यस एमएलए- क्या जीत की हैट्रिक लगा पाएंगे भनोट?

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। जबलपुर पश्चिम विधानसभा सीट कभी भाजपा का गढ़ हुआ करती थी, लेकिन पिछले दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने भाजपा के इस किले में सेंध लगा दी है। जबलपुर जिले की इस अनारक्षित सीट पर मुख्य मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच ही रहा है। इस साल होने वाले चुनाव में भी यहां इन्हीं दोनों दलों के उम्मीदवारों में घमासान होना तय है। चुनाव को देखते हुए इस सीट पर तमाम सियासी दल, मौजूदा विधायक और विपक्ष के उम्मीदवार जातिगत समीकरणों के बूते जीत का गणित समझने में जुट गए हैं। इस बेहद हाई प्रोफाइल सीट से फिलहाल कमलनाथ सरकार में वित्त मंत्री रहे तरुण भनोट विधायक हैं।
इस बार वो हैट्रिक लगाने की जुगत में है।  कांग्रेस इसे अपनी मजबूत सीट मानती है, तो भाजपा फिर अपने गढ़ में काबिज होना चाह रही है। जबलपुर जिले की इस विधानसभा से मां नर्मदा होकर गुजरती हैं। स्थानीय मुद्दों में नर्मदा पाथ-वे समेत फ्लाईओवर का निर्माण लंबे समय से यहां सुर्खियों में रहा है। कांग्रेस शासन के समय बतौर वित्त मंत्री और विधायक तरुण भनोत ने साबरमती की तर्ज पर नर्मदा रिवर फ्रंट की बड़ी घोषणा की थी, जिसे भाजपा की सरकार आने के बाद नर्मदा पाथ-वे या कॉरिडोर के रूप में नई योजना का नाम दिया गया। अब भाजपा अपने इस प्रोजेक्ट को भुनाने की कोशिश में है। हालांकि, नर्मदा में मिलने वाले गंदे नाले को लेकर भी यहां हर बार सियासत होती है।
कई मुद्दों को लेकर दोनों ओर से आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं। भाजपा यहां के विधायक पर निष्क्रिय होने का आरोप लगा रही है। गौरतलब है कि इस साल होने वाले चुनाव को लेकर दोनों पार्टियां एक-दूसरे को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। कांग्रेस जहां पिछले 10 सालों के कामों को लेकर लोगों को बीच वोट मांगने जाएगी, तो वहीं भाजपा प्रदेश के विकास को लेकर जनता के बीच अपनी बात पहुंचाएगी,लेकिन जनता के मन में क्या है। ये तो जनता ही जानती है। मां नर्मदा और गोंडवाना काल में बना मदन महल किला जबलपुर के पश्चिम विधानसभा क्षेत्र को देश भर में अलग पहचान दिलाता है।
विकास के अपने-अपने दावे
क्षेत्र में विकास तो खूब हुआ है। विधायक तरूण भनोत कहते हैं कि विकास के लिए हरसंभव प्रयास किए। जलसंकट से निपटने के प्रयास जारी हैं। 15 महीनों की कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में तीन हजार करोड़ से अधिक के विकास कार्य जिले के लिए स्वीकृत करवाए। कई कार्यों का बजट में प्रविधान भी करवा दिया, लेकिन मौजूदा सरकार ने राजनीतिक दुराग्रह की वजह से उन कार्यों को आकार नहीं लेने दिया। विधायक का कहना है कि क्षेत्र में पानी की सात टंकियों का निर्माण कराया, पांच का काम चल रहा। शंकरशाह नगर वार्ड में 100 बिस्तरों का अस्पताल बनवाया। आइटी पार्क के पास फोरलेन रोड का काम स्वीकृत कराया। बड़ी संख्या में ट्रांसफार्मर और बिजली के खंभे लगवाए। अनेक कालोनियों में सीसीटीवी कैमरे अपने वेतन-भत्ते से लगवाए। गोकुंभ को शासकीय कैलेंडर में दर्ज कराया, जो हर छह साल में होगा। शहीद गुलाब सिंह वार्ड में