यस एमएलए: जातिगत समीकरण रहते हैं यहां हावी

सुरेश धाकड़

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के शिवपुरी जिले की पोहरी विधानसभा सीट की गिनती उन विस सीटों में होती है, जहां पर विकास की जगह जातिगत समीकरण ही हार-जीत तय करते हैं। यही वजह है कि इस सीट पर कभी भी विकास का मुद्दा हावी नहीं रहा है। फिलहाल इस सीट पर भाजपा से विधायक सुरेश धाकड़ हैं, जो वर्तमान में श्रीमंत गुट से शिवराज सरकार में राज्यमंत्री हैं, लेकिन इसके बाद भी यह विस क्षेत्र पिछड़ेपन का शिकार बना हुआ है। इस सीट पर प्रत्याशी का चयन हमेशा से जातिगत आधार पर राजनैतिक दल करते आए हैं। खास बात यह है कि मतदाता भी इसी के आधार पर अपना मत प्रयोग करते हैं। इसकी वजह से ही प्राकृतिक संपदा, वाटर फाल, प्राचीन गणेश व जलमंदिर के साथ वन्य जीवों से भरपूर कूनो नेशनल पार्क के मुख्य द्वार पर बसे होने के बाद भी इस क्षेत्र का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है। अगर इस सीट पर बीते चार चुनाव को देखें तो भाजपा तीन बार और कांग्रेस एक बार जीतने में सफल रही है। बीते आम विस चुनाव में भी सुरेश धाकड़ ही कांग्रेस के टिकट पर जीते थे, लेकिन बाद में वे श्रीमंत के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे।  इसके बाद  हुए  उपचुनाव में उनके द्वारा भाजपा के टिकट पर फिर से जीत दर्ज की गई थी। इस बार भी वे टिकट के प्रबल दावेदार हैं, लेकिन उनके साथ ही भाजपा से प्रहलाद भारती, सोनू बिरथरे और नरेन्द्र बिरथरे की भी दावेदारी है। सोनू बिरथरे पूर्व बीजेपी विधायक नरेंद्र बिरथरे के भतीजे हैं, वे शिवपुरी जनपद अध्यक्ष के अलावा बीजेपी किसान मोर्चे के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उन्हें केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का करीबी माना जाता है। उधर, कांग्रेस की बात की जाए तो हरिबल्लभ शुक्ला और कैलाश कुशवाहा की दावेदारी है। बीते उपचुनाव में कैलाश बतौर बसपा प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे थे और अब वे कांग्रेस में आ चुके हैं।  विकास के मामले में धाकड़ का दावा है कि सडक़ों पर सबसे ज्यादा काम हुए हैं। इसी तरह से दो सीएम राइज स्कूल पोहरी में ही स्वीकृत हुए हैं। बेटियों के लिए कालेज, 10 मिनी छात्रावास बनाए जाने का प्रयास है। कूनो के चीतों का लाभ पोहरी को मिले इस संबंध में मुख्यमंत्री से चर्चा कर योजना बनाने के साथ ही कई अन्य तरह के विकास की योजना भी बनाई जा रही हैं। सरपंच व सचिव में तालमेल के अभाव में गांवों में कुछ समस्याएं हैं।
इसके उलट कांग्रेस नेता कैलाश कुशवाहा का आरोप हैं कि राज्य मंत्री सुरेश धाकड़ ने चुनाव के समय जो वादे किए थे उसका 10 प्रतिशत भी पूरा नहीं किया। आम नागरिक सबसे ज्यादा सरकारी मशीनरी से परेशान है। विधायक के संरक्षण में भ्रष्टाचार बढ़ा है। जब किसानों को बिजली की सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब कई गांवों के ट्रांसफार्मर उठवा लिए गए। पानी की समस्या का आज तक समाधान नहीं हो पाया है।
