
- दिग्गज नेताओं की जिद पड़ी आधा दर्जन जिलों पर भारी
भोपाल/गौरव चौहान / बिच्छू डॉट कॉम। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भले ही प्रदेश के दौरे के समय परिवारवाद से पूरी तरह नेताओं को दूर रहने की नसीहत देकर पार्टी की गाइडलाइन सार्वजनिक रुप से घोषित कर गए हैं, लेकिन इससे प्रदेश के भाजपा नेताओं पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है। नगरीय निकाय चुनाव हों या फिर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव सभी में जमकर परिवारवाद को बोलबाला रहा है। अब जिला पंचायत व जनपद अध्यक्ष के चुनाव में भी जमकर परिवारवाद का खेला खेला गया। हद तो यह हो गई की इस परिवारवाद और बड़े नेताओं की जिद सूबे के छह जिलों में पार्टी को भारी पड़ गई। इसकी वजह से इनमें मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के अध्यक्ष बनने में सफल हो गए।
मंत्रियों, विधायकों ने अपने परिजनों को उपकृत करने में पूरी ताकत लगा दी। परिवारवाद के मामले में अब तो इन चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस को भी पीछे छोड़ दिया है। इस परिवारवाद में कई नेताओं के परिजन जहां चुनावी वैतरणी पार करने में सफल रहे तो कई की नैय्या बीच भंवर में ऐसी फंसी की खुद तो डूबे ही साथ ही परिवार की भी फजीहत करा डाली। परिवारवाद के मामले में बुंदेलखंड अंचल में भाजपा नेताओं ने बाजी मारी है। यही वजह है की इस अंचल के जिलों की बात की जाए तो टीकमगढ़ जिले के पांच विधायकों में से तीन ने अपनी परिजनों पर ही दांव खेलकर उन्हें जनपद और जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर काबिज कराया है। इसकी वजह से भाजपा के कार्यकर्ता एक बार फिर से जनपद व जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए इंतजार करने पर मजबूर हो गए हैं। निवाड़ी जनपद की बात की जाए तो जैसे- तैसे जनपद सदस्य बनने में सफल हुई निवाड़ी विधायक अनिल जैन की पत्नी निरंजना जैन अब जनपद अध्यक्ष बन गई हैं। इसी तरह से टीकमगढ़ के दूसरे भाजपा विधायक राकेश गिरी ने अपनी बहन को जनपद अध्यक्ष बनवा दिया है। हद तो यह हो गई पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की बहू और खरगापुर विधायक राहुल सिंह लोधी की पत्नी उमिता को पार्टी ने जिला पंचायत अध्यक्ष बनवा दिया। उमिता ने एक वोट से पूर्व मंत्री यादवेन्द्र सिंह बुंदेला की पत्नी सुषमा सिंह को हराया। इसी तरह से पलेरा जनपद अध्यक्ष बनी शिल्पी खटीक जतारा विधायक हरिशंकर खटीक की भतीज बहू हैं। उधरअगर सागर जिले की बात की जाए तो मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के बड़े भाई हीरा सिंह राजपूत को सागर जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया गया है, जबकि मंत्री भूपेंद्र सिंह की भतीज बहू साधना अरविंद सिंह टिंकू राजा को जनपद अध्यक्ष बनाया गया है। यही नहीं उनकी ही नातिन वैष्णवी सिंह, ग्राम पंचायत बामौरा (सागर) की सरपंच हैं। खंडवा जिला पंचायत में मंत्री विजय शाह के बेटे दिव्यादित्य अध्यक्ष बने हैं। उनका भाग्य लॉटरी से खुला। भाजपा बहुमत के बाद भी मुश्किल से अध्यक्ष, उपाध्यक्ष पद बचा पाई। यही वजह है की चुनाव में परिवारवाद से तौबा करने संबंधी भाजपा के दावे जिला पंचायत व जनपद अध्यक्ष-उपाध्यक्ष के चुनाव में पूरी तरह से खोखले साबित हुए। केंद्रीय मंत्री, प्रदेश के मंत्री-विधायक और भाजपा नेताओं, पूर्व विधायक अब पंचायत सरकार को चलाएंगे। इसके लिए लगभग सभी जिलों में जोर-जबरदस्ती, खींचतान और रस्साकशी के नजारे सुर्खियों में बने हुए हैं।
पूर्व विधायक भी बने अध्यक्ष
