यस एमएलए- पन्ना सीट: क्षत्रियों का बोलबाला

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भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम
बुंदेलखंड का पन्ना जिला अपने नायाब हीरों के लिए देशभर में मशहूर है। जंगल, बाघ और खनिज संपदा से भरपूर पन्ना विधानसभा क्षेत्र दुनिया भर के पर्यटकों को भले ही लुभाता हो, लेकिन क्षेत्र में समस्याएं इसकी स्थिति को अनाकर्षक बनाती हैं। अगर राजनीति की बात करें तो, जिले की तीनों विधानसभा सीटों पर राजघराने का प्रभाव देखा जा सकता है। वर्षों तक यहां राजघराने के लोग चुनाव लड़ते रहे हैं। इसके बावजूद क्षेत्र की स्थिति खराब हैं। बड़ी आबादी पलायन को मजबूर है। हीरों के लिए भी प्रसिद्ध इस क्षेत्र में निजी जमीनों से खनन पर प्रतिबंध लगा है। चीप पत्थर काटकर पहले हजारों लोग अपना जीवन यापन कर लेते थे, लेकिन अब स्थितियां अलग हैं। रानीपुर, खजरी कुड़ा, बड़ौदा, पांटा और ढलान चौकी जैसे 40 गांवों में पत्थर खदानें लगभग 10 हजार लोगों के जीविकोपार्जन का बड़ा साधन थीं, लेकिन अब इनके लिए पट्टा देना बंद कर दिया गया है। पेयजल संकट भी शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में गंभीर है। पांटा गांव के सुरती लाल कहते हैं कि राजस्व विभाग की उदासीनता के चलते पत्थर खदानों पर वन विभाग ने अपना अधिकार जमा लिया। कांग्रेस नेता शिवजीत सिंह बताते हैं कि 40 वर्षों से काबिज लोगों को भी राजस्व विभाग पट्टे नहीं दिलवा सका। खदानें बंद हो जाने से लोग बेरोजगार हो गए। ग्रामीण क्षेत्रों के आदिवासी रोजगार के लिए दिल्ली मुंबई जा रहे हैं। पन्ना की पहचान राष्ट्रीय उद्यान, हीरा खदानों के अलावा राजघरानों से भी है। पन्ना नगरी में 16वीं शताब्दी में महाराज छत्रसाल का पदार्पण हुआ था। उनके वंशजों में महाराज हृदय शाह, सभा सिंह, राजा अमान सिंह, महाराजा हिन्दूपत, महाराज किशोर सिंह, महाराजा रुद्र प्रताप सिंह, नृपत सिंह एवं लोकपाल सिंह के द्वारा पन्ना नगर सहित जिले में मंदिर, पैलेस, महेन्द्र भवन, तालाब, तलैया एवं स्कूल आदि बनवाए गए। 1956 में मध्य प्रदेश का गठन हुआ। उसके बाद सन् 1957 में विधानसभा के जब चुनाव हुए तो जिले की राजनीति का दरवाजा राज परिवार से ही खुला। 1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एवं जनसंघ दो ही पार्टियां जिले में प्रमुख रूप से थी। जिसमें कांग्रेस का बोलबाला था। उस समय पर जिले में तीन विधायक चुने जाते थे। जिसमें पवई से दो विधायक जिसमें एक सीट अनारक्षित थी एवं एक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी।
भाजपा-कांग्रेस में बराबर दबदबा
