यस एमएलए-विकास के कामों का है इंतजार

एमएलए

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। भाजपा का मजबूत गढ़ होने के बावजूद पिछले बार के उपचुनाव में इस सीट पर कांग्रेस अपना कब्जा जमाने में कामयाब रही। हालांकि जनता के एक बड़े वर्ग का मानना हैं की पिछले सभी विकास के कार्य पूर्व विधायक जयंत मलैया के कार्यकाल में कराये गए थे। उन्होंने क्षेत्र को कई बड़ी सौगाते भी दी थी। वे जनता के सम्पर्क में रहकर उनकी पीड़ा को समझते थे। लोगों का कहना है कि मौजूदा विधायक के कार्यकाल में दमोह विकास की दौड़ में पीछे रह गया। बड़े कामों को छोड़ भी दिया जाए तो बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति में भी विधायक पूरी तरह नाकाम रहे है।
क्षेत्र में साफ सफाई का अभाव है, पेयजल की सुविधा भी लचर है। इस तरह देखा जाए, तो दमोह में विकास और कल्याण के किसी तरह के उल्लेखनीय कार्य नहीं हुए हैं। हालांकि जनता क्या बदलाव करेगी या फिर मौजूदा विधायक को फिर से एक मौका देगी, यह भविष्य के गर्भ में हैं और यह 2023 के विधानसभा चुनाव में ही तय होगा। दमोह विधानसभा सीट मप्र की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है, जहां 2021 में इंडियन नेशनल कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इंडियन नेशनल कांग्रेस से अजय कुमार टंडन ने भाजपा के राहुल सिंह को 17 वोटों के मार्जिन से हराया था।  क्षेत्र की जनता की अपने क्षेत्रीय विधायक अजय कुमार टंडन से तमाम शिकायतें हैं। अजय कुमार ना ही क्षेत्र का दौरा करते और ना ही जनसम्पर्क। ऐसे में क्षेत्र और लोगों की समस्या को वे समझ नहीं पाएं। और यही वजह रही की दमोह की समस्याएं आज भी यथावत हैं। क्षेत्र में गंदगी का आलम हैं। सडक़ों  की स्थिति दयनीय हैं। इस तरह आम रहवासी विभिन्न तरह की बुनियादी समस्यायों से जूझता नजर आ रहा हैं। दमोह के लोगों की एक बड़ी समस्यायों में क्षेत्र में व्याप्त बेरोजगारी यानि रोजगार के साधनों की अनुपलब्धता हैं। कल-कारखाने और उद्योग नहीं होने से क्षेत्र के शिक्षित युवा बेरोजगार हैं और एक बड़ी आबादी पलायन करने पर भी मजबूर हैं।
विकास के अपने-अपने दावे
क्षेत्र में विकास को लेकर विधायक अजय टंडन का कहना है कि जनहित के जो अधूरे कार्य हैं, उन्हें पूरा करना हमारा सबसे बड़ा उद्देश्य है। इसके लिए हम ईमानदार व स्वच्छ प्रयास कर रहे हैं । जनता भी भाजपा के खेल को अच्छी तरह समझती है। कांग्रेस एक ऐतिहासिक पार्टी है, जो आजादी के बाद से देश को समृद्धि की राह पर लेकर चली। आगे भी कांग्रेस की विजय होगी। वहीं भाजपा जिलाध्यक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि सरकार ने जनहितकारी योजनाओं से जो कार्य किए हैं, उससे दमोह में भाजपा की जीत निश्चित है। क्षेत्र के अधिकांश गांवों में नल-जल योजना के माध्यम से पानी पहुंच रहा है। लाड़ली बहना योजना ने महिलाओं को संबल प्रदान किया, जो भाजपा की जीत सुनिश्चित करता है। जानकारों का कहना है कि प्रदेश में ऐसी कम ही सीट होंगी, जिसके लिए भाजपा को चिंतन करना पड़ेगा। फिर भी अगर भाजपा अपना उम्मीदवार बदलेगी तो, कांग्रेस को मुश्किल हो सकती है। लेकिन भाजपा ने हठधर्मिता दिखाई तो उसके लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। यहां की जनता दल बदल पसंद नहीं करती है। जातिगत समीकरण भी अहमियत रखते हैं।
