
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। जयसिंहनगर विधानसभा सीट शहडोल जिले में स्थित है। शबनम मौसी के रूप में देश को पहली किन्नर विधायक देने वाले जयसिंहनगर विधानसभा क्षेत्र आज भी विकास से दूर है। क्षेत्र में रोजगार के साधन नहीं है। किसान कर्ज से दबे हुए हैं। ऐसे में किसान खेती छोड़ रहे हैं और अपने खेत बेच रहे हैं।
यह क्षेत्र भाजपा का गढ़ हैं। जय सिंह मरावी यहां के विधायक हैं। शहरी क्षेत्र में थोड़ा बहुत विकास दिख भी जाता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र पूरी तरह उपेक्षित हैं। कृषि कॉलेज, नागपुर तक सीधी ट्रेन और उद्योगों में स्थानीय युवाओं को नौकरी बड़े मुद्दे हैं। उद्योग बढ़ेंगे तो ही यहां से आदिवासियों का पलायन रुकेगा। लोगों का कहना है कि जनहितकारी मुद्दों को लेकर चुनाव लडऩा चाहिए। बेरोजगारी भत्ता, पुरानी पेंशन, गैस सिलेंडर के दाम, बिजली बिल मुद्दे हो सकते हैं। युवाओं के लिए रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है। आगामी चुनाव में इस विषय पर विशेष रूप से विचार किया जाना चाहिए। महंगाई से लोग ज्यादा प्रभावित हैं। घर चलाने में बेहद परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं। स्थानीय मुद्दों पर भी फोकस होना चाहिए। प्राइवेट कंपनियों में स्थानीय युवाओं को रोजगार मिले। इसके साथ ही व्यापार के लिए बेहतर माहौल भी निर्मित होना चाहिए।
कांग्रेस यहां 20 साल से जीत के लिए हाथ-पांव मार रही है। जानकारों का कहना है कि हिंदू और सनातन धर्म के साथ मोदी का चेहरा है, जिसके चलते भाजपा के सिर जीत का सेहरा है। इसके साथ ही इस विस क्षेत्र से कोई मजबूत विकल्प न होना भी भाजपा के जीत की एक प्रमुख वजह है। चेहरे बदलते रहना चाहिए, जैसे उत्तर प्रदेश में योगी। वहीं अन्य ज्वलंत मुद्दों पर सरकार को विशेष रूप से काम करना चाहिए। इस बार चुनाव में भाजपा में जय सिंह मरावी के अलावा एडवोकेट मनोज आर्मो, प्रमिला सिंह, सुंदर सिंह सहित संचिता सरवटे भी कतार में शामिल हैं। कांग्रेस से नरेंद्र मरावी, दिव्या सिंह, जयकरण सिंह आदि दौड़ में हैं। समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी अपनी दावेदारी पेश करेंगे। हालांकि, इनके प्रत्याशियों के नाम अभी तक सामने नहीं आए हैं।
सियासी समीकरण
शहडोल जिले के जयसिंहनगर विधानसभा क्षेत्र से 71 वर्षीय जय सिंह मरावी विधायक हैं। पार्टी ने उन्हें जिस भी विधानसभा क्षेत्र से उतारा वहां जीत मिली। वे 1998 में अनूपपुर जिले के कोतमा से पहली बार जीते थे। दूसरी बार 2003 के चुनाव में में भी यहीं से जीते। तीसरी और चौथी बार ( क्रमश: 2008 और 2013) जैसे और पांचवी बार 2018 में जयसिंहनगर विधानसभा से चुनाव जीते। वैसे इस विधानसभा सीट पर लगातार दो दशकों से भाजपा का कब्जा है। जिसे भेदने का कांग्रेस ने अथक प्रयास किया। किन्तु कांग्रेसियों की आपसी गुटबाजी और अंतरकलह के चलते हर बार हार का सामना करना पड़ा। इस बार भाजपा विधायक की उम्र को लेकर नई रणनीति बनाने की जरूरत समझी जा रही है। माना जा रहा है कि आरएसएस से जुड़े शिक्षित आदिवासी युवा नेता पर भाजपा अपना दांव आजमा सकती है। वहीं कांग्रेस सीट को हासिल करने अलग मंथन कर रही है।
