
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। श्योपर जिले का विजयपुर एक लंबा विधानसभा क्षेत्र है। विजयपुर से कराहल तक फैली सीट पर आज भी वाशिंदों को मूलभूत सुविधाओं की दरकार है। आदिवासी बाहुल्य सीट विजयपुर के कई गांवों तो ऐसे हैं, जहां आज भी शुद्ध पेयजल की दरकार है। वहीं इस क्षेत्र के लिए कुपोषण और पलायन का कलंक अब नासूर बन चुका है, जिसके समाधान के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनी। विजयपुर विधानसभा सीट पर वर्तमान में भाजपा के सीताराम आदिवासी विधायक हैं, जिन्होंने दो चुनाव हारने के बाद कांग्रेस के पूर्व मंत्री और प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत को 2018 में शिकस्त दी थी। 2006 में हुए परिसीमन के बाद इस विधानसभा क्षेत्र की भौगोलिक और जातिगत परिस्थितियां पूरी तरह बदल गई। पहले यह सीट मीणा बाहुल्य थी, लेकिन परिसीमन के बाद दोदर से लेकर सोईकला तक तीन दर्जन से अधिक गांवों को विजयपुर से हटाकर श्योपुर विधानसभा में शामिल कर दिया है, जिन गांवों को विजयपुर से श्योपुर विधानसभा में शामिल कराया गया। वे अधिकतर मीणा बाहुल्य गांव थे। उधर कराहल विकासखंड को श्योपुर विधानसभा से हटाकर विजयपुर विधानसभा में शामिल कर देने से इस सीट पर सहरिया जनजाति के मतदाता निर्णायक भूमिका में आ गए। इस विधानसभा में 65 हजार से अधिक वोट आदिवासियों के है। सहरिया मतदाताओं के बदौलत ही 2018 में सीताराम आदिवासी रामनिवास को हराकर पहली बार विधायक निर्वाचित हुए।
क्षेत्र में कुपोषण की स्थिति ये है कि आज भी हर साल कई बच्चे काल कवलित हो जाते हैं। हालांकि कुपोषण रोकने करोड़ों रुपए खर्चे किए जाते हैं, लेकिन धरातल पर ढाक के तीन पात वाली स्थिति है। वहीं क्षेत्र में रोजगार के लिए पलायन करना नियति बन गई है, लेकिन कोई देखने सुनने वाला नहीं है। क्षेत्र में भू-जलस्तर की स्थिति गंभीर है, जिसके कारण ग्रीष्मकाल मेंं पेयजल संकट उपजता है और कोई स्थाई समाधान करने के बजाय खानापूर्ति कर सीजन पूरा कर दिया जाता है। क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का आलम यह है कि आदिवासी क्षेत्र होने के बाद भी अस्पतालों में पर्याप्त डॉक्टर नहीं है, तो अन्य सुविधाएं तो दूर की कौड़ी है।
राजनीतिक समीकरण
इस विधानसभा सीट पर इस बार भी भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला तय है। बीते चुनाव में यहां भाजपा के सीताराम ने यहां पर जीत हासिल की है। उन्होंने कांग्रेस के रामनिवास रावत को हराया है। सीताराम को 63331 वोट मिले तो वहीं रावत को 60491 वोट मिले। इससे पहले इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा था और रामनिवास यहां के विधायक थे। 2013 में हुए चुनावों में कांग्रेस ने अप्रत्याशित रूप से यह सीट जीत ली। हालांकि जीत का अंतर 2149 वोट रहा था। फिर भी भाजपा लहर में हजार से भी कम वोट से हारना भी चौंकाने वाला परिणाम माना गया। इस सीट को भाजपा लंबे समय से फतह करना चाहती थी, लेकिन तक उन्हें सफलता नहीं मिली थी। 2008 में भी रामनिवास रावत ने ही भाजपा के सीताराम आदिवासी को मात दी थी। लेकिन बीते चुनाव में सीताराम ने जीत दर्ज कर अपनी हार का बदला ले लिया। इस बार विजयपुर विधानसभा सीट के परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होंगे, यह जनता को तय करना है।
चुनावी मुद्दा
इस सीट पर चुनाव में बेरोजगारी और विकास ही मुद्दा रहेगा। भाजपा विकास के नाम पर तो कांग्रेस बेरोजगारी के नाम पर वोट मांगेगी। चुनाव के दौरान भाजपा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के माध्यम से मिली सौगातों और सरकार की संचालित जनकल्याणकारी योजनाओं के नाम पर वोट मांगेगी। हाल ही में प्रदेश सरकार द्वारा आदिवासी विकासखंडों में लागू किए गए पेसा कानून के दायरे में कराहल विकासखंड भी आया है। ऐसा कानून के तहत आदिवासियों को व्यवस्था में मिले अधिकार के नाम पर भी भाजपा वोट मांगेगी। वहीं कांग्रेस बेरोजगारी को चुनावी मुद्दा बनाएगी। बता दें, विजयपुर, वीरपुर क्षेत्र से बड़ी संख्या में युवा प्राइवेट नौकरी के लिए दिल्ली, जयपुर, गुजरात, मुम्बई, बेंगलोर तक जाते है।
प्रमुख दावेदार
भाजपा की ओर से टिकट के लिए वर्तमान विधायक सीताराम आदिवासी, पूर्व विधायक बाबूलाल मेवरा, बृजराज सिंह चौहान, तुरसनपाल बरैया, एडवोकेट वीके शर्मा, परीक्षित धाकड, डॉ कल्याण सिंह रावत, अरविंद सिंह जादौन दावेदार हैं। वहीं कांग्रेस पार्टी की ओर से टिकट के प्रमुख दावेदार पूर्व मंत्री रामनिवास रावत है। वे विजयपुर से पांच बार विधायक रह चुके हैं और वर्तमान में कांग्रेस के प्रवेश कार्यकारी अध्यक्ष है। श्योपुर से कांग्रेस प्रत्याशी बनकर चुनाव लड़े चुके पूर्व जनपद अध्यक्ष कराहल छोटेलाल सेमरिया अपनी जाति के मतदाता सर्वाधिक होने के कारण कांग्रेस से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।
योजनाओं का लाभ नहीं
कराहल के आदिवासी युवक रामस्वरूप ने बताया कि हमारे नाम पर योजनाएं तो बहुत बनाई, लेकिन लाभ शायद ही मिला। आज भी आदिवासियों को रोजगार के लिए पलायन करना पड़ता है। वहीं पप्पू आदिवासी ने बताया कि अस्पतालों में कोई सुविधा नहीं है। गांवों में पानी का संकट है और आवागमन के साधन भी नहीं है। उधर विजयपुर के बस स्टैंड पर मिलने ग्रामीण युवक लखन आदिवासी ने बताया कि क्षेत्र में पीने को शुद्ध पानी भी नहीं मिलता