क्यों चीता अपडेट से राज्य के अधिकारियों को दूर रखा जा रहा?

चीता अपडेट
  • 13 अगस्त को आने पर अभी भी छाई धुंध

भोपाल/गणेश पाण्डेय/बिच्छू डॉट कॉम। चीता प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रहे वन्य जीव संस्थान देहरादून के डीन डॉ वायवी झाला दक्षिण अफ्रीका में है। इसके बाद भी राज्य के वन मंत्री से लेकर कूनो नेशनल पार्क के प्रबंधन टीम को चीता से संबंधित किसी भी जानकारी से अपडेट नहीं किया जा रहा। मुख्य वन्य प्राणी अभिरक्षक से लेकर फील्ड के डायरेक्टर तक को यह पता नहीं है कि चीता कब आ रहा है?  प्रदेश के श्योपुर जिले के पालपुर कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीता की बसाहट की जा रही है।  इसके बाद भी चीता प्रोजेक्ट से मप्र और उसके अधिकारियों को दूर रखा जा रहा है। मसलन 20 जुलाई को नई दिल्ली में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव और अफ्रीकी देश नामीबिया के उप प्रधानमंत्री नेतुम्बो नंदी डेइट्वा के साथ समझौता हुआ, तब भी न तो वन मंत्री विजय शाह वहां थे और न ही राज्य वन विभाग का कोई बड़ा अफसर वहां दिखाई दिया। केंद्र सरकार और वन्य जीव संस्थान देहरादून के डीन एवं चीता प्रोजेक्ट को लीड कर रहे डॉ झाला अभी प्रदेश के अधिकारियों को प्रोजेक्ट से संबंधित नई जानकारियों से अपडेट नहीं कर रहे हैं। इसके कारण पार्क प्रबंधन असमंजस में है। पिछले दिनों एनटीसीए के आईजी मलिक कूनो राष्ट्रीय उद्यान पहुंचे। बाढ़ प्रबंधन को कुछ और तैयारियों की हिदायत देकर दिल्ली आ गए। मलिक ने पार्क प्रबंधन को बताया कि एक नया बाड़ा तैयार किया जाए। इसके अलावा बाड़े में 2 लेयर में सोलर इलेक्ट्रिफिकेशन और ग्रीन नेट लगाया जाए। कुनो पार्क प्रबंधन ने आईजी एनटीसीए मलिक के निर्देश पर अमलीजामा पहनाने का काम तेजी से शुरू कर दिया है। फील्ड के अधिकारियों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि यदि भीषण बारिश हुई तो सड़क मार्ग से चीता को कूनो ले जाना आसान नहीं होगा।
 चीता को लेकर बड़ी चुनौतियां: अफ्रीकी चीतों को दौड़ने के लिये लंबी खुली जगह की आवश्यकता होती है ,जबकि भारतीय उद्यान अफ्रीका के उद्यानों की तुलना में बहुत छोटे हैं, इससे उनको जगह की कमी की समस्या हो सकती है। अफ्रीका में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि मादा चीता अकेले रहती है और बहुत दूर तक घूमती रहती है, जबकि नर अपने छोटे क्षेत्रों की रक्षा करते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि अफ्रीका में तेंदुओं ने चीतों का भी शिकार किया है और कूनो के लिये भी इसी तरह की आशंका व्यक्त की जा रही है, जहां लगभग 50 तेंदुए उसी मूल क्षेत्र के आसपास रहते हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार चीता काफी नाजुक जानवर होता है, वे संघर्ष से बचते हैं लेकिन प्रतिस्पर्धी जानवरों के टारगेट में रहते हैं।
तेंदुआ बन सकते हैं खतरा
कूनो में चीतों के शावकों को तेंदुओं का बड़ा खतरा हो सकता है, इसके अलावा उनका सामना लकड़बग्घा, भेड़ियों, भालू और जंगली कुत्तों से भी हो सकता हैं। चीतों के बच्चे बड़ी मुश्किल से बचते हैं, यही इस जानवर के विलुप्त होने की बड़ी वजह है। 2013 में अफ्रीका के क्गालागाडी पार्क में पाए जाने वाले चीतों पर रिसर्च से पता चला था कि इनके बच्चों के बचने की उम्मीद 36 फीसद तक ही होती है। चीतों के बच्चों के मरने के पीछे की अहम वजह शिकारी जानवर होते हैं। चीता सबसे तेज दौड़ तो सकता है लेकिन शेर और बाघ की तरह वो दहाड़ नहीं सकते हैं। चीते बिल्लियों की तरह गुर्राते हैं, फुफकारते हैं। चीतों को रात में देखने में मुश्किल होती है। रात में चीतों की हालत इंसानों जैसी ही होती है। इसीलिए चीते या तो सुबह के समय या फिर दोपहर के बाद शिकार करते हैं। अन्य बिग कैट की तरह चीता पेड़ पर नहीं चढ़ सकता है।

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