
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मंदसौर की सुवासरा विधानसभा सीट वो सीट है, जहां पिछले 4 साल में दो बार चुनाव हुए हैं। हरदीप सिंह डंग कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे और उसके बाद भाजपा के टिकट पर भी जीते। सुवासरा में सीतामऊ और शामगढ़ जैसे बड़े इलाके शामिल हैं। यहां कपास, गन्ने और केले की खेती होती है। सुवासरा के विधायक हरदीप सिंह डंग कैबिनेट मंत्री हैं , लेकिन यहां विकास की रफ्तार बेहद सुस्त-सी नजर आती है।
चुनाव से पहले यहां विकास के वादे और दावे तो खूब किए जाते रहे हैं, लेकिन वो हकीकत में नजर नहीं आती। बस स्टैंड अतिक्रमण का शिकार है। गर्मियों में पानी की किल्लत होती है। सरकार के लाख दावों के बाद भी इलाके के लिए चंबल से पानी लिफ्ट नहीं हो पाया है। कोई बड़ा उद्योग नहीं है। इसलिए युवा बेरोजगार हैं। उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज की बिल्डिंग स्वीकृत हुई है काम पूरा नहीं हुआ। यानी सुवासरा मूलभूत समस्याओं के साथ किसानों की समस्या सबसे बड़ा मुद्दा है ,क्योंकि ज्यादातर किसान खाद की किल्लत को लेकर नाराज नजर आए। सुवासरा विधानसभा क्षेत्र अपने ऐतिहासिक कस्बों के साथ अफीम की खेती और उन्नत फसलों के लिए भी जाना जाता है। राजस्थान की सीमा पर बसे सुवासरा में बिजली और पानी की भरपूर उपलब्धता है। विंड एनर्जी (पवन बिजली) और सौर ऊर्जा की प्लेटें जगह-जगह नजर आती हैं। बस नहीं हैं तो उद्योग और रोजगार के अवसर। सडक़ों के हाल भी अच्छे नहीं है। किसान भी परेशान हैं। कभी खाद नहीं मिलती तो कभी फसल के सही दाम का टोटा रहता है। अफीम उत्पादक क्षेत्र होने से तस्करों की सक्रियता भी अधिक है। प्रदेश सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री हरदीप सिंह डंग यहां से विधायक हैं। नहारगढ़ गांव के कई निवासी कहते हैं कि महंगाई से हर आदमी बेहद परेशान है। फसलों के भाव बीते साल की तुलना में कम हैं। पेंशन लेने जाते हैं , तो इतने कागज मांगते हैं कि मुश्किल हो जाती है और कोई सुनवाई नहीं होती। विधानसभा क्षेत्र के बसई-डिगांव मार्ग की हालत बेहद खराब है। जगह-जगह गड्ढों की वजह से वाहन चलाने में लोगों को परेशानी होती है। वहीं लोगों का कहना है कि स्कूलों में शिक्षक और अस्पतालों में डाक्टरों की कमी, लोग शिक्षा और इलाज के लिए परेशान होते हैं। 22 करोड़ रुपये की सीतामऊ पेयजल योजना सफल नहीं, तालाब गहरीकरण जैस कार्य नहीं होने से लोग नाराज हैं। सुवासरा विधानसभा क्षेत्र में सघन वनक्षेत्र और पानी-चारे की उपलब्धता की वजह से गांव-गांव में गोशालाएं खोली गई थीं। देखरेख के अभाव में अब इनके हाल बुरे हैं। ग्रामीण आरोप लगाते हैं कि इसके लिए बकायदा बजट है लेकिन फिर भी कुछ काम नहीं होता। कृषि प्रधान क्षेत्र है लेकिन न फूड प्रोसेसिंग पार्क है या कोल्ड स्टोरेज हैं। नीलगाय यहां बड़ी संख्या में है जो किसानों की फसलें खराब करती हैं। इससे पार पाने के लिए भी कई बार किसान गुहार लगा चुके हैं लेकिन सुनवाई नहीं होती। क्षेत्र के सीतामऊ कस्बे में टेलरिंग व्यवसायी रमेश जोशी कहते हैं हमारा क्षेत्र बेहद पुराना है। इतिहास की विपुल संपदा यहां बिखरी है। ऐतिहासिक किले मिलता। में संग्रहालय, लाइब्रेरी और शोध केंद्र राज परिवार के सदस्यों ने बनाए थे जो आज भी स्थापित हैं, बावजूद इसके क्षेत्र का विकास नहीं हो सका। रोजगार के नाम पर यहां कुछ नहीं है। शासकीय योजनाओं का लाभ भी बराबर नहीं 22 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुई सीतामऊ पेयजल योजना भी विफल ही रही। यहीं के कृषक परमेश्वर सिंह कहते हैं किसानों की माली हालत सुधरी नहीं बल्कि और बिगड़ी ही है। डीजल से लेकर खाद तक सब तो महंगा है, बचत कहां से होगी। नए अस्पताल की घोषणा हो गई लेकिन इलाज के लिए तो अब भी बड़े शहरों का ही रुख करना होता है।
जातिगत समीकरण
जातिगत समीकरण की बात करें तो ये पाटीदार, पोरवाल और राजपूत वोटर्स के प्रभाव वाला क्षेत्र है। यहां सौंधिया राजपूत वोटर्स की संख्या 14 हजार, पोरवाल 16 हजार, राजपूत 16 हजार, मुस्लिम 18 हजार, पाटीदार 20 हजार और एससी वर्ग के 60 हजार वोटर्स हैं।
विकास के अपने-अपने दावे
विधानसभा क्षेत्र में विकास की बात पर विधायक हरदीप सिंह डंग का कहना है कि क्षेत्र में अरबों रुपये के विकास कार्य हुए हैं। 23 अरब 74 करोड़ रुपये की सिंचाई योजना स्वीकृत हो चुकी है। कार्य पूरा होते ही हर घर में पेयजल और सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध होगा। तीन अस्पताल स्वीकृत हो चुके हैं। दर्जनों स्कूल, सडक़ें , ब्रिज और अंडरपास का काम चल रहा है। किसानों को योजनाओं का लाभ दिलवाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस नेता राकेश पाटिदार का कहना है कि सुवासरा में केवल योजनाओं के नाम बदल दिए गए हैं। मैदानी कार्य कुछ नहीं हुआ। घोषणाओं और डीपीआर से जनता का क्या भला होगा? कहने को क्षेत्र में तीन सिविल अस्पताल मंजूर हुए हैं, लेकिन 95 प्रतिशत मामले रैफर कर दिए जाते हैं। रोजगार के लिए लोग परेशान हैं। कृषकों के लिए भी कुछ नहीं हुआ।
सियासी मिजाज
सुवासरा विधानसभा सीट 1952 में गरोठ विधानसभा में शामिल हुआ करती थी और ये भाजपा के मजबूत गढ़ों में से एक रही है, लेकिन 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने उलटफेर करते हुए भाजपा को मात दी। कांग्रेस के टिकट पर हरदीप सिंह डंग ने भाजपा के उम्मीदवार राधेश्याम पाटीदार को शिकस्त दी। भाजपा उस समय यहां गुटबाजी का शिकार हो गई थी। 2018 में भी डंग कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते, लेकिन फिर वे भाजपा में शामिल हो गए। 2020 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर चुनाव जीता। अब तक इस सीट पर 14 बार चुनाव हुए हैं जिसमें भाजपा ने 8 और कांग्रेस ने 6 बार जीत दर्ज की है।
