्षित की जा रही है। अभी तक प्रदेश में 100 से ज्यादा फिल्म, सीरियल और वेब सीरीज की शूटिंग हो चुकी है। मध्यप्रदेश में बुनियादी ढाँचा तैयार कर फिल्म निर्माताओं को यहाँ निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे प्रदेश को देश और दुनिया में नई पहचान मिल रही है। राज्य सरकार ने फिल्म पर्यटन नीति लागू कर अपनी प्रतिबद्धता को दिखा दिया है। हाल के वर्षों में सरकार द्वारा शूटिंग की अनुमति को आसान बनाया गया है, जिससे प्रदेश में फिल्म निर्माताओं की रूचि बढ़ी है। राज्य सरकार फिल्मों को प्रोत्साहन दे रही है, जिसके अन्तर्गत थीम पार्क और सेल्फी पॉइंट भी बनाये जा रहे हैं। मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों में लगातार हो रही शूटिंग के चलते ही हाल ही में 68 वें राष्ट्रीय फिल्म में मध्यप्रदेश ने 13 राज्यों को पीछे छोड़ते हुए को दूसरी बार मोस्ट फ्रेंडली स्टेट का दर्जा पाया। इसका कारण यहाँ की बेस्ट लोकेशन और सरकार से मिलने वाली सब्सिडी और शूटिंग के लिए सिंगल विंडो परमिशन है।

Related Articles