
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। शाजापुर विधानसभा सीट मालवा-निमाड़ की चर्चित सीटों में से एक है। वजह उमा-शिवराज लहर में भी ये सीट कांग्रेस 2003 और 2008 के चुनाव में जीत गई, पर 2013 में वोट के छोटे से प्रतिशत से कांग्रेस को सीट गंवानी पड़ी थी। पूर्व मंत्री हुकुम सिंह कराड़ा को भाजपा के अरुण भीमावद ने महज 1938 वोटों से हरा दिया था। लेकिन 2018 में कराड़ा ने यह सीट फिर से कांग्रेस को दिला दी। कराड़ा यहां पांचवीं बार विधायक हैं। वे तीन बार मंत्री भी रह चुके हैं। लेकिन आज भी विधानसभा क्षेत्र में समसयाओं की भरमार है। चीलर, कालीसिंध और पार्वती नदियों का उद्गम स्थल होने के बावजूद शाजापुर अपने लिए पेयजल का इंतजाम बमुश्किल कर पाता है।
यहां से कांग्रेस के हुकुम सिंह कराड़ा लगातार सात बार चुनाव लड़े। इसमें दो बार हारे और पांच बार जीत हासिल हुई। लगातार 20 साल से भाजपा इस सीट पर वनवास काट रही थी। 2013 में भाजपा के भीमावद ने कराड़ा को मात दी। शाजापुर की राजनीति में भाजपा-कांग्रेस दोनों में ही गुटबाजी हावी है। फर्क सिर्फ इतना कि कांग्रेस में खुलकर गुटबाजी है तो भाजपा में अंदरूनी। कांग्रेस में दो पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा-कराड़ा के गुट हैं।
इतिहासकार डा. जगदीश भावसार कहते हैं कि मक्सी में काफी समय पहले औद्योगिक क्षेत्र बनाया गया था। तब उम्मीद थी कि शाजापुर को इसका लाभ मिलेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। खस्ताहाल और जर्जर मुख्य मार्ग, संकरी सडक़ों पर गुत्थमगुत्था होते वाहन और उखड़ी सडक़ यहां की मुख्य परेशानियां हैं। कालीसिंध, लखुंदर और चीलर नदियों पर 26 से ज्यादा बैराज बनाकर पानी संग्रह का प्रयास तो हुआ, मगर शहर में पेयजल की समस्या है।
स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली
यहां उत्पादित होने वाले संतरे बांग्लादेश तक निर्यात होने और सब्जियों, आलू-प्याज उत्पादन का बड़ा केंद्र होने के बावजूद एक भी फूड प्रोसेसिंग यूनिट नहीं होने के सवाल पर जनप्रतिनिधि चुप्पी साध लेते हैं। मां राजराजेश्वरी के प्राचीन मंदिर तक का पहुंच मार्ग व्यवस्थित नहीं है। अतिक्रमण से घिरे नगर के मुख्य मार्ग की हालत भी खराब है। जिले में इंजीनियरिंग कालेज नहीं है और बड़ा कृषि क्षेत्र होने के बावजूद भी कृषि महाविद्यालय नहीं है। स्वास्थ सुविधाओं के नाम पर भी लोग यहां के जिला अस्पताल को रैफरल सेंटर कहते हैं। बेरोजगारी बड़ी समस्या है, युवाओं को रोजगार के लिए बाहर जाना होता है। मुख्य मार्ग खस्ताहाल, नगर के बीच बहने वाली नदी की ही सुध नही ली जा रही है।
रोजगार के संसाधन नहीं
यहां के निवासियों की बड़ी पीड़ा यही है कि शाजापुर शिक्षा और रोजगार जैसे दोनों महत्वपूर्ण क्षेत्रों में ही पिछड़ा है। इंदौर, उज्जैन जैसे जिलों से बेहतर कनेक्टेविटी होने, राज्य और राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ ही रेल नेटवर्क से जुड़ाव होने के बाद भी अपेक्षित विकास नहीं हुआ है। राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक हेमंत दुबे कहते हैं विकास की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, कि जिले में कृषि महाविद्यालय की मांग वर्षों से लंबित है। पांच दशक पहले नदियों पर जो डैम बने और बुनियादी विकास हुआ उसके बाद से शाजापुर में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ। भाजपा के प्रदेश मंत्री क्षितिज भट्ट बताते हैं- चुनाव जातिगत समीकरण साधकर लड़े जाते हैं। विकास कभी प्राथमिकता पर नहीं होता , इसलिए हमारा जिला इतना पिछड़ा है। तस्वीर बदलने के लिए हम प्रयास तो कर रहे हैं। वरिष्ठ अभिभाषक साजिद अली वारसी बताते हैं- क्षेत्र लंबे समय से राजनीतिक उपेक्षा का शिकार होता आया है।
विकास के अपने-अपने दावे
क्षेत्र में तमाम तरह की समस्याओं के बीच विकास के अपने-अपने दावे किए जा रहे हैं। कांग्रेस विधायक हुकुम सिंह कराड़ा कहते हैं रोजगार और उद्योग की कमी की बात सही है, लेकिन विकास नहीं हो रहा, यह कहना गलत है। गांव-गांव में काम हो रहे हैं। कांग्रेस सरकार ने आते ही शाजापुर के लिए 2500 करोड़ रुपये की नर्मदा-कालीसिंध योजना को मंजूरी दी थी। उसका कार्य तेजी से जारी है। रहली में 36 करोड़ रुपये की लागत से पंप हाउस बन रहा है। भैरव डोंगरी को विकसित करने की तैयारी है। वहीं पूर्व विधायक व बीते चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे अरुण भिमावद कहते हैं- कांग्रेस विधायक हुकुम सिंह कराड़ा के लिए विकास कोई मायने नहीं रखता। वे अपने वोट बैंक प्रबंधन से चुनाव जीतते हैं। यहां स्टेडियम, केंद्रीय विद्यालय, पालीटेक्निक कालेज जैसे जो भी विकास कार्य हुए हैं वो भाजपा सरकार ने ही करवाए हैं।
जातिगत समीकरण
शाजापुर विधानसभा में दलित और मुस्लिम वर्ग का दबदबा है। 2.18 लाख वोटर वाली शाजापुर में करीब 90 हजार वोट इन दोनों वर्ग के हैं। फिर राजपूत, पाटीदार, ब्राह्मण, गुर्जर का अच्छा खासा वोट है। इन चारों वर्ग को मिलाकर 70 से 80 हजार वोट हैं। शेष वोट राठौर, भावसार, समेत सामान्य व पिछड़ा का है। बीते चुनाव में भाजपा ने पाटीदार कार्ड खेला था और भीमावद जीते थे। कांग्रेस छह चुनाव से गुर्जर कार्ड खेल रही है। सातवीं बार भी इसी वर्ग के नेता को टिकट दिया है।