
-निजी कंपनियों और लोगों के व्यक्तिगत सहयोग से होगा वनों का विकास
-कार्बन क्रेडिट उपयोग कर सकेगी निधि देने वाली संस्था
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के बिगड़े वन क्षेत्र को हरा-भरा करने के लिए वन विभाग निजी कंपनियों और लोगों से सहयोग लेगा। इसके लिए राज्य वन विकास अभिकरण बनाया गया है। अभिकरण के माध्यम से निजी संस्था या व्यक्ति से निधि जमा कराई जाएगी। जिसे बाद में संयुक्त, सामुदायिक वन प्रबंधन समिति को दिया जाएगा। समिति अपने क्षेत्र में पौधरोपण का कार्य कराएगी।
वन विभाग ने संयुक्त, सामुदायिक वन प्रबंधन समितियों के माध्यम से विभिन्न कंपनियों, औद्योगिक इकाईयों सीएसआर (कॉपोर्रेट सोशल रिस्पांसबिलिटी), सीईआर (कॉपोर्रेट इंवायरमेंट रिस्पांसबिलिटी) व अशासकीय निधियों के उपयोग से वृक्षारोपण की नीति बनाई है। इन नीति का उदेश्य स्थानीय समुदायों की वन आधारित आजीविका को सुदृढ़ करने के लिए प्रदेश के बिगड़े वनों को पुनर्स्थापित करना है।
वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार सीएसआर व सीईआर के अंतर्गत लोक कल्याण के लिए पर्यावरण संरक्षण, वृक्षारोपण आदि गतिविधियां की जाएगी। स्थानीय प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर 10 वर्षीय सूक्ष्म प्रबंधन योजना (माइक्रो प्लान) को वन मंडल अधिकारी द्वारा स्वीकृत की जाएगी। जिसमें प्रस्तावित गतिविधियों को संपादित करने के लिए सीएसआर व सीईआर या अन्य स्त्रोतों से निधियां प्राप्त की जाएगी। अधिसूचित वन क्षेत्रोंं में 0.4 से कम घनत्व वाले बिगड़े वनों को वृक्षारोपण के माध्यम से पुनर्स्थापित किया जाएगा। निकाय या संस्थाएं अपनी प्राथमिकता के अनुसार स्थल या क्षेत्र का चयन कर सकेंगे।
न्यूनतम 10 हेक्टेयर क्षेत्रफल का चयन
वन भूमि पर किए जाने वाले वृक्षारोपण के लिए न्यूनतम 10 हेक्टेयर क्षेत्रफल का चयन किया जाएगा। वनों का पुनर्स्थापन करने के लिए वनमंडलाधिकारी और वन समिति की आम सभा का अनुमोदन प्राप्त होने पर समिति को आवंटित वन क्षेत्र के विकास के लिए सूक्ष्म प्रबंधन योजना तैयार करने की कार्यवाही शुरू की जाएगी। वनमंडलाधिकारी द्वारा वन क्षेत्र का एक डिजिटल मानचित्र तैयार कराया जाएगा। जिसमें वन की वर्तमान स्थिति तथा प्रस्तावित उपचार कार्यों को अंकित किया जाएगा। त्रिपक्षीय अनुबंध के बाद एक वर्ष के अंदर कार्य शुरू करना होगा व दो वर्ष के अंदर वृक्षारोपण कार्य पूरा करना होगा। वृक्षारोपण के लिए निधियां उपलब्ध कराने वाली संस्था को त्रिपक्षीय अनुबंध अवधि 5 से 7 वर्ष होगी। निधि उपलब्ध कराने वाली संस्था को वन क्षेत्र या वनोनज पर किसी भी प्रकार का कोई अधिकार प्राप्त नहीं होगी, लेकिन निधि प्राप्त कराने के एवज में संस्था को कार्बन क्रेडिट का उपयोग करने का अधिकार होगा। वन क्षेत्र में ऐसा कोई कार्य नहीं किया जा सकेगा, जिससे स्थानीय समुदाय के अधिकारों व वन आधारित आजीविकाओं पर किसी भी प्रकार का विपरीत प्रभाव पड़े।
स्थानीय प्रजातियों को प्राथमिकता
पुनर्स्थापना की परियोजना में वन क्षेत्र में पाई जाने वाली प्राकृतिक रूप से उग रही प्रजातियों का संरक्षण किया जाएगा। वृक्षारोपण में स्थानीय प्रजातियों को प्राथमिकता दी जायेगी। विदेशागत प्रजातियों का रोपण प्रतिबंधित रहेगा। इतना ही नहीं इस कार्य में स्थानीय श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराने की प्राथमिकता दी जायेगी। स्थल पर वनों की वैधानिक स्थिति प्रदर्शित करने वाले पटल लगाए जाएगे। पौधारोपण कार्य में यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि, वृक्षारोपण में पौधों का जीवितता प्रतिशत 50 प्रतिशत से अधिक हो। जीवितता 50 प्रतिशत से कम होने पर अनुबंध निरस्त कर दिया जाएगा। इसके अलावा एक वर्ष की अवधि के अंदर अनुबंध के अनुसार कार्य शुरू नहीं करने, 2 वर्ष की अवधि में वृक्षारोपण का कार्य नहीं करने या अनुबंध की शर्तों का पालन नहीं करने पर वन मंडल स्तरीय वन विकास अभिकरण के सचिव को अनुबंध को निरस्त करने का अधिकार होगा। हालांकि निरस्ती के विरूद्ध अभिकरण के अध्यक्ष के समक्ष अपील की जा सकेगी।