यस एमएलए- खेत अब भी नर्मदा जल के प्यासे

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। जीवनदायिनी नर्मदा नदी के किनारे बसे बड़वाह विधानसभा सीट पर अभी से राजनैतिक प्रेक्षकों की नजरें लग गई हैं। इसकी वजह है कांग्रेस के टिकट पर चुने गए विधायक सचिन बिरला। वे खंडवा लोकसभा सीट के उपचुनाव के समय भाजपा में एक चुनावी सभा में शामिल होने की घोषणा कर चुके हैं। यह बात अलग है कि वे इसके बाद कभी भी भाजपा के सार्वजनिक कार्यक्रमों व विधायक दल की बैठक में खुलकर नजर नहीं आए। उधर कांग्रेस का रुख भी उनके मामले में सख्त नहीं दिखाई दिया। इसकी वजह से इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस या भाजपा में से कौन टिकट देगा इसको लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। यह ऐसी सीट है, जहां पर बिरला के पहले लगातार तीन बार भाजपा के हितेन्द्र सिंह सौलंकी चुनाव जीतते रहे हैं, लेकिन इसके बाद अब भी इस इलाके के खेतों को नर्मदा जल का इंतजार बना हुआ है। बड़वाह विधानसभा क्षेत्र तीन हिस्सों में बंटा है। बड़वाह, सनावद प्रमुख नगरीय क्षेत्र, तो बेडिय़ा ग्रामीण क्षेत्र। यहां बड़ी मिर्च मंडी भी है। फिलहाल माना जा रहा है कि इस सीट पर इस बार चुनाव बेहद रोचक रहने वाला है। इसकी वजह सचिन बिरला को ही माना जा रहा है। सीट लगातार सत्ता पक्ष के पास रहने के बाद भी लोगों को अब भी उन समस्याओं से निजात नहीं मिल सकी है, जिनकी लोगों को दो दशक पहले भी दरकार बनी हुई थी। इस सीट पर भी स्वास्थ्य सुविधा के लिए लोग परेशान बने रहते हैं। यहां प्रमुख समस्या रोजगार की भी है। इसकी वजह से यहां के युवाओं को रोजगार की तलाश में पड़ोसी राज्यों में जाने को मजबूर होना पड़ता है। इन राज्यों में महाराष्ट्र व गुजरात शामिल है। इंदौर- खंडवा राष्ट्रीय राजमार्ग क्षेत्र में जाम की समस्या से क्षेत्रवासी दिनभर परेशान होते रहते हैं। बड़वाह शहरी क्षेत्र में सीवरेज लाइन के लिए बार- बार खुदाई से भी लोग परेशान हैं। गौरतलब है आदिवासी बहुल जिले की यह सामान्य विधानसभा सीट है। बड़वाह मुख्यालय को जिला बनाए जाने का मुद्दा समय-समय पर हावी रहा है। आगामी चुनाव में इस मुद्दे पर कांग्रेस जहां मतदाताओं से वादा कर सकती है। वहीं भाजपा इस कार्यकाल में इस विषय पर पहल नहीं करने के कारण बैकफुट पर जा सकती है। अगर इस बार की दावेदारी की बात की जाए तो माना जा रहा है कि भाजपा सचिन बिरला पर दांव लगा सकती है, जबकि भाजपा की तरफ से पूर्व विधायक हितेन्द्र सिंह सोलंकी के अलावा जितेंद्र सुराना की भी दावेदारी बनी हुई है। उधर, कांग्रेस से निलेश रोकडिय़ा और नरेंद्र पटेल की भी दावेदारी है। गौरतलब है आदिवासी बहुल जिले की यह सामान्य विधानसभा सीट है। बड़वाह मुख्यालय को जिला बनाए जाने का मुद्दा समय-समय पर हावी रहा है। आगामी चुनाव में इस मुद्दे पर कांग्रेस जहां मतदाताओं से वादा कर सकती है।
इन विकास कामों का दावा
