
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। उज्जैन संभाग में भाजपा-जनसंघ की पसंद वाली आगर -मालवा की सियासी पिच पर इस बार भाजपा को अपना गढ़ बचाने और कांग्रेस को रिकॉर्ड सुधारने की की चुनौती है। वर्तमान समय में यहां कांग्रेस का कब्जा है। विपिन वानखेड़े यहां विधायक हैं। 2020 में हुए उपचुनाव में विपिन वानखेड़े ने भाजपा के दिवंगत विधायक मनोहर ऊंटवाल के पुत्र मनोज ऊंटवाल को हराया था। मिशन 2023 फतह करने में जुटी पार्टियों के लिए आगर मालवा का गणित काफी दिलचस्प है। मध्य प्रदेश के शाजापुर से अलग होकर जिला बने आगर मालवा में 2 विधानसभा सीटें हैं, लेकिन राजनीतिक रस्साकशी सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। आगर विधानसभा सीट पर एक अजीब टोटका हावी है। मान्यता है कि एक बार आगर से विजेता प्रत्याशी को दूसरी बार पराजय मिलती है। इसलिए राजनीतिक पार्टियों पर डर हमेशा बना रहता है। राजनीतिक पार्टियां लगातार उम्मीदवारों को बदलते रहती हैं। हालांकि इस बार का मुकाबला दिलचस्प होने वाला है। वर्तमान विधायक विपिन वानखेड़े लंबे समय तक छात्र संगठन के प्रदेश अध्यक्ष रहे। इस दौरान ही करीब 2015 से इस विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय हुए। कांग्रेस संगठन के साथ ही इन्होंने अपने स्तर पर नेटवर्क तैयार कर 2018 का चुनाव लड़ा और भाजपा के देवास सांसद एवं प्रदेश भाजपा महामंत्री व पूर्व राज्यमंत्री मनोहर ऊंटवाल जैसे कद्दावर नेता के सामने चुनौती खड़ी कर दी। ऐसे में ऊंटवाल करीब ढाई हजार मतों से ही विजय हो सके। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। वानखेड़े ने पराजित प्रत्याशी होने से इस दौरान प्रभावी नेता के रूप में कार्य किया। सागर की सीमा राजस्थान, मंदसौर, नीमच, शाजापुर, उज्जैन जिलों से लगी हुई है। आगर जिले की राजनीति भोपाल से नहीं, बल्कि दिल्ली से चलती है। जिला भले ही छोटा हो मगर यहां पर राजनीतिक कद किसी का छोटा नहीं है। यही वजह है कि कई बार विधानसभा चुनाव का टिकट भी दिल्ली से फाइनल हुआ है। राजनीति से जुड़े लोग बताते हैं कि आगर जिले की सीट पर लगातार प्रत्याशियों को बदलने का सिलसिला जारी रहता है। कहा जाता है कि दूसरी बार चुनाव लड़ने वाली प्रत्याशी की जीत की राह कठिन होती है। इसलिए राजनीतिक पार्टियां लगातार प्रत्याशी बदलती रहती हैं। वैसे आगर विधानसभा सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती है, मगर उपचुनाव में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी विपिन वानखेड़े ने जीत दर्ज कराई है।
80 प्रतिशत मतदाता ग्रामीण
