कीटनाशकों की खरीद-बिक्री पर रहेगी सरकार की पूरी नजर

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  • आत्महत्या रोकने मप्र सरकार बनाने जा रही है नीति  …

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश सरकार नीति बना रही है। इसके तहत सरकार कई तरह के प्रावधान करने जा रही है, ताकि आत्महत्याएं रोकी जा सकें। इसके लिए नीति में ऐसा प्रावधान करने जा रही है जिससे कीटनाशकों की खरीद-बिक्री से लेकर उसके उपयोग पर नजर रखी जा सके। गौरतलब है कि प्रदेश में कीटनाशकों का उपयोग कर आत्महत्या करने के मामले बराबर सामने आते रहते हैं।
खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में और किसानों द्वारा कीटनाशकों को उपयोग आत्महत्या के लिए किया जाता है। जानकारी के अनुसार मप्र सरकार कीटनाशक के लिए जो नीति तैयार करने जा रही है, उसके अनुसार, अब कीटनाशक दवाएं घर में नहीं, बल्कि बैंक में रखी जाएंगी। इनके खरीद-बिक्री से लेकर उपयोग पर भी सरकार की नजर रहेगी। दरअसल, आत्महत्या के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए प्रदेश में जल्द ही कीटनाशक बैंक खोले जाएंगे। लोगों को कीटनाशक घर में रखने के बजाय इन बैंकों में जमा करना होगा। सरकार का मकसद आत्महत्या के मामलों में कीटनाशकों के उपयोग को खत्म करना है।
नीति में कई तरह के प्रावधान
मालूम हो कि मप्र, देश का पहला राज्य होगा जहां आत्महत्या रोकथाम नीति के साथ कीटनाशक के उपयोग के लिए नीति तैयार की जाएगी। विशेषज्ञों के मुताबिक गुस्से या आवेग में व्यक्ति के दिमाग में न्यूरोट्रांसमीटर सेरोटीन को असंतुलित कर देते हैं। इससे व्यक्ति में खुद या दूसरे को नुकसान पहुंचा सकता है। इसमें कीटनाशक का सेवन ज्यादा आम है। अक्सर यह आवेग क्षणिक होते हैं, अगर उस समय कीटनाशक पहुंच से दूर हो तो आत्महत्या को टाला जा सकता है। जानकारों के अनुसार नीति में शेड्यूल एच की दवाओं की तरह ही कीटनाशक की बिक्री पर सरकारी नजर रहेगी। विक्रेता को कीटनाशक खरीदार की जानकारी रिकॉर्ड करनी होगी। विक्रेता को स्टॉक और बिक्री का हिसाब सरकार को देना होगा। खरीदार कीटनाशक को घर में रखने के बजाय बैंक में जमा करेगा। व्यक्ति को यह जानकारी देना होगी कि इसका उपयोग कब और कहां करेगा
आत्महत्या के मामलों में आ सकती है कमी
शोध बताते हैं कि कीटनाशक तक लोगों की पहुंच कम कर दी जाए तो आत्महत्या के मामलों में 15 से 20 फीसदी की कमी लाई जा सकती है। एनसीआरबी के आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं। सुसाइड प्रिवेंशन टास्क फोर्स के सदस्य डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि कीटनाशक जैसे विषैले पदार्थ एवं उनकी बिक्री और उपयोग के तरीकों को लेकर एक कानून बनाने की महती आवश्यकता है। इस पर गंभीर विमर्श हुआ है, जल्द ही यह पॉलिसी आपके सामने होगी। वहीं  चिकित्सा शिक्षा मंत्री  विश्वास सारंग का कहना है कि हम आत्महत्या से जुड़े सारे कारणों का वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं। मंथन से जो भी प्रामाणिक तथ्य सामने आएंगे, उस रणनीति को अपनाएंगे। हम इसके लिए कटिबद्ध हैं। पूरे देश में यह पहली बार हो रहा है।
आत्महत्या के एक चौथाई मामले कीटनाशक से
अगर एनसीआरबी के आंकड़ों और शोधों का आकलन किया जाए तो आत्महत्या के एक चौथाई मामले कीटनाशक के उपयोग के सामने आते हैं। एनसीआरबी के अनुसार आत्महत्या के लिए जो तरीके चुने गए हैं उनमें डूब कर 5.2 प्रतिशत यानी 7977 लोगों ने आत्महत्या की है। वहीं फांसी लगाकर 57.8 प्रतिशत यानी 88460, कीटनाशक जहर से 25.0 प्रतिशत यानी 38336, ऊंचाई से कूद कर 1.2  प्रतिशत यानी 1843, वाहन के सामने आकर 1.7 प्रतिशत यानी 2626 और अन्य तरीके से 4.4 प्रतिशत यानी 6795 लोगों ने आत्महत्या की।

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