
- बड़ी संख्या में युवा इस बीमारी से हो रहे हैं ग्रसित
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। देश के युवाओं में स्लीप एप्निया बीमारी तेजी से फैल रही है। यह बीमारी कितनी घातक है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कोरोना के दौरान सबसे ज्यादा मौतें उन लोगों की हुई, जिनमें स्लीप एप्निया था। इस वजह से उनके शरीर में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती थी। आने वाले दिनों में यदि कोरोना केस बढ़ते हैं तो लोगों को और परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
एक सर्वे की मानें तो भारत में 10 से 14 प्रतिशत युवाओं में ये बीमारी तेजी से बढ़ रही है। बहुत सारे युवाओं को ये पता भी नहीं होता है कि उनको स्लीप एप्निया हो गया है। महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ये बीमारी ज्यादा देखी जा रही है। देश में 1 से 10 साल तक के 10 प्रतिशत बच्चे कभी न कभी खर्राटे लेते हैं। इसमें से तीन प्रतिशत को ये बीमारी हो जाती है।
नींद में खर्राटे लेना घातक संकेत
गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल के पल्मोनरी मेडिसिन एंड टीबी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. निशांत श्रीवास्तव ने बताया कि यदि आपको जोर-जोर से खर्राटे लेने, नींद में बेचैन होकर उठ जाने जैसे लक्षण हैं तो आप स्लीप एप्निया रोग से ग्रसित हैं। देश में 10 प्रतिशत लोगों को स्लीप डिसऑर्डर है। वे नींद में खर्राटे लेते हैं। सोते समय खर्राटे लेने वालों के बारे में समझा जाता है कि वे गहरी नींद में हैं, लेकिन हकीकत यह है कि उनके हार्ट को सही तरीके से ऑक्सीजन नहीं मिलती है।
हार्ट अटैक होने का खतरा: खरार्टे भरने वाले मरीजों की स्लीप स्टडी में पाया गया कि एक घंटे की नींद में 80 से ज्यादा बार नींद खुल जाती है। रात में नींद पूरी न होने से ऐसे लोग गाड़ी चलाते हुए, बस में बैठे हुए और रिक्शे पर बैठे-बैठे सो जाते हैं। इससे कई बार एक्सीडेंट का खतरा रहता है। इस बीमारी का समय पर इलाज न हो, तो यह न केवल डायबिटीज और बीपी का कारण बनती है ,बल्कि हार्ट अटैक होने का खतरा भी रहता है। भोपाल के हमीदिया अस्पताल में स्लीप लैब में इस बीमारी के मरीजों पर स्टडी की जाती है। फिलहाल अभी अस्पताल की शिफ्टिंग के चक्कर में स्लीप लैब शुरू नहीं हो पाई है। अगले कुछ दिनों में ये दोबारा टीबी अस्पताल में शुरू होगी। पल्मोनरी मेडिसिन एंड टीबी विभाग के डॉक्टर्स ने बताया कि ओपीडी में जांच के बाद जिन मरीजों को स्लीप लैब में डायग्नोसिस के लिए बुलाया जाता है। यहां रात में मरीज के सोने के बाद नींद में उनके हाथ, पांव, चेस्ट, ब्रेन, पेट से आने वाले सिग्नल की कंट्रोल रूम में बैठा लैब टेक्नीशियन निगरानी करता है। कंट्रोल रूम में लगे कंप्यूटर पर मरीज का डाटा ऑटोमेटिक सेव हो जाता है। इसके बाद डॉक्टर्स डाटा के आधार पर मरीज का इलाज करते हैं।