यस एमएलए: यहां दलों पर भारी पड़ते हैं निर्दलीय

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भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र की बुरहानपुर विधानसभा ऐसी सीट है, जहां पर निर्दलीय प्रत्याशी भाजपा व कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों पर भी भारी पड़ते हैं। यही वजह है कि इस सीट पर बीते नौ चुनावों में चार बार जनता ने निर्दलीय प्रत्याशियों को ही अपना जनप्रतिनिधि चुना है। इसके अलावा एक बार तो एनसीपी जैसे दल के प्रत्याशी तक को विधायक बनाया जा चुका है। इस सीट पर अभी भी निर्दलीय विधायक ठाकुर सुरेंद्र सिंह उर्फ शेरा हैं। उन्होंने भाजपा की दिग्गज विधायक और तत्कालीन मंत्री अर्चना चिटनिस को बीते चुनाव में पांच हजार से अधिक मतों से हराया था। यह बात अलग है कि वे कांग्रेस से टिकट के दावेदार थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला तो वे निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतर गए थे। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रविन्द्र महाजन को महज 15 हजार ही मत मिले थे, जिसकी वजह से वे तीसरे स्थान पर रहे थे। यह सीट पहले कांग्रेस का गढ़ रह चुकी है, लेकिन बाद में निर्दलीयों ने चुनावी समीकरण ऐसे बिगाड़े की कांग्रेस के लिए मुश्किल  सीट बन गई है। इस सीट का इतिहास देखें तो बीते 9 चुनावों में 4 बार निर्दलीय प्रत्याशी 2 बार भाजपा, 2 बार कांग्रेस और एक बार एनसीपी के प्रत्याशी ने जीत हासिल की है। हालांकि कांग्रेस के गढ़ में भाजपा की अर्चना चिटनीस ने सेंधमारी की थी, लेकिन उन्हें मंत्री रहते हुए ठाकुर परिवार के सुरेंद्र सिंह (शेरा भैया) ने शिकस्त दे दी। यहां पर 1985 में कांग्रेस की फिरोजा अली, 1990 में ठाकुर शिव कुमार सिंह, 1993 में महंत स्वामी उमेश मुनि और 1998 में शिव कुमार सिंह निर्दलीय विधायक बने। शिव कुमार की मृत्यु के बाद 1999 के उपचुनाव में उनकी बेटी मंजूश्री ने कांग्रेस से जीत दर्ज की। 2003 में एनसीपी के हमीद काजी जीते। फिर 2008 व 2013 में अर्चना चिटनीस जीती , लेकिन 2018 में निर्दलीय प्रत्याशी ठाकुर सुरेंद्र सिंह ने मंत्री चिटनीस को हरा दिया। इस बार एक बार फिर बीते चुनाव की ही तरह चिटनीस और शेरा के बीच मुकाबला होना तय माना जा रहा है। यह बात अलग है कि इस सीट पर पूर्व भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह चौहान भी दौड़ में हैं। वहीं पूर्व निगमाध्यक्ष मनोज तारवाला भी दावेदारी जता रहे हैं, तो उधर कांग्रेस से अजय रघुवंशी की भी दावेदारी बनी हुई है। कांग्रेस से निष्कासित ठाकुर सुरेंद्र सिंह शेरा को भारत जोड़ो यात्रा में कमलनाथ ने मुख्य जिम्मेदारी सौंपी थी, जिससे कांग्रेस से उनको टिकट मिलने की संभावना पूरी है।  इस सीट पर निर्दलीयों की जीत की वजह गुटबाजी है। इसके चलते जीतने वाले दावेदारों को जब टिकट नहीं दिया जाता है तो वे निर्दलीय मैदान में उतर जाते हैं और जीत दर्ज करने सफल रहते हैं। यह स्थिति पूरी तरह से कांग्रेस में ही रहती है। इस जिले में गुटबाजी का आलम यह है कि डेढ़ दशक से अधिक समय तक जिलाध्यक्ष रहे अजय रघुवंशी का विरोध हुआ तो उनकी जगह जिले की कमान रिंकू टांक को देने के बाद रघुवंशी से कांग्रेस ने दूरी बना ली। आलम यह है कि कर्नाटक जीत का जश्न भी दो अलग-अलग जगह मना । मौजूदा विधायक शेरा का कहना है कि मेरा परिवार पूरा कांग्रेसी है । मेरे दो बड़े भाई शिवकुमार सिंह व महेंद्र सिंह सांसद और विधायक रहे हैं। उन्होंने शहर विकास के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है। मैं पूरे क्षेत्र सुख-दु:ख में शामिल होता हूं। हमने विकास की गंगा बहाई है।
यह है जातीय गणित
बुरहानपुर विधानसभा में गुर्जर, मराठा और ओबीसी मतदाताओं का दबदबा रहा है। हालांकि शहरी क्षेत्र में मुस्लिम समाज की आबादी 65 प्रतिशत के करीब है, लेकिन पूरी विधानसभा में मुस्लिम वोट के बिना किसी का भी जीत दर्ज करना आसान नहीं है। हालांकि चुनाव में तात्कालिक मुद्दे भी अहम रहते हैं।
एमआईएमआईएम बिगाड़ेगी गणित
इस बार विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी बुरहानपुर की सीट पर चुनावी गणित बिगाड़ेगी। नगर निगम चुनाव में भी यह पार्टी कांग्रेस का गणित बिगाड़ चुकी है। यही वजह है कि महापौर पद पर यहां बीजेपी का कब्जा बरकरार रहा है। बीजेपी की माधुरी अतुल पटेल ने 542 वोटों से कांग्रेस की सहनाज अंसारी को हराया है। माधुरी दूसरी बार बुरहानपुर की महापौर बनी हैं, तो वहीं एक बार उनके पति भी इस बुरहानपुर के महापौर रह चुके हैं। दरअसल, कांग्रेस का गणित एमआईएमआईएम ने बिगाड़ा है, जिसने 10200 वोट लेकर कांग्रेस के वोटों का ध्रुवीकरण कर दिया। इससे एक बार फिर से कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ है। इसकी वजह से अल्पसंख्यक बाहुल्य क्षेत्र में कांग्रेस को हारना पड़ा है।
जनता का मत
इस क्षेत्र के मतदाताओं की अपने जनप्रतिनिधि को लेकर अलग-अलग राय है। यहां रहने वाले राम प्रकाश का कहना है कि जो भी विधायक बने, उसे रोजगार उपलब्ध कराना चाहिए। आज बेरोजगारी चरम पर है । जीत के बाद जनता को भूल जाते हैं। इसी तरह से कृष्णनारायण का कहना है कि ताप्ती का पानी हर साल बह जाता है, उसे घर-घर पहुंचाने की योजना साकार नहीं हो पाई । इसी तरह से एक अन्य मतदाता संजय सिंह का कहना है कि उद्योग स्थापित करें ताकि रोजगार को बढ़ावा मिल सके। वहीं छोटे-छोटे उद्यमियों को अनुदान दिलवाकर उन्हें सक्षम बनाना चाहिए। जबकि महिला मतदाता सविता सिंह का कहना है कि शहर की सडक़ों की हालत में सुधार हो चाहिए। जगह-जगह खड्ढे खोदे गए हैं। यहां पैदल चलना भी मुश्किल होता है।

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