
-नक्सलियों के आत्मसमर्पण की सरकार ने बनाई नीति, पुलिस मुख्यालय ने मसौदा तैयार कर गृह विभाग को भेजा
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र को नक्सल मुक्त बनाने के लिए सरकार ने नक्सलियों के आत्मसमर्पण की नीति बनाई है। इस नीति के तहत नक्सलियों को आत्मसमर्पण करवाकर उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जाएगा। साथ ही आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली को पुलिस का मददगार बनाकर प्रदेश को नक्सलमुक्त करने का अभियान चलाया जाएगा। सरकार को उम्मीद है कि इस नीति से प्रदेश में सक्रिय नक्सलियों को आत्मसमर्पण करवाने में सफलता मिलेगी। जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार ने आत्मसर्मपण को लेकर जो नीति तैयार की है, वह छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से अलग है। बताते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसको लेकर सैद्धांतिक सहमति प्रदान कर दी है। पुलिस मुख्यालय ने मसौदा तैयार कर गृह विभाग को भेज दिया है। जल्दी इसे मंजूरी के लिए कैबिनेट में पेश किया जाएगा। नक्सलियों को आत्मसमर्पण कराकर उनके राहत और पुनर्वास का इंतजाम सरकार की ओर से किया जाएगा।
माओवादियों को रखा जाएगा इंटेलीजेंस में : नक्सल प्रभावित अन्य राज्यों की तरह प्रदेश सरकार ने नक्सलियों और माओवादियों को मुख्य धारा में लौटाने के लिए आत्मसमर्पण नीति बनाई है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को पुलिस से जोड़ा जाएगा और उनसे मददगारों की जानकारी हासिल की जाएगी। मसलन, हथियार कहां से आते हैं, फंडिंग कहां से होती है, किस मार्ग से नक्सलियों का आना-जाना होता है, बड़े इनामी नक्सली को सरेंडर कराने अथवा पकड़वाने में मदद करते हैं, तो ऐसे माओवादियों को इंटेलीजेंस में रखा जाएगा। उन्हें पुलिस में भर्ती भी किया जाएगा।
पांच साल में एक भी नक्सली ने नहीं किया आत्मसमर्पण: सूत्रों की मानें तो पिछले पांच साल में एक भी नक्सली ने प्रदेश में आत्मसमर्पण नहीं किया है। लिहाजा प्रदेश के बालाघाट, डिंडोरी और मंडला में नक्सलियों का मूवमेंट बढ़ा है। तीनों जिलों में नक्सलियों की मदद करने वाले बढ़े हैं। बहुत सारे तो नक्सलियों के साथ हो गए हैं। प्रदेश में आत्मसमर्पण नीति नहीं होने के कारण संख्या में इजाफा हुआ और नक्सलीगढ़ बनना शुरू हो गया है। नक्सलियों की जो गतिविधियां बालाघाट तक सीमित थी, वे अब मंडला और डिंडोरी तक पहुंच गई हैं। पांच साल में एक भी नक्सली ने मध्यप्रदेश में आत्मसमर्पण नहीं किया है।
पुनर्वास की बेहतर व्यवस्था
नक्सलियों के पत्र और हथियार के हिसाब से उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाएगी। मसलन, अगर कोई नक्सली बड़े हथियार, एसएलआर, एके-47 जैसे हथियारों के साथ आत्मसमर्पण करता है, तो उसे पांच लाख रुपए तक देने का प्रावधान किया गया है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए पुनर्वास नीति भी बन रही है। इसमें कहा गया है कि आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के निवास के लिए सुरक्षित स्थान पर मकान बनाने के लिए आवश्यक राशि दी जाएगी। नक्सलियों की शैक्षणिक योग्यता के अनुसार शासकीय सेवा अथवा सुरक्षित स्थान पर कृषि योग्य भूमि और स्वयं का व्यवसाय चलाने के लिए प्रशिक्षण एवं आवश्यक लागत राशि भी प्रदान की जाएगी। पुनर्वास के लिए राहत राशि पांच लाख से 12 लाख रुपए तक दिए जाने का प्रावधान है। नक्सली आत्मसमर्पण के योग्य है या नहीं? यह तय करने के लिए जिला और राज्य स्तर पर समिति बनाई जाएगी। आत्मसमर्पण करने वालों को पांच लाख रुपए अथवा उनकी गिरफ्तारी पर इनाम के बराबर राशि (जो भी अधिक हो) दी जाएगी। यदि कोई नक्सली सरेंडर करने के बाद व्यावसायिक जिंदगी जीना चाहता है, तो उसकी पढ़ाई के लिए 36 महीने तक 6000 रुपए दिए जाएंगे।
मिलेगी सहायता राशि
सरेंडर करने वाले अविवाहित माओवादियों को शादी के लिए 25 हजार रुपए दिए जाएंगे। उन्हें आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य बीमा, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत एक घर और खाद्य सुरक्षा योजना के तहत राशन दिया जाएगा। पुलिस की मदद करने वाले नक्सलियों को एसपी अपने जिलों में आरक्षक के पद पर भर्ती कर सकते हैं। नक्सलियों द्वारा मारे गए लोगों के परिवार को 5 लाख का मुआवजा दिया जाएगा, जबकि माओवादी विरोधी अभियानों में मारे गए सुरक्षाकर्मियों के परिवार 20 लाख की राहत राशि प्रदान की जाएगी। सजा के बाद जेल में बंद नक्सलियों को साल में तीन बार 15-15 दिन के लिए पैरोल पर छोड़ा जाएगा।