
- सत्ता व संगठन दोनों लगे डैमेज कंट्रोल में
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र भाजपा भले ही यह दावे करे की पार्टी में सब बेहतर चल रहा है और वह सबसे अनुशाासित व कैडरबैस पार्टी है, लेकिन हकीकत इसके उलट ही है। इसके उदाहरण लगातार सामने आ रहे हैं। हद तो यह है की आम कार्यकर्ताओं से लेकर छोटे पदाधिकारियों के बीच व्याप्त अंसतोष की बात तो छोड़ दी जाए तो अब तो सरकार के मंत्री से लेकर विधायक तक खुलकर अपना अंसतोष जाहिर करने में पीछे नहीं रह रहे हैं। इसकी वजह से सरकार से लेकर संगठन तक की जमकर किरकिरी हो रही है। जिस तरह से दो दिन में तीन मामले सामने आए है उससे माना जा रहा है कि सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पहले पंचायत मंत्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया और उसके बाद पीएचई मंत्री बृजेन्द्र सिंह यादव ने अफसरों के खिलाफ पत्र लिखकर नाराजगी जताई है तो वहीं भोपाल में विधायक कृष्णा गौर ने भी एमआईसी के विभागों को लेकर खुलकर लामबंदी करते हुए विरोध किया है। इसके पहले पार्टी के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय तक अफसरशाही पर सवाल उठा चुके हैं। दरअसल बीते कुछ सालों में पार्टी कार्यकर्ताओं की पूछ परख संगठन से लेकर सत्ता तक में कम हुई है। इसी तरह से सरकार में अफसरशाही की पूछ परख बढ़ी है।
सत्ता व संगठन में पावरफुल होने के अपनी तरह के पैमाने हैं। कार्यकर्ताओं की मंशा की अनदेखी कर लिए जाने वाले निर्णयों से जहां पार्टी का जनाधार कम हो रहा है तो सत्ता में भी असंतोष के स्वर तेज होते जा रहे हैं। सरकार में मंत्रियों से अधिक अफसरशाही की चलती है। इसकी वजह से मंत्रियों तक को काम कराने के लिए सीएम से गुहार लगानी पड़ती है। जिलों में प्रभारी मंत्री चाहकर भी कार्यकर्ताओं के काम नहीं करा पाते हैं। इसकी वजह है जिलों में पदस्थ आला अफसर मंत्रियों व कार्यकर्ताओं की पसंद की जगह अफसरशाही की पसंद के चलते पदस्थ किए जाते हैं। यह अफसर पूरी तरह से अपनी मनमानी करते हैं, जिसकी वजह से सरकार से लेकर संगठन तक की जिलों में जमकर किरकिरी होती है। यही नहीं कई विभागों में हाल यह है की मंत्री और उनके विभागों के आला अफसरों में अनबोलना तक की स्थिति बनी हुई है। इसकी वजह से कामकाज भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। हद यह है कि लगातार अनदेखी की वजह से परेशान मंत्री अब तो खुलकर सामने आने लगे हैं। इसकी शुरुआत मंत्री सिसौदिया के करने के बाद अब दूसरे मंत्री यादव भी सामने आ गए हैं। दरअसल सिसौदिया को पता ही नहीं चला की कब उनके प्रभार वाले शिवपुरी जिले में थाना प्रभारियों को बदल दिया गया है। यही नहीं वे जब प्रभार वाले जिले के दौरे पर गए तो प्रोटोकाल का भी पूरी तरह से ख्याल नहीं रखा गया। इससे नाराज मंत्री ने सार्वजनिक रुप से शिकायती पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर कर डाली। इस पत्र में उनके निशाने पर जिला तो ठीक प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया तक की कार्यप्रणाली तक पर सवाल खड़े किए गए। इसके बाद हड़कंप मच गया, जिसके बाद हरकत में आयी सरकार डैमेज कंट्रोल में जुटी और सिसौदिया की मान मनौव्वल कर उन्हें शांत करया गया। इसके बाद अब सिसोदिया ने तो यू-टर्न लेकर मामले को शांत किया ही था की अब दूसरे मंत्री बृजेंद्र सिंह यादव ने अशोकनगर कलेक्टर की कार्यशैली पर नाराजगी जताकर नया विवाद खड़ा कर दिया है। इस तरह के विवाद ऐसे समय सामने आ रहे हैं, जब प्रदेश में अगले साल विधानसभा के आम चुनाव होने हैं।
पहले भी हो चुकी किरकिरी
भोपाल निगम परिषद गठन के बाद एमआईसी के लिए इतनी मारा मारी चली की तय अवधि में एमआईसी तक का गठन नहीं किया जा सका। इस मामले में जब विपक्ष ने शिकायत की तब कहीं जाकर बैक डेट में एमआईसी सदस्यों की सूची जारी की गई। लगभग यही हाल पार्षद के टिकट वितरण में भी सामने आयी थी। हालात यह बने थे कि तब अंतिम दिन दोपहर तक नामों की घोषणा की जाती रही। उस समय भी ऐसी मनमानी की गई की कई वार्ड में दूसरे वार्ड के कार्यकर्ताओं को प्रत्याशी बना दिया गया था।