विधायक का दावा है कि विधानसभा क्षेत्र में विकास निधि से सामुदायिक भवन निर्माण, चबूतरा और पेवर ब्लाक, ट्रांसफार्मर, कचरा वाहन, नाली व सीसी रोड व मुक्तिधाम जैसे निर्माण कार्य करवाए गए हैं। क्षेत्र के 26 स्कूलों में मरम्मत के लिए चार करोड़ 26 लाख रुपये स्वीकृत। कृषि उपज मंडी प्रांगण सनावद में चार करोड़ 11 लाख रुपये के निर्माण कार्य स्वीकृत। बेडिया में बस्ती से मिर्ची मंडी को स्थानांतरित करवाया। पांच करोड़ 33 लाख रुपये की लागत से नवीन कृषि उपज मंडी का निर्माण ।
दावे प्रतिदावे
विधायक का दावा है कि मैने विधानसभा क्षेत्र के एक-एक गांव को देखा है। विकास यात्रा के माध्यम से वहां पहुंचा हूं। जनता की समस्याओं का हल करने का पूरा प्रयास किया है। ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों तक जाने वाले रास्ते और पुल-पुलिया का निर्माण करवाया है। गरीब वर्ग के लिए सहायता के लिए हमेशा से ही तत्पर रहता हूं। उधर, विपक्ष का आरोप है कि विधायक सिर्फ वादा, आश्वासन और घोषणाओं में ही तैर रहे हैं। नल-जल योजना के नाम पर पूरा क्षेत्र खुदा पड़ा है। इसका फायदा कुछ नजर नहीं आता। अस्पताल भवन बनाकर तैयार कर दिए हैं किंतु स्टाफ की स्थिति जस की तस है। समाजसेवी प्रदीप सेठिया के अनुसार नर्मदा तट पर बसे होने के बाद भी कृषि और पेयजल की दिक्कत है। क्षेत्र के काटकूट, थरवर, ओखला क्षेत्र के करीब 60 गांव सिंचाई के लिए नर्मदा का पानी मांग रहे हैं। नर्मदा जल इसी क्षेत्र से इंदौर उज्जैन भेजा जा रहा है। इसी पाइप लाइन से स्थानीय गांवों को भी पानी दिया जा सकता है।
नए उद्योग नहीं, पुराने भी बंद
बड़वाह विधानसभा क्षेत्र में उद्योग-धंधे पूरी तरह चौपट हैं। वर्षों से क्षेत्र में नए उद्योग स्थापित नहीं किए जा सके। लघु और मध्यम उद्योगों को लेकर शासन की योजनाओं का भी यहां खास असर नजर नहीं आता। पूर्व में संचालित एनकाप्स और चूना उद्योग भी खत्म हो गए हैं। इसी तरह से  इंदौर- इच्छापुर राजमार्ग का तीन वर्षों से धीमी गति से चल रहा फोरलेन निर्माण कार्य भी यहां का प्रमुख मुद्दा है। व्यावसायिक राजधानी इंदौर के मार्ग में प्रतिदिन लगने वाला जाम भी परेशानी का अहम कारण है।
डेढ़ दशक से जिले की मांग जारी
क्षेत्रवासी बड़वाह क्षेत्र, ओंकारेश्वर और मंडलेश्वर को मिलाकर एक जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। इसका औपचारिक प्रस्ताव भी राज्य शासन के पास बीते 15 वर्षों से विचाराधीन है। लेकिन अब तक न तो जनप्रतिधियों ने इस दिशा में कोई पहल की है और न ही शासन की और से कोई आश्वासन मिला है। क्षेत्रवासियों के अनुसार जिला मुख्यालय पहुंचने के लिए 70 किमी का सफर तय करना होता है। जिला बन जाने से तीनों क्षेत्र के लोगों को आसानी होगी। जातीय समीकरण: यहां गुर्जर और राजपूत समाज बाहुल्य है। इसके अलावा जैन समाज भी  किसी को भी हराने या विजय दिलवाने का वजन रखता है।

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