यस एमएलए- खनिज संपदा में आगे पर विकास में पीछे

एमएलए

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। झाबुआ जिले की थांदला विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति बाहुल सीट है, जिसकी वजह से इस वर्ग के लिए यह आरक्षित है। यह सीट पारंपरिक रूप से कांग्रेस की सीट मानी जाती है। इसकी वजह है यहां पर अब तक हुए 11 चुनाव में से आठ बार कांग्रेस जीती है, जबकि एक बार ही भाजपा जीत सकी है। फिलहाल अभी इस सीट से कांग्रेस के ही वीरसिंह भूरिया विधायक हैं। वे एक बार पहले भी विधायक रह चुके हैं। इस बार यहां पर चुनावी परिणाम बदल सकता है। इसकी वजह है इस क्षेत्र के नागरिकों की विधायक को लेकर नाराजगी है। इसमें भी अहम रोल भाजपा के प्रत्याशी का रहेगा।
 यह विधानसभा क्षेत्र प्रदेश के उस इलाके में है, जहां पर खनिज संपदा प्रचुर मात्रा में, जिसकी वजह से वह इस मामले में आगे हैं, लेकिन विकास में पिछड़ा हुआ है। इसकी वजह है इस इलाके की जनप्रतिनिधियों और सरकारी स्तर पर की जाने वाली उपेक्षा। इस विधानसभा में मेघनगर और थांदला दो बड़े नगर आते हैं। यहां जिले का एक मात्र औद्योगिक क्षेत्र है मेघनगर। मेघनगर ही जिले का प्रमुख रेलवे स्टेशन है। हालांकि दिल्ली-मुबई मुख्य रेल लाइन पर होने के बावजूद इस स्टेशन पर यात्री आवागमन के लिए सीमित रेलगाडिय़ों का ही ठहराव है। औद्योगिक विकास में यहां कछुआ चाल से ही चलता है। ऐसे में इसका लाभ न तो स्थानीय बेरोजगारों को मिलता है और न ही स्थानीय व्यापार में इसका कोई असर दिखाई देता है। शिक्षा औसत दर्जे की है, तो स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए एक बड़ी आबादी पड़ोसी राज्य गुजरात के दाहोद पर निर्भर है। यहां स्थाई रोजगार के कोई साधन नहीं है। क्षेत्र में कोई बड़ा बांध नहीं है, जिससे इस विधानसभा के किसानों को खेती किसानी में लाभ मिल सके। थांदला विकासखंड के किसान टमाटर, मिर्ची की पैदावार करते हैं, किंतु प्रदेश की मंडियों में उपज का सही भाव न मिलने से इन्हें भी दिल्ली और गुजरात सहित राजस्थान में बेचने के लिए जाना पड़ता है, जिससे इसकी लागत बढ़ जाती है और किसानों का मुनाफा कम हो जाता है।
जयस भी सक्रिय
थांदला में कांग्रेस-भाजपा का सीधा मुकाबला है। कुछ पंचायतों में जयस का प्रभाव है, जो गठबंधन होने पर बड़े दल को फायदे दे सकते हैं, अन्यथा केवल वोट बिगाडऩे का काम कर करेंगे। तीसरे पक्ष के रूप में कांग्रेस-भाजपा के बागी निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में आते रहे हैं। पूर्व में भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़े कलसिंह भाबर चुनाव जीत चुके हैं।
विकास कार्य भी नहीं हुए
जनता का कहना है कि विधायक मेल मुलाकात नहीं करते हैं। विधायक ने क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कोई विकास कार्य नहीं किया है। इस क्षेत्र में खेती किसानी वाले आदिवासी लोग रहते हैं। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। इस क्षेत्र में बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। कांग्रेस यहां पर जीत का परचम लहराते आई है। 8 बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के विधायक रहे हैं, लेकिन अब भी क्षेत्र में बेरोजगारी की एक बड़ी समस्या है। किसानों का कहना है कि खेत पर समय पर बिजली नहीं मिलती। जिसको लेकर कई बार विधायक से शिकायत की है, लेकिन विधायक ना ही सुनते हैं और ना ही क्षेत्र में नजर आते हैं। चुनाव के वक्त आखिरी बार विधायक को ग्रामीण क्षेत्र में देखा गया था, लेकिन उसके बाद से अब तक विधायक क्षेत्र में नजर नहीं आए।
जातिगत समीकरण
इस विधानसभा में 80 फीसदी आबादी अजजा वर्ग से आती है। इस वर्ग में भूरिया, मेड़ा, डामोर, मचार, पारगी, बारिया, हिहौर, ईसाई समाज का बड़ा हिस्सा थांदला विधानसभा में निवास करता है। थांदला में भील जाति के वाशिन्दों के साथ-साथ पटलिया जाति के लोग भी बड़ी संख्या में है, जो चुनाव को प्रभावित करते हैं। पटलिया समुदाय को भाजपा का वोट बैंक माना जाता है, जबकि भील जाति के वोटर कांग्रेस और भाजपा दोनों को वोट करते हैं। थांदला विधानसभा में पाटीदार सहित लबाना और ओबीसी जातियां हैं। मुस्लिम, राजपूत, बोहरा, ब्राह्मण सहित आधा दर्जन जाति के वोटर विधानसभा में निवासरत हैं।
बीजेपी का आरोप
बीजेपी के पूर्व विधायक कल सिंह भांवर का आरोप है कि उन्होंने क्षेत्र में बिजली की डीपी लगाने के नाम पर लोगों से पैसा वसूल भी किया, लेकिन अब तक डीपी या नहीं लगी। इसके साथ ही क्षेत्र में सडक़ों के हाल बेहाल है।  पानी की व्यवस्था नहीं है। कांग्रेस ने वादा किया था, किसानों का कर्जा माफ करेंगे, लेकिन किसानों का कर्जा अब तक माफ नहीं हुआ। इसके साथ ही बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया था, जो अब तक पूरा नहीं हुआ।

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