यस एमएलए- रोजगार की तलाश में हो रहा पलायन

कांतिलाल भूरिया

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। आदिवासी बहुल झाबुआ में केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न योजानाओं से विकास के लिए अरबों रुपयों का फंड मिला लेकिन, जिस विकास की दरकार झाबुआ को है, वह दशकों बाद भी नजर नहीं आता। क्षेत्र में न कोई बड़ा उद्योग है, न रोजगार के संसाधन। इस कारण हर वर्ष सैकड़ों परिवार काम की तलाश में गुजरात और महाराष्ट्र का रुख करते हैं। आदिवासी बहुल क्षेत्र होने की वजह से शासन की दर्जनों योजनाएं ऐसी भी हैं , जिनका लाभ उठाकर क्षेत्र में अतिरिक्त विकास कार्य हो सकते हैं, लेकिन योजनाएं स्वीकृत होकर भी अधूरी ही हैं। पेयजल को लेकर ग्रामीण क्षेत्र में हाल बुरे हैं तो कृषि के लिए पानी का पर्याप्त इंतजाम विधानसभा क्षेत्र के सभी गांवों में नहीं है।
कृषि महाविद्यालय की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन बावजूद इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। आदिवासी बहुल क्षेत्र में कृषि महाविद्यालय खुलता है तो आपपास के जिलों के विद्यार्थी इसका लाभ उठा सकते हैं। शहर के तालाबों के सुंदरीकरण और गहरीकरण का कार्य भी लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी अधूरा ही है।
  राजनीतिक तौर पर झाबुआ जिला कभी कांग्रेस का अभेद्य किला माना जाता था, किंतु 2003 के बाद से इस किले में भाजपा ने सेंध लगा दी। 2003 से 2018 तक झाबुआ के वोटरों ने यहां कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा को अपना समर्थन दिया। इस विधानसभा में मुख्य रूप से झाबुआ और राणापुर विकासखंड आते हैं। झाबुआ नगर पालिका है तो राणापुर में नगर परिषद है। झाबुआ की सीमा गुजरात राज्य साथ-साथ आलीराजपुर और धार जिले को छूती है। मुख्य रूप से क्षेत्र के लोग मजदूरी करते हैं। यहां लोगों की आय का साधन खेती (वर्षाकाल के दौरान) और पशुपालन (बकरी-मुर्गी) और मजदूरी है। यह क्षेत्र शिक्षा और स्वास्थ्य की दृष्टि से अति पिछड़े इलाकों में शामिल है। सरकारी तौर पर झाबुआ में ट्रामा सेंटर और लोग मजदूरी सर्व सुविधायुक्त जिला अस्पताल बना है। विधानसभा के राणापुर ब्लॉक के अधिकांश क्षेत्र में पेयजल संकट की  े परेशानी सालों से बनी हुई है।
विकास के अपने-अपने दावे
विधानसभा क्षेत्र में विकास पर विधायक कांतिलाल भूरिया का कहना है कि भाजपा सरकार ने विधानसभा क्षेत्र में कुछ कार्य नहीं करवाया। जबकि अपनी विधायक निधि से मैने अब तक 773 लाख रुपये के विकास कार्य करवा दिए हैं। 131 डीपी गांव-गांव में लगवाई हैं तो पेयजल संकट को देखते हुए 44 टैंकर दिए हैं। 32 सीसी रोड व पुलिया के निर्माण करवाए। कोरोना काल में 11 लाख रुपये मास्क व किट, 13 लाख रुपये जननायकों की प्रतिमाओं, 10 लाख रुपये ऑक्सीजन मशीन व टेस्टिंग, पांच लाख रुपये प्राचीन तीर्थ देवझिरी के प्रवेश गेट और नौ लाख रुपये अन्य विकास कार्यों पर खर्च किए हैं। वहीं भाजपा जिलाध्यक्ष भानु भूरिया का कहना है कि 40 वर्षों के राजनीतिक जीवन में विधायक कांतिलाल भूरिया के खाते में कोई उपलब्धि नहीं है। कमल नाथ सरकार ने झूठे वादे से जनता को गुमराह करते हुए पिछला चुनाव जीत लिया। बीते तीन साल में विधायक भूरिया ने एक भी कार्य नहीं किया है। कांग्रेस केवल जनता को वोट के लिए इस्तेमाल करती है। वे केंद्र व प्रदेश में मंत्री रहे, लेकिन उनके द्वारा जिले में कोई विकास कार्य नहीं किया गया। कृषि मंत्री होने के बाद भी वे झाबुआ में कृषि महाविद्यालय शुरू नहीं करा पाए।
विकास को तरस रहा क्षेत्र
तमाम दावों के बाद भी झाबुआ विधानसभा क्षेत्र विकास का तरस रहा है। कृषि महाविद्यालय की मांग लंबे समय से की जा रही है। यदि यह मांग पूरी होती है तो आदिवासी बहुल क्षेत्र होने से यहां किसान अधिक हैं और इसका फायदा जिलेवासियों को मिल सकता है। पर्यटन केंद्र की लंबे समय से मांग की जा रही है। देवझिरी धर्मस्थल को पर्यटन स्थल बनाने की मांग उठी थी, लेकिन कुछ निर्माण होने के बाद मामला अधर में चला गया। मेडिकल कालेज को लेकर कई बार मांग उठी, लेकिन अब तक इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। विधि महाविद्यालय जो पूर्व में चल रहा था, उसे पुन: चालू करने के लिए जमीन स्वीकृत हुई, लेकिन फिलहाल कोई हलचल नहीं। क्षेत्र की कई सडक़े जर्जर हालत में हैं। अन्य भी बनाने की जरूरत है।
जातिगत समीकरण
इस विधानसभा में 85 फीसदी आबादी अजजा वर्ग से आती है। इस वर्ग में भूरिया और डामोर जाति का वर्चस्व माना जाता है। वर्तमान विधायक और सांसद भी इन्हीं जातियों से आते हैं। झाबुआ में भील के साथ-साथ पटलिया जाति के वोटर भी बड़ी संख्या  में हैं। झाबुआ-आलीराजपुर में भील- भीलाला और पटलिया समुदाय के लोगों की अधिकता है, जिसमें भिलाला जाति जोबट और आलीराजपुर विधानसभाओं को प्रभावित करती है। इसके अलावा जैन, मुस्लिम, तेली, राजपूत, चारण, लबाना, बोहरा, ब्राह्मण सहित आधा दर्ज अन्य जातियां विधानसभा में निवासरत हैं, जिनका वोट प्रतिशत 10 से 15 प्रतिशत ही है।
नल-जल योजना भी कई जगह नहीं पहुंची
झाबुआ में जलसंकट की स्थिति कई स्थानों पर रहती है। झाबुआ में नल-जल योजना की स्थिति भी खराब है। उधर कृषि के लिए भी पानी किसानों को मिल नहीं पाता है। राणापुर और बोरी क्षेत्र में परेशानी अधिक है। यहां के रहवासी वर्षों से क्षेत्र में नहरें या फिर बड़े तालाब बनाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन इस पर अब तक किसी ने ध्यान नहीं दिया।

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