राजनीतिक समीकरण
बीजेपी यहां तीन गुटों में बंटी नजर आती है। पहला गुट जयंत मलैया का समर्थक है और दूसरा गुट केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को सपोर्ट करता है। राहुल सिंह लोधी के बीजेपी में शामिल होने से उनके समर्थकों का तीसरा गुट यहां तैयार हो गया है। बीजेपी यदि नए चेहरे को लाती है तो कांटे की टक्कर हो सकती है। जयंत मलैया अपने बेटे सिद्धार्थ के लिए टिकट मांगेंगे। हालांकि पार्टी नहीं मानी तो खुद मैदान में उतरेंगे। राहुल सिंह लोधी यहां थोड़ा कमजोर पड़ते नजर आ रहे हैं, लेकिन बीजेपी की इस सिर फुटव्वल में कांग्रेस को फायदा होता नजर आ रहा है।
विधानसभा क्षेत्र के मुद्दे
दमोह विधानसभा क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज सबसे बड़ा मुद्दा है। इसी मुद्दे को लेकर यहां उपचुनाव तक की स्थिति निर्मित हुई पर अभी भी मेडिकल कॉलेज दमोह में नहीं आ पाया। इस विधानसभा इलाके में बेरोजगारी को लेकर युवा वर्ग परेशान है। रोजगार नहीं होने से लोग यहां से पलायन कर रहे हैं। लॉकडाउन में अपने घर लौटे मजदूरों की संख्या सवा लाख से भी ज्यादा थी। इस इलाके में विकास कार्यों की गुणवत्ता और उसमें हो रहे भ्रष्टाचार का मुद्दा भी सुर्खियों में रहता है। इस इलाके में कानून व्यवस्था की खराब हालत है तो वहीं पेयजल की समस्या को मुद्दा बनाकर 7 चुनाव जीते जयंत मलैया भी सिर्फ वादे करके ही रह गए थे। जनता की इन तमाम समस्याओं पर जब हमने राजनीतिक दलों के नुमाइंदों से बात की तो वे एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते नजर आए।
सियासी मिजाज
 2018 से पहले तक दमोह बीजेपी के किसी अभेद किले से कम नहीं था। 1984 में हुए उपचुनाव के बाद से यहां लगातार बीजेपी ही जीती। पूर्व मंत्री जयंत मलैया यहां से लगातार 7 बार विधायक चुने गए। 2018 के चुनाव में रामकृष्ण कुसमरिया की बीजेपी से बगावत के कारण ये सीट बीजेपी के हाथ से निकल गई और कांग्रेस की टिकट पर राहुल सिंह लोधी यहां से विधायक चुने गए। हालांकि मेडिकल कॉलेज की मांग पूरी न होने पर लोधी ने कमलनाथ सरकार से इस्तीफा दे दिया। उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर राहुल सिंह लोधी चुनाव लड़े पर हार गए। यहां वर्तमान में कांग्रेस से विधायक अजय टंडन हैं।
जातिगत समीकरण
दमोह विधानसभा में ओबीसी वर्ग का दखल ज्यादा है। इस विधानसभा में डेढ़ लाख मतदाता हैं, जिसमें लोधी समाज के 40 हजार और कुर्मी समाज के 30 हजार मतदाता हैं। तो वहीं 42 हजार मतदाता अनुसुचित जाति वर्ग के हैं। ब्राह्मण वर्ग के करीब 25 हजार मतदाता हैं तो मुस्लिम समाज के 20 हजार और 17 हजार जैन वोटर भी हैं।

Related Articles