अशोक नगर में भाजपा ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर पूर्व विधायक जगन्नाथ सिंह को ही प्रत्याशी घोषित किया था। 74 वर्षीय जगन्नाथ सिंह अब जिला पंचायत चलाएंगे। वह 2003 में पहली बार विधायक चुन कर आए थे। उधर आगरमालवा में भाजपा के जिला उपाध्यक्ष भेरूसिंह चौहान की पत्नी मुन्नी बाई, शहडोल में भाजपा नेता विमलेश की भाभी प्रभा मिश्रा, निवाड़ी में जिला भाजपा उपाध्यक्ष की माताजी सरोज राय एवं नरसिंहपुर में भी भाजपा मंडल अध्यक्ष की पत्नी ज्योति काकोडिय़ा ने अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज कराई है।
गंवाने पड़े छह जिले
दो केंद्रीय मंत्रियों, दो पूर्व मंत्रियों और कुछ वरिष्ठ नेताओं की जिद की वजह से भाजपा को आधा दर्जन जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष का पद गंवाना पड़ा है। इस पर पार्टी की नाराजगी इससे समझी जा सकती है की इसकी जानकारी प्रदेश संगठन ने शीर्ष स्तर पर भी दे दी है। जिन जिलों में पार्टी को अध्यक्ष का पद खोना पड़ा है उनमें डिंडोरी, दमोह, देवास, बालाघाट, सिंगरौली और नर्मदापुरम शामिल हैं। इन जिलों में सामने आया है कि नेता दामाद, पत्नी या समर्थकों को अध्यक्ष बनवाने में लगे रहे या आपसी कलह हार की वजह बन गई। पार्टी सूत्रों के मुताबिक डिंडोरी में केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते अपने दामाद को अध्यक्ष बनवाने में लगे रहे, जबकि पूर्व मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे अपनी पत्नी के लिए अड़े रहे। इस वजह से डिंडोरी में कांग्रेस जीत गई। इसी तरह दमोह में केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल और पूर्व मंत्री जयंत मलैया के बीच जारी खींचतान हार की वजह बनी। बड़वानी में भाजपा ने पूर्व मंत्री अंतरसिंह आर्य की बहू कविता आर्य को अधिकृत प्रत्याशी बनाया था , लेकिन वहां पर पशुपालन मंत्री प्रेमसिंह पटेल के बेटे बलवंत पटेल ने बागी होकर अध्यक्ष पद पर कब्जा कर लिया।
तीन दिन चली रणनीति की कवायद
जिला-जनपद पंचायतों में अध्यक्ष-उपाध्यक्ष के निर्वाचन के लिए तीन दिन तक पार्टी मुख्यालय और सीएम हाउस अघोषित रुप से कंट्रोल रूम बना रहा। बुधवार को पार्टी दफ्तर में तीन घंटे और सीएम हाउस में रात साढ़े दस बजे तक सीएम शिवराज सिंह, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन महामंत्री हितानंद जीत की रणनीति बनाते रहे। यही हाल गुरुवार को भी रहा। शुक्रवार सुबह 8 बजे फिर सभी सीएम हाउस पहुंच गए थे और जिलों पर नजर रखे रहे। इसके बाद भी कई जगह पार्टी को हार का सामना करना पड़ गया।
सांसद निधि से बड़ी होती है जिला पंचायत की निधि
मप्र में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में मारामारी, विवाद और आरोप-प्रत्यारोप की वजह है सांसद-विधायक निधि से बड़ी निधि का होना। सांसद को पांच साल में 25 करोड़ और विधायक को अब 3 करोड़ रुपए मिलेंगे, लेकिन कई जिला पंचायतें ऐसी भी हैं, जहां बैलेंस बचा हुआ है। यानि बजट खर्च ही नहीं हो सका। इसमें सबसे ज्यादा राशि खरगोन जिपं में 44 करोड़ रुपए बची हुई है। प्रदेश में जिला पंचायत सदस्यों को विधायकों की तरह गुजरात और छत्तीसगढ़ भेजना, बाड़ेबंदी करना। इसकी पीछे की वजह जिला पंचायतों के बजट को लेकर सामने आई है। विधायक और सांसदों से ज्यादा बजट तो जिला पंचायतों का होता है। किस गांव में सड़कें बनना है, कहां पंचायत भवन बनना है, कहां आंगनबाड़ी और कहां तालाब। यह सब गांव की सरकार के मुखिया यानी जिला पंचायत अध्यक्ष से ही तय होता है। गांव में कोई काम करवाने के लिए ग्राम सभा से प्रस्ताव पारित कराने के बाद जिला रुपए के कार्य होने हैं तो उसका पंचायत को भेजा जाता है। जिपं की बैठक में उसे स्वीकृत करने या न करने का निर्णय होता है। खरगोन में 20.27 करोड़ रुपए के विकास कार्य करवाए गए। यहां सबसे ज्यादा पैसे सीसी रोड और आंगनबाडिय़ों के निर्माण पर खर्च हुए हैं । सबसे ज्यादा 44 करोड़ रुप बैंक बैलेंस भी खरगोन जिला पंचायत के अकाउंट में है। जबकि ग्वालियर जिपं के अकाउंट में 5.13 करोड़ रुपए जमा हैं ।