विकास के अपने-अपने दावे
क्षेत्र में विकास की बात पर कांग्रेस जिला प्रवक्ता हुसैन अली कहते हैं कि प्रदेश से लेकर केंद्र तक भाजपा की सरकार है। फिर भी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। महंगाई और बेरोजगारी जैसे कई मुद्दों को लेकर जनता में आक्रोश है। आगामी विस चुनाव में निश्चित रूप से बदलाव देखने मिलेगा और जनता कांग्रेस को विजय श्री दिलाएगी। वहीं विधायक जयसिंह मरावी का कहना है कि आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर जोर-शोर से तैयारी चल रही है। मेरे द्वारा क्षेत्र में विकास के कई कार्य पूरे कराए गए हैं। आम जनता से जुड़े मुद्दों को सरकार तक ले जाने का काम किया है। अगर पार्टी ने टिकट दी, तो चुनाव जरूर लड़ेंगे। आज भाजपा और मेरी खुद की जनमानस के बीच मजबूत पकड़ है।
समस्याओं की भरमार
क्षेत्र के लोगों का कहना है कि यहां समस्याओं की भरमार है। विकास की बात पर ग्रामीणों का कहना है कि बस्ती में चले जाओ, विकास दिख जाएगा। मझगवां बंधा बस्ती में शारदा सेन बोले, 40 से ज्यादा परिवार हैं, लेकिन बिजली नहीं है। बिजली पोल लाए हैं और टीसी कनेक्शन लेकर खुद के खर्च से बिजली तार जोड़ लिया है। गांव में चौपाल लगाए बैठे वृद्ध भोली बैगा और सुखलाल बैगा ने सरकार के कार्यों को लेकर नाराजगी जताई। बोले, न पीएम आवास मिला और न ही पेंशन मिल रही है। मंदलाल बैगा ने पानी की समस्या गिनाई। बोले, पहले खेती करते थे। अब पानी ही नहीं मिल पाता है। बांध है लेकिन पानी नहीं देते हैं। नहर से नीचे के गांवों को फायदा होता है। मशीन लगाने पर जब्त कर लेते हैं। लालमन बैगा बोले- उद्योग हैं नहीं। मजदूरी भी कम मिलती है। गांव-घर के युवा रोजी-रोटी के लिए हर साल पलायन कर जाते हैं। कुछ दूरी पर साधन का इंतजार करते हुए बहन को ससुराल से लेने आए दीपक कुशवाहा कहते हैं, यहां न ट्रेन रूट है न बस चलती है। आटो के भरोसे 50 से ज्यादा गांव हैं।
सर्वे में नाम नहीं, हम बैगाओं की क्या गलती
यहां से आदिवासी गांव पचड़ी व खौहाई में कई आदिवासी बैगा परिवारों के पास छत नहीं है। नागेश बैगा, संजीव बैगा, सुंदरलाल बैगा और सोनीलाल कहते हैं, पीएम आवास के लिए दर्जनों आवेदन कर चुके हैं। अधिकारी कहते हैं, 2011 सर्वे सूची में नाम न होने से आवास नहीं मिल सकता है। खौहाई गांव में भी यही स्थिति थी। आधे गांव में आवास आदिवासी परिवारों को स्वीकृत नहीं हुआ है। पचड़ी के ददरा टोला में आंगनबाड़ी केन्द्र की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि तीन कुपोषित बच्चे दर्ज हैं। 300 से ज्यादा आबादी है, फिर भी मुख्य आंगनबाड़ी नहीं है। 2 किमी दूर से पानी लाते हैं। आंगनबाड़ी के लिए बिल्डिंग नहीं है, उधार के अतिरिक्त भवन में लगाते हैं।