वरिष्ठ पार्षद वाडिका ने ली चुटकी
गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र से तीसरी बार के पार्षद बने सुरेंद्र वाडिका ने एमआईसी मेंबरों के इस्तीफे पर चुटकी ली। सोशल मीडिया पर लिखा कि मैं तीसरी बार और भाजपा के पार्षदों में सबसे सीनियर पार्षद हूं। पूर्व में एमआईसी मेंबर रहा और अध्यक्ष की दौड़ में भी सबसे आगे था, लेकिन न तो अध्यक्ष बना और न ही महापौर परिषद में शामिल किया गया। बावजूद मैंने दोनों स्थितियों में संगठन के निर्णय को शिरोधार्य किया। संगठन ने 58 पार्षदों में से पहली बार बने पार्षदों को एमआईसी मेंबर बनाकर सम्मानित किया। मेंबर बनना ही बड़ा सम्मान है। संगठन ने पद देकर बहुत बड़ा सम्मान किया। कोई भी पद बड़ा या छोटा नहीं होता। संगठन सर्वोपरि है।
कांग्रेस कस रही तंज
कांग्रेस विधायक पीसी शर्मा ने कहा कि विधायक कृष्णा गौर को पॉलिटिकल क्वारेंटाइन किया जा रहा है। इस लड़ाई का खामियाजा जनता को भुगतना होगा। उधर, कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने सिलसिलेवार ट्वीट कर सवाल उठाए हैं। उन्होंने लिखा मध्यप्रदेश के सिंधिया समर्थक कैबिनेट मंत्री महेंद्र सिसोदिया प्रदेश के मुख्य सचिव से लेकर प्रशासन को निरंकुश बता रहे हैं? साथ ही मुख्यमंत्री के बने रहने की कामना भी कर रहे हैं। भारी गड़बड़ है। प्रदेश भाजपा में उठापटक के संकेत। सिसोदिया ने पत्रों की प्रतिलिपि सिंधिया को भेजी है। मुख्यमंत्री व गृह मंत्री को नहीं?
पत्र लिखने के बाद भी कलेक्टर नहीं कर रहे कार्रवाई
सिसोदिया के बाद सिंधिया खेमे के ही पीएचई राज्य मंत्री बृजेंद्र सिंह यादव ने सहकारिता संस्था में नियुक्ति पर एतराज जताया है। उन्होंने 24 अगस्त को सहकारिता आयुक्त को पत्र लिखा था। इसमें उप अंकेक्षण अधिकारी अभिषेक जैन पर नियुक्तियों में धांधली का आरोप लगाया है। ये लिखा है कि जैन की जांच डिप्टी कलेक्टर स्तर के अधिकारी से कराई जाए। नियुक्तियों को निरस्त करने के साथ ही दोषी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई हो। यादव ने इस मामले में अशोक नगर कलेक्टर को पत्र लिखने के बाद भी कार्रवाई नहीं करने पर नाराजगी जताई है।
विधायक ने भी खोला मोर्चा
उधर, भोपाल की गोविंदपुरा सीट से भाजपा विधायक कृष्णा गौर भी इन दिनों बेहद नाराज चल रही हैं। इसकी वजह है एमआईसी का गठन और उसके विभागों का वितरण। इसके चलते बीते रोज उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र के पार्षदों की बैठक तक बुला डाली। बैठक में उनके द्वारा जामकर नाराजगी जताई गई। दरअसल वे इस बात से नाराज है की उनके विधानसभा को पहले ही कम एमआईसी सदस्य दिए गए और बाद में विभाग भी अच्छे नहीं दिए गए। इसके अलावा उनका विरोध नरेला विधानसभा क्षेत्र को महत्व दिए जाने को लेकर भी है। उनका कहना है की सर्वाधिक 17 पार्षद उनके क्षेत्र से जीते हैं और महापौर को सबसे अधिक बढ़त भी उनके ही क्षेत्र से मिली है , लेकिन उनके क्षेत्र की अनदेखी की जा रही है। दरअसल, टिकट बंटवारे के समय ही कलह की शुरूआत हो गई थी। गोविंदपुरा विधानसभा में उम्मीदवारों के चयन में कृष्णा गौर की पसंद को खास तवज्जो नहीं दी गई। संगठन और अन्य जनप्रतिनिधियों के समर्थकों को उम्मीदवार बनाया गया जबकि, बाकी विधानसभा में ऐसा नहीं हुआ। नरेला में मंत्री विश्वास सारंग, उत्तर में पूर्व महापौर आलोक शर्मा और हुजूर में विधायक रामेश्वर शर्मा की काफी हद तक चली। नतीजे आए तो गोविंदपुरा विधानसभा में भाजपा को रिकॉर्ड जीत मिली। महापौर मालती राय को 64 हजार की लीड के साथ ही 18 में से 17 पार्षद जीते। ऐसे में गोविंदपुरा से पहली बार के पार्षद जितेंद्र शुक्ला और छाया ठाकुर को महापौर परिषद को स्थान दिया गया। विभागों के बंटवारे में फिर कृष्णा समर्थकों का कद छोटा कर दिया गया। उन्हें शहरी गरीबी और वित्त जैसे कम महत्व के विभाग दे दिए गए जबकि मंत्री सारंग समर्थकों को मलाईदार विभाग मिले।