बगैर डीपीआर मांगा… बजट, आयोग नाराज

डीपीआर
  • चयनित बांधों के रखरखाव के लिए मांगे केन्द्र से 50 करोड़

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश का सिंचाई महकमा अपनी कार्यप्रणाली की वजह से हमेशा से ही चर्चा में बना रहता है।  इस विभाग के अफसरों की बड़ी लापरवही हाल ही में एक बांध बनते ही टूटने की वजह से  सामने आ ही चुकी है। इसकी वजह से प्रदेश की जमकर बदनामी हो ही रही है, इस बीच एक और दूसरी बड़ी लापरवाही भी अब सामने आयी है।  इसकी वजह से अब केन्द्रीय जल आयोग भी बेहद नाराज है। दरअसल केन्द्र सरकार ने पुराने बांधों से ड्रिप परियोजनाओं के माध्यम से किसानों को सिंचाई की सुविधा देने की योजना शुरू की तो उसमें मध्यप्रदेश के भी कुछ बांधों का चयन किया गया। इन बांधों के रखरखाव के लिए प्रदेश के सिंचाई महकमे द्वारा 50 करोड़ रुपए की राशि तो मांग ली गई , लेकिन कई माह बाद भी डीपीआर  नहीं भेजी।
केन्द्रीय जल आयोग द्वारा बार-बार डीपीआर को संशोधित कर भेजने के आग्रह पर भी ध्यान नहीं दिया, जिसकी वजह से अब आयोग ने गहरी नाराजगी जताई है। दरअसल , यह वे बांध हैं जिनमें पाइप के माध्यम से खेतों तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था नहीं  है, जबकि अब जो भी नए बांध बनाए जा रहे हैं, उनमें पाइप लाइन से खेतों तक पानी पहुंचाया जाता है। गौरतलब है की ड्रिप परियोजना में शामिल बांधों के रिपेयर के लिए प्रदेश से केंद्र सरकार से फंड लेने प्रस्ताव तो भेज दिया जाता है, मगर उसकी डीपीआर आदि भेजना भूल जाते हैं। हद तो यह है की ड्रिप प्रोजेक्ट में शामिल कई बांधों की रिपोर्ट तो दो साल से नहीं भेजी गई। मप्र में ड्रिप परियोजनाओं के माध्यम से किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने चंदिया बांध सागर, रूमाल बांध सिवनी सहित एक दर्जन से ज्यादा बांधों का चयन किया गया था। इसके लिए इन बांधों का मेंटेनेंस और रिपेयर वर्क कराने केंद्रीय जल आयोग से राशि मांगी गई थी। इसके लिए 22 जनवरी 2020 में केंद्रीय जल आयोग को इन बांधों की प्रोजेक्ट रिपोर्ट और डीपीआर भेजी गई थी, लेकिन केंद्रीय जल आयोग ने उक्त डीपीआर में आपत्ति उठाते हुए 22 फरवरी 2020 को जल संसाधन विभाग को पत्र लिखा। विभाग ने केंद्रीय जल आयोग द्वारा पीएसटी में उठाई गई आपत्तियों का निराकरण करने सागर के कार्यपालन यंत्री को पत्र लिखा, लेकिन कार्यपालन यंत्री ने आज तक उसका जवाब ही नहीं दिया। इस् मामले में दो साल से ज्यादा समय बीतने के बाद अब एक बार फिर से केंद्रीय जल आयोग ने ड्रिप परियोजनाओं की स्वीकृति को लेकर गहरी  आपत्ति जताई है।
ड्रिप इरिगेशन सिस्टम क्या है?
भूमि का जलस्तर गिरना एक बड़ी समस्या है। पानी की समस्या के चलते फसल उत्पादन प्रभावित होता है। ऐसे तो सिंचाई करने करने की कई विधियां प्रचलित हैं लेकिन सिंचाई टपक प्रणाली खेती के लिए सबसे उपयुक्त है। अत: पानी की समस्या को दूर करने के लिए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम अर्थात् टपक सिंचाई प्रणाली को बढ़ावा दिया जाना है। ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को टपक सिंचाई प्रणाली भी कहते हैं। कम पानी में अधिक खेत की सिंचाई करने के लिए यह एक बेहतरीन विधि है। इस विधि से पाइप की सहायता से फसल तक पानी पहुंचाया जाता है। इससे फसल में बूंद-बूंद करके पानी मिलता है। इसलिए इसे टपक विधि से सिंचाई कहते हैं। इससे पानी केवल पौधों तक ही पहुंचता है। इससे 60 से 70 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। इस विधि से फसलों की पैदावार में 150 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। इस विधि से पूरे खेत में नमी न होने से कीटों का खतरा भी हो हो जाता है। इस विधि में पानी साथ उर्वरक, दवा आदि मिलाकर सीधे पौधों को दिए जा सकते हैं। ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को लगाने में प्रति एकड़ करीब 57 हजार रुपए तक की लागत आती है। इसके लिए सरकार अनुदान देती है।

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