स्पोट्र्स कांप्लेक्स, स्वीमिंग पूल, जिम्नेशियम और कैफेटेरिया निर्माण, गुलौआ ताल में हाकर जोन का निर्माण कराया। वहीं भाजपा नेता हरेंद्रजीत सिंह बब्बू का कहना है कि विधायक ने कोई काम नहीं कराए। उन्होंने मदनमहल पहाड़ी की बस्तियों को बचाने का वादा किया था, लेकिन वो उजड़ गईं। उन्होंने रस्सा, तिरपाल और पैसा बांटने का ही काम किया। वे भाजपा कार्यकर्ताओं को प्रलोभन देकर तोड़ने में लगे हुए हैं। जो भी काम हुए हैं, वह प्रदेश की भाजपा सरकार ने कराए हैं। वहीं बालसागर में रहने वाले एक मतदाता का कहना है कि बालसागर और परसवाड़ा के लोगों की समस्याएं बहुत हद तक जस की तस हैं। हाथीताल कालोनी में रहने वाली एक महिला कहती हैं कि क्षेत्र में सडक़, बिजली और पानी की थोड़ी परेशानी है। गरीबों को खाद्यान्न वितरण संबंधी समस्याएं भी हैं। अच्छी बात यह है कि जानकारी मिलने पर जनप्रतिनिधि तत्काल समस्याओं पर संज्ञान लेते हैं। गढ़ा निवासी सुनील दुबे कहते हैं कि क्षेत्र की भीतरी गलियों में सडक़ की स्थिति खराब है। तंग बस्तियों की नालियां भी पुरानी और चोक हैं। गढ़ा के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पानी की समस्या बरकरार है। गौरीघाट में रहने वाले ईश्वर सिंह कहते हैं कि नर्मदा के प्रसिद्ध ग्वारीघाट का नाम बदलना अच्छा निर्णय है।
सियासी समीकरण
इस विधानसभा क्षेत्र पर 90 के दशक से 2013 तक भाजपा का प्रभुत्व रहा। इसके पहले यहां कांग्रेस का ही बोलबाला रहा, लेकिन 2013 के बाद से बदले राजनीतिक समीकरणों की वजह से यहां कांग्रेस की जड़ें फिर एक बार मजबूत हुईं। सियासी इतिहास पर नजर डाले तो 1998, 2003 और 2008 में भाजपा के हरेंद्रजीत सिंह बब्बू लगातार यहां से विधायक चुने गए। इसके बाद 2013 और 2018 के चुनाव में कांग्रेस के तरुण भनोत जीते। दूसरी बार जीतने पर उन्हें 15 माह की कांग्रेस सरकार में वित्त मंत्री जैसा महत्वपूर्ण दायित्व भी मिला। वोटर्स के लिहाज से जबलपुर पश्चिम विधानसभा जिले की सबसे बड़ी विधानसभा सीट है। यहां कुल 2 लाख 18 हजार 903 मतदाता हैं, जिनमें 1 लाख 11 हजार 672 पुरुष और 1 लाख 7 हजार 220 महिला वोटर्स के साथ-साथ 11 अन्य वोटर्स हैं।  जबलपुर जिले की पश्चिम विधानसभा सीट के जातिगत समीकरण की बात की जाए, तो यहां अनुसूचित जाति के 13 फीसदी , अनुसूचित जनजाति वर्ग के सबसे कम 4 फीसदी, अन्य पिछड़ा वर्ग के 23 फीसदी मतदाता और अल्पसंख्यक वर्ग के 15 फीसदी मतदाता हैं।
10 साल से कांग्रेस का कब्जा
कुदरती तौर पर धनी होने के अलावा ये इलाका सामाजिक विविधता से भरा हुआ है। जितना वैभवशाली इस क्षेत्र का इतिहास रहा है, उतनी ही दिलचस्प यहां की सियासत है। 10 साल पहले तक भाजपा का गढ़ रही इस सीट पर फिलहाल कांग्रेस का कब्जा है। यहां ब्राह्मण समेत सिख समुदाय से जुड़े वोटर्स निर्णायक भूमिका में रहते हैं। वैसे, जबलपुर पश्चिम सीट के सियासी इतिहास पर नजर डाले तों 1998, 2003 और 2008 में भाजपा के हरेंद्रजीत सिंह बब्बू लगातार यहां से विधायक चुने गए थे, लेकिन 2013 के बाद से यह सीट कांग्रेस के खाते में आ गई। कांग्रेस के तरुण भनोत ने हरेंद्रजीत सिंह बब्बू को शिकस्त देकर भाजपा के इस किले में सेंध लगा दी।

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