पिछले पचास साल से पानी की समस्या देख रहे…
श्योपुर जाने वाले हाईवे पर बसे ककरा गांव के रहने वाले चंदी बताते हैं कि पिछले पचास साल से पानी की समस्या देख रहे हैं। जंगल की ओर जाकर नाले से पानी लाना पड़ता है। चुनाव के समय ही नेता आते हैं, उसके बाद कोई नहीं। अब उनकी तो जिंदगी बीत गई, बच्चों की चिंता रहती है। आसपास डैम बन जाए तो पानी मिले। क्षेत्र में लंबे समय से पानी संकट है, आदिवासियों के गांव में तो कई किमी दूर तक से पानी लाना पड़ता है। हाल ही में यहां 300 करोड़ रुपयों की सर्कुला सिंचाई परियोजना को हरी झंडी मिली है, जिससे पहले चरण में 56 गांवों की समस्या हल होने का दावा किया जा रहा है, हालाकि वर्षों से लंबित परियोजना चुनाव से ठीक पहले ही शुरू करने की याद क्यों आई, लोगों को इसका लाभ कब मिलेगा। यह सवाल सभी के मन में कौंध रहा है। एक बड़ी तस्वीर कूनो की है, भले ही कूनो नेशनल पार्क श्योपुर जिले में है परंतु ग्वालियर, आगरा, भोपाल से आने वाले सैलानियों के लिए सबसे सुलभ अहेरा गेट शिवपुरी के पोहरी की ओर से ही है। चीता परियोजना से काफी संभावना जगी हैं।
यह है जातिगत समीकरण  
जातिगत राजनीति का केंद्र माने जाने वाले पोहरी में करीब 40 हजार किरार मतदाता हैं, जबकि 15 हजार ब्राह्मण, 25 हजार कुशवाह व 15 हजार पाल समाज के अलावा 10 हजार आदिवासी, 20 हजार जाटव मतदाताओं के अलावा अन्य समाज के मतदाता हैं। यही वजह है कि जिस प्रत्याशी को दो से तीन समाजों का समर्थन मिल जाता है उसकी जीत हो जाती है।  
इस तरह के है हालात
सुदूर के गांव सडक़, बिजली-पानी जैसी मूलभूत सविधाओं को तरस रहे हैं। शिवपुरी को श्योपुर से जोडऩे वाले स्टेट हाईवे पर बसा पोहरी का छर्च गांव यहां दशकों से विकास की कछुआ रफ्तार की कहानी बताने के लिए काफी है। यहां 50 से ज्यादा गांवों को जोडऩे के लिए पुलिया बनी है। हालत यह हैं कि इसके डूब में आ जाने से वर्षा के चार माह में गांवों के लोग कैद होकर रह जाते हैं। समस्या लगभग 39 साल से है।
शिव फैटर भी असरदार
ज्योदिरादित्य और यशोधरा राजे सिंधिया के प्रभाव वाली अंचल की यह एकमात्र सीट है जहां शिवराज फैक्टर भी काम करता है। धाकड़ समाज के वोटर को साधने के लिए शिवराज के बेटे भी यहां चुनावी दौरे करते रहे हैं। इसकी वजह है यहां पर किरार समाज के मतादाताओं की संख्या अच्छी खासी होना।
 ब्राह्मण व धाकड़ ही जीतते रहे
इस सीट पर ज्यादातर समय भारतीय जनसंघ, फिर जनता पार्टी और फिर भाजपा का कब्जा रहा। हरिवल्लभ शुक्ला के लंबे समय बाद सुरेश धाकड़ ने ही 2018 में भाजपा के प्रहलाद भारती को हराकर कांग्रेस की वापसी कराई थी, पर 15 माह में ही कांग्रेस छोडक़र वे भी भाजपाई हो गए। कुल मिलाकर यहां पांच बार ब्राह्मण और छह बार धाकड़ समाज के प्रत्याशी जीते हैं। पिछले दस सालों में ब्राह्मण समाज ने बड़ी संख्या में पलायन कर लिया है, ऐसे में सीट आदिवासी व पिछड़ा वर्ग बहुल हो गई है।

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