गौरतलब है कि पन्ना राजघराने का भाजपा व कांग्रेस दोनों दलों में बराबर दबदबा रहा है। महाराज नरेन्द्र सिंह सन् 1957 में पवई से एवं सन् 1962 में पन्ना से कांग्रेस से विधायक बने। देवेन्द्रनगर विधानसभा से देवेन्द्र विजय सिंह कांग्रेस से विधायक चुने गए। सन् 1967 के लोकसभा चुनावों के दौरान पन्ना जिला सतना लोकसभा सीट में शामिल था। इस चुनाव कांग्रेस ने राज परिवार के देवेन्द्र विजय सिंह को प्रत्याशी बनाया था। उस समय पर वह 35 हजार से अधिक मतों से चुनाव जीत गए थे। सन् 1971 के जब चुनाव हुए तो महाराज नरेन्द्र सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी और जनसंघ से चुनाव लड़ा तथा उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी सतना के डॉ. लालता प्रसाद खरे को 39 हजार से भी अधिक मतों से हराया। वर्ष 1977 में आपातकाल के बाद जब चुनाव हुए ,तो उन्होंने कांग्रेस के बि_ल भाई पटेल को डेढ़ लाख से अधिक मतो के अंतर से हराया। 1977 में पन्ना जिला दमोह लोकसभा क्षेत्र में शामिल था। महाराजा नरेन्द्र सिंह के बाद उनके पुत्र लोकेन्द्र सिंह भी राजनीति में आए। सन् 1977 में जब जनसंघ ने अपने आपको जनता पार्टी में विलीन कर दिया था, विधानसभा चुनाव में पन्ना विधानसभा क्षेत्र से जनता पार्टी की तरफ से लोकेन्द्र सिंह को चुनाव मैदान में उतारा गया। उन्होंने कांग्रेस के हेतराम दुबे को 11 हजार से अधिक मतों के अंतर से चुनाव हराया था।
राजपरिवार के कई सदस्य बने विधायक
सन् 1957 में जब चुनाव की अधिसूचना जारी हुई तो पवई से महाराज नरेन्द्र सिंह को कांग्रेस द्वारा टिकट दी गई तथा कांग्रेस से ही अनुसूचित जाति से रामदास को टिकट मिली। वहीं पन्ना विधानसभा से कांग्रेस ने बांदा जिले के काली प्रसाद को टिकट दिया। उस समय जनसंघ से पन्ना जिले के माने हुए अधिवक्ता राजेश्वरी दत्त झा को टिकट मिली। पन्ना विधानसभा की कांग्रेस से टिकट घोषित होने से महाराज पन्ना यादवेन्द्र सिंह नाराज हो गये और उन्होंने पन्ना से अजयगढ़ महाराज देवेन्द्र विजय सिंह को निर्दलीय चुनाव में उतार दिया। जब चुनाव के परिणाम घोषित हुए तो पन्ना से देवेन्द्र विजय सिंह पवई लगभग 5 हजार मतों से एवं महाराजा नरेन्द्र सिंह पवई से 11 हजार मतों से चुनाव जीत गए। इस तरह से मध्य प्रदेश गठन के उपरांत राजनीति का दरवाजा राजघराने से खुला। सन् 1993 में पन्ना जिले की दोनो सीटें पन्ना एवं पवई से राजपरिवार के सदस्य अलग-अलग पार्टियों से चुनाव मैदान में उतरे। जिसमें पवई से भाजपा ने महारानी दिलहर कुमारी को प्रत्याशी घोषित  किया तो कांग्रेस से इस विधानसभा से लोकेन्द्र सिंह को टिकट दिया था।
सियासी समीकरण
पन्ना विधानसभा वैसे भी परम्परागत भाजपा की सीट रही है। अधिकांश बार भाजपा से विधायक बने है। बीच-बीच में कांग्रेस  को भी विधायक बनाने का मौका मिला है। आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से बृजेन्द्र प्रताप सिंह ही बड़े दावेदार नजर आ रहें है। क्योंकि पन्ना विधानसभा मे भाजपा का वोट बैंक अधिक है। इसलिए वह पन्ना विधानसभा को नहीं छोड़ेगें। बृजेन्द्र प्रताप सिंह पूर्व में पवई से भी दो बार वर्ष 2003 तथा 2008 में विधायक रह चुके है। लेकिन 2013 में कांग्रेस पार्टी के पूर्व मंत्री मुकेश नायक से चुनाव हार गए थे और 2018 में उनकी पवई से टिकट बदलकर पन्ना से चुनाव लड़ाया गया था और वह कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी शिवजीत सिंह से लगभग 20 हजार वोटों से चुनाव जीते थे।

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