
- उपभोक्ताओं की जेब और प्रदूषण की भी नहीं कर रहे चिंता
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में अच्छी बारिश की वजह से भले ही बांध छलक रहे हैं, लेकिन फिर भी मप्र पॉवर जनरेशन कंपनी जल विद्युत परियोजनाओं से बिजली बनाने को तैयार नहीं दिख रही है। दरअसल कंचनी और विभाग के अफसरों को आम आदमी की जेब की कोई चिंता ही नहीं रहती है। यही नहीं कंपनी को पूरा जोर ताप विद्युत घरों पर रहता है। इसकी वजह उनके आर्थिक हित बताए जाते हैं। दरअसल जल परियोजनाओं से बनने वाली बिजली की लागत एक यूनिट की महज 25 पैसा आती है, जबकि कोयले से उत्पादित बिजली की लागत एक यूनिट करीब साढ़े तीन रुपए आती है। इसके बाद भी मप्र की बिजली कंपनियां जल विद्युत परियोजना से पैदा की जाने वाली सस्ती बिजली से परहेज कर रही हैं। यही वजह है कि प्रदेश में कई जल विद्युत इकाइयों से बिजली उत्पादन ठप पड़ा हुआ है। यह स्थिति तब बनी हुई है जबकि लबालब भरे बांधे के पानी को निकालना प ड़ रहा है जिससे पानी भी बर्बाद हो रहा है और बिजली भी नहीं बन रही है। मौजूदा समय में जल विद्युत परियोजनाओं से उनकी क्षमता से 70-80 फीसदी तक कम बिजली का उत्पादन हो रहा है। गौरतलब है की प्रदेश में जल विद्युत प्रोजेक्टों की क्षमता 921 मेगावाट है। इसके मुकाबले केवल 300 मेगावाट ही उत्पादन किया जा रहा हे। यह उत्पादन भी एमपी जेनको के स्वामित्व वाली जल विद्युत इकाइयों द्वारा किया जा रहा है। जल विद्युत परियोजनाओं से उत्पन्न होने वाली बिजली की लागत महज 25 पैसा प्रति यूनिट आती है, जबकि उसे लगभग 4 रुपए प्रति यूनिट में बेचा जाता है। ऐसे में इस बिजली से 3.75 रुपए तक प्रति यूनिट तक की बचत होती है। उधर, ताप विद्युत प्रोजेक्ट्स से बनने वाली बिजली 3 से 4 रुपए प्रति यूनिट में पड़ती है। पानी से उत्पन्न होने वाली बिजली पर ध्यान नहीं देने की वजह से प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं को महंगा टैरिफ चुकाना पड़ता है। अगर जल विद्युत गृहों से पूरी क्षमता से बिजली उत्पादन किया जाए तो बिजली के टैरिफ को 50 से 60 फीसदी तक कम किया जा सकता है। दरअसल बिजली कंपनियों के कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार की वजह से कई जल बिजली इकाइयां लंबे समय से बंद हैं। इनमें सबसे प्रमुख टोंस हाइडल प्रोजेक्ट की 105 मेगावाट की तीन नंबर इकाई भी है। यह इकाई प्रतिदिन 25 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन कर सकती है, लेकिन बांध भरे होने के बाद भी दो साल से इसमें उत्पादन ही नहीं हो रहा है। सस्ती बिजली उत्पादन करने वाली इकाइयां अगर एक बार बंद हो जाती हैं तो अफसरों द्वारा उन्हें फिर चालू तक नहीं किया जाता है। यही वजह है मप्र में हर साल बिजली टैरिफ बढ़ रहा है, जिसका असर बिजली उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ता है।
500 करोड़ का हो चुका नुकसान
टोंस हाइडल प्रोजेक्ट रीवा सिरमौर की 105 मेगावाट की यूनिट नंबर तीन में 17 जून 2020 को जेनरेटर स्टेटर जल गया था, जो दो वर्ष एक महीने में बनकर तैयार हुआ था। इस तरह इकाई से लगभग 25 महीने बिजली उत्पादन नहीं हो सका। इकाई शुरू होने के मात्र 25 दिन बाद फिर जनरेटर स्टेटर जल गया है। इससे यह इकाई एक बार फिर बंद हो गई। माना जा रहा है कि इस इकाई के बंद होने से अब तक लगभग पांच सौ करोड़ रुपए से ज्यादा का विद्युत उत्पादन में नुकसान हुआ है। इसी संयंत्र की 105 मेगावाट वाली दो नंबर इकाई पांच जनवरी 2022 से बंद है। इसी तरह से गांधी सागर जल विद्युत केंद्र की यूनिट 115 मेगावाट की इकाई 14 सितंबर 2019 से पानी भर जाने के कारण खराब हो हो गई थी, जो आज तक बंद है। उधर, पेंच हाइडल पावर स्टेशन में 80 मेगावाट की दो इकाई हैं। इसमें से एक नंबर इकाई 20 जुलाई 2022 से 22 सितंबर 2022 तक के लिए एनुअल ओवरहालिंग के नाम पर बंद कर दी गई, जबकि बरसात में सस्ती बिजली आसानी से बनाई जा सकती है।
6315 मेगावाट उत्पादन की है क्षमता
प्रदेश में पावर जनरेशन कंपनी की देखरेख में बिजली का उत्पादन होता है। इसके लिए 19 विद्युत उत्पादन केंद्र हैं। इनमें ताप विद्युत इकाइयों की संख्या 9 है। इन इकाइयों की बिजली उत्पादन क्षमता 5400 मेगावाट है। वहीं प्रदेश में 10 जल विद्युत इकाइयां हैं। इनकी उत्पादन क्षमता 915 मेगावाट है। अगर सही तरीके से इन जल विद्युत इकाइयों से बिजली उत्पादन किया जाए, तो प्रदेश में ताप विद्युत इकाइयों से उत्पादित बिजली की जरूरत नहीं पड़ेगी। अकेली जल विद्युत परियोजनाएं मप्र के उपभोक्ताओं की जरूरत की बिजली का उत्पादन कर सकती हैं।
हर साल फिक्स चार्ज के नाम पर लगती है 4200 करोड़ की चपत
प्रदेश सरकार ने जिन कंपनियों से बिजली खरीदी का अनुबंध किया हुआ है, उन्हें बिजली नहीं खरीदने पर भी हर साल फिक्स चार्ज के रूप में 4200 करोड़ रुपए का भुगतान किया जाता है। एग्रीमेंट के मुताबिक, यदि सरकार ने निजी कंपनियों से बिजली नहीं खरीदी तो उन्हें डेढ़ रुपए प्रति यूनिट की दर से फिक्स चार्ज का भुगतान करना पड़ता है। 2019-20 में नियामक आयोग में दाखिल की गई टैरिफ पिटीशन में निजी कंपनियों को 14 हजार करोड़ रुपए का भुगतान करने का जिक्र किया गया है।