
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। रगापुर विधानसभा सीट मध्य प्रदेश की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है, जहां 2018 में भाजपा ने जीत दर्ज की थी। इस बार खरगापुर विधानसभा सीट के परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होंगे, यह जनता को तय करना है। लेकिन इस क्षेत्र की जनता के सामने सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है। रोजगार के लिए लोग बड़ी संख्या में पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं। क्योंकि क्षेत्र में बड़ी औद्योगिक इकाइयां नहीं हैं। यह स्थिति तब है, जब यह भाजपा की तेजतर्रार नेत्री पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का गृह क्षेत्र है। यहां से उनके भतीजे राहुल सिंह लोधी विधायक हैं। एक बार फिर राहुल का यहां से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना तय है। उमा की वजह से ही खरगापुर में भाजपा का पलड़ा भारी रहा है।
पिछले सात चुनाव में से कांग्रेस यहां सिर्फ 2013 में एक चुनाव जीती है। कांग्रेस एक और जीत के लिए इस बार सक्रिय है। पार्टी के कई दावेदार टिकट के लिए मशक्कत कर रहे हैं। हालांकि चूंकि सामने उमा के भतीजे होंगे, इस कारण कांग्रेस की जीत आसान नहीं है। पिछले चुनाव में भी उमा ने क्षेत्र में डेरा डालकर अपने भतीजे की जीत में भूमिका निभाई थी। टीकमगढ़ जिले का खरगापुर पिछड़ा क्षेत्र है। इसलिए यहां का चुनाव पारंपरिक मुद्दों स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और रोजगार के लिए पलायन आदि पर ही होता है। क्षेत्र में स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराई रहती है। शिक्षा का कोई स्तर नहीं है और रोजगार की कमी के कारण मजदूर पलायन करते हैं। एक बांध से किसानों को सिंचाई सुविधा मिली है। भाजपा इसको भुनाने का प्रयास करेगी।
सियासी समीकरण
यह निर्वाचन क्षेत्र 1967 में विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया और 1967 से 2008 तक यह अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित था। टीकमगढ़ की खरगापुर विधानसभा सीट पर 2 लाख 70 हजार से ज्यादा मतदाता है। यह सीट फिलहाल भाजपा के कब्जे में है। यहां विधायक हैं राहुल लोधी। 2018 में भारतीय जनता पार्टी से राहुल लोधी ने कांग्रेस के चंदा सिंह गौर को 12 वोटों के मार्जिन से हराया था। वहीं 2013 के विधानसभा चुनाव में चंदा सिंह गौर ने राहुल सिंह को 5677 वोटों से हराया था। इस सीट पर वैसे तो भाजपा का दबदबा रहा है। यहां 1990 में बीजेपी ने पहली जीत हासिल की थी। उस वक्त यहां आनंदी लाल चुनाव जीतकर आए थे। इसके बाद बीजेपी लगातार यहां 1993, 1998 और 2003 में चुनाव जीतने में सफल हुई। इसके बाद 2008 में इस सीट पर भारतीय जनशक्ति पार्टी के अजय यादव ने बीएसपी के प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह गौर को चुनाव हराया। लेकिन 2013 में यहां कांग्रेस जीतकर आई।
समस्याओं की भरमार
बुंदेलखंड का क्षेत्र होने के कारण खरगापुर में भी समस्याओं की भरमार है। यही वजह है कि इस इलाके में आज भी बेरोजगारी, कुपोषण, अशिक्षा, पलायन जैसी समस्याएं विकराल रूप में खड़ी हुई हैं। यह बात अलग है कि हर चुनाव में राजनैतिक दलों द्वारा इन मामलों को जोर-शोर से उठाया जाता है, लेकिन मतदान आते-आते यह मुद्दे पीछे छूट जाते हैं और चुनाव जाति आधारित बन जाता है। यही वजह है कि इस बार एंटी इन्कंवेंसी और जातिगत समीकरण भाजपा के खिलाफ माने जा रहे हैं। इस अंचल की तासीर ऐसी है कि जातियों में बंटे वोटर अपने-अपने जाति-समाज के कैंडिडेट के साथ खड़े हो जाते हैं। अगर पुराने चुनाव परिणामों पर नज़र डालें तो इस अंचल में सपा व बसपा का खाता खुल चुका है। अगर बीते आम चुनाव की बात करें तो, इस अंचल के तहत आने वाली 26 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 17, कांग्रेस ने 7 सपा और बसपा ने एक-एक सीट जीती थी।
जातिगत समीकरण
अगर इस जातीय समीकरण को देख जाए तो एससी/एसटी वोटर्स सबसे ज्यादा हैं। खरगापुर विधानसभा सीट पर सबसे अधिक यादव मतदाता हैं। उसके बाद लोधी, अहिरवार, ब्राह्मण, कुशवाहा, रैकवार और मुस्लिम मतदाता हैं। प्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े इलाकों में शुमार बुंदेलखंड अंचल में इस बार सपा व बसपा अभी से चुनावी तैयारियों में जुट गई है। यह वो इलाका है, जो पड़ोसी राज्य उप्र से सटा हुआ है, जिसकी वजह से इस अंचल में उप्र की दोनों पार्टियों सपा व बसपा का भी व्यापक प्रभाव रहता है। इस अंचल में इस बार सपा व बसपा पहले की अपेक्षा अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। यह बात अलग है कि उसके प्रत्याशी जीते भले नहीं, लेकिन वे भाजपा-कांग्रेस के लिए मुश्किलें जरुर बनेंगे। प्रदेश में भाजपा की लगातार सरकार रहने के बाद भी इस अंचल का वैसा विकास नहीं हो पाया है, जैसा की होना चाहिए था। यही नहीं केन्द्र से मिले विशेष पैकेज का लाभ भी जनता को नहीं मिला है, बल्कि अफसरों की जरूर उससे पौ बारह हुई है।
कांग्रेस और भाजपा की तैयारी
कांग्रेस का सीएम चेहरा कमलनाथ और संगठन का काम देख रहे दिग्विजय सिंह बुंदेलखंड के पिछड़ेपन को ही मुद्दा बनाकर अपने चुनाव अभियान की रणनीति तैयार कर रहे हैं वहीं, भाजपा अपनी विकास योजनाओं के नाम पर वोट मांगने की तैयारी में है। बुंदेलखंड पैकेज, बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे और 45 हजार करोड़ रुपए की केन-बेतवा लिंक परियोजना को मंजूरी देकर मोदी सरकार ने भी बुंदेलखंड में पार्टी की मजबूती के लिए बड़ा दांव खेला है। यह बात अलग है कि इन योजनाओं का लाभ अब तक आमजन को नहीं मिला है, जिसकी वजह से इन योजनाओं का फायदा भाजपा को मिलना मुश्किल माना जा रहा है। भाजपा के बारे में कहा जाता है कि वह 365 दिन चुनावी मोड में रहती है,लेकिन इस बार कांग्रेस ने भी बुंदेलखंड में चुनाव से काफी वक्त पहले ही अपना एग्रेसिव प्रचार अभियान शुरू कर दिया है, तो वहीं पूर्व मंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह भी लगातार बुंदेलखंड के दौरे कर रहे हैं।