आगर विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है। यह सीट देवास-शाजापुर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। इसमें आगर, कानड़, बड़ौद नगरीय क्षेत्र एवं आगर व बड़ौद जनपद पंचायतें आती है। 80 प्रतिशत मतदाता ग्रामीण है। यह सीट वैसे तो जनसंघ के जमाने से भाजपा का गढ़ मानी जाती रही है। 1962 से इस सीट पर कोई भी विधायक लगातार दूसरी बार नहीं चुना गया। जनता हर बार नया विधायक चुनती है। आगर सीट पर अभी तक 2 उपचुनाव मिलाकर 16 विधानसभा चुनाव हुए हैं। जिसमें 12 बार भाजपा जीती है। जीत का अंतर भी 2014 के उपचुनाव तक 20 से 25 हजार से अधिक रहा है, लेकिन 2018 के आम चुनाव में जीत का अंतर घटकर करीब ढाई हजार मतों का रह गया और 2020 के उपचुनाव में करीब 2 हजार मतों से भाजपा पिछड़ गई। कांग्रेस के विपिन वानखेड़े विधायक चुने गए। गौरतलब है कि 2018 का चुनाव भी कांग्रेस से विपिन वानखेड़े ने लड़ा था। भाजपा से हाईप्रोफाइल नेता मनोहर ऊंटवाल मैदान में थे, जिनके निधन के कारण 2020 में उपचुनाव हुआ, जिसमें स्व. उंटवाल के पुत्र मनोज बंटी ऊंटवाल भाजपा के प्रत्याशी चुनाव 2023 में कांग्रेस से पुन: मौजूदा विधायक वानखेड़े का चुनाव लडऩा तय है। भाजपा में आधा दर्जन से अधिक नेता टिकट की दौड़ में शामिल हैं। ऐसे में आगामी चुनाव में भी यहां कशमकश मुकाबला होना संभावित है।
सियासी समीकरण
सीट 1967 से अजा के लिए आरक्षित हुई। यहां से ज्यादातर विधायक बाहरी चुने गए। जातिगत ध्रुवीकरण चुनावों में खास असरकारक नहीं रहा। अजा मतों में 90 प्रतिशत मत बलाई व महार समाज के हैं। बावजूद इन समाजों के विधायक मात्र 5 बार ही चुने गए। उल्लेखनीय यह भी है कि 1962 के बाद द कोई भी लगातार दूसरी बार विधायक नहीं बन पाए। विधानसभा क्षेत्र में बड़ौद जनपद पंचायत क्षेत्र सौंधिया समाज बाहुल्य है। 2014 के उपचुनाव तक इस समाज के करीब 70 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन परंपरागत रूप से भाजपा को मिलता रहा है। भाजपा के हाईप्रोफाइल नेता सत्यनारायण जटिया की राजनीति की शुरुआत 1977 में आगर से विधायक बनने के साथ शुरू हुई। इसी प्रकार उज्जैन के फिरोजिया परिवार की राजनीति की शुरुआत 1967 में यहां से भूरेलाल फिरोजिया के पहली बार विधायक बनने के साथ हुई। उनकी पुत्री रेखा रत्नाकर भी आगर से विधायक बनी।
दूसरी बार चुनाव में प्रत्याशी को नहीं मिलती जीत
विधानसभा चुनाव 2018 में विपिन वानखेड़े मनोहर ऊंठवाल से 2490 मतों से हार गए थे। साल 2020 में हुए उपचुनाव में मनोज ऊंठवाल को कांग्रेस के विपिन वानखेड़े ने हराकर जीत हासिल की है। विधायक विपिन वानखेड़े इस बार भी आगर सीट से प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। उन्हें कांग्रेस अपनी ओर से प्रत्याशी बनाएगी जबकि बीजेपी से पूर्व विधायक रेखा रत्नाकर और मनोज ऊंठवाल को मैदान में उतारा जा सकता है। इसके अलावा पूर्व विधायक लालजी राम और गोपाल परमार भी बीजेपी की ओर से दावेदार हैं। अनुसूचित जाति 55 हजार, सौंधिया समाज 50 हजार, राजपूत 12 हजार, यादव 13 हजार, मुस्लिम 17 हजार, बंजारा 12 हजार, गुर्जर 7 हजार, ब्राह्मण 12 हजार, वैश्य 10 हजार इन जातियों में अनुसूचित जाति में बलाई व महार समाज के उन्नीसा बीसा अंतर से 90 प्रतिशत मतदाता है।