उपचुनाव जीतो, 2023 की राह होगी आसान…

उपचुनाव

सत्ता के सेमीफाइनल के लिए भाजपा की रणनीति

चुनाव छोटा हो या बड़ा भाजपा हमेशा पूरी रणनीति के साथ उतरती है। प्रदेश में एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को भाजपा ने सत्ता का सेमीफाइनल मानकर रणनीति बनाई है। पार्टी के रणनीतिकारों ने कहा है कि चारों उपचुनाव जीतने से मिशन 2023 और 2024 की राह आसान हो जाएगी। इसलिए सत्ता-संगठन में चुनावी क्षेत्रों में अपने सारे मोहरे फिट कर दिए हैं।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
मप्र में खंडवा लोकसभा सीट के साथ ही रैगांव, पृथ्वीपुर और जोबट विधानसभा की सीटों पर उपचुनाव होना है। पृथ्वीपुर और जोबट कांग्रेस और बाकी दो सीटों पर भाजपा का कब्जा था। भाजपा की रणनीति है की चारों सीटों को जीत कर 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव का आधार मजबूत किया जाए। इसलिए भाजपा ने चुनावी घोषणा से पहले ही अपने नेताओं को मैदान में उतार दिया है। उधर, कांग्रेस भी दमोह उपचुनाव से उत्साहित है। लेकिन फिलहाल चुनावी तैयारी में काफी पीछे है। दमोह उपचुनाव में मिली हार के बाद भाजपा काफी सजग और सतर्क है। इस बार पार्टी किसी गलतफहमी में नहीं दिख रही है। इसलिए चुनावी घोषणा से पहले ही उपचुनाव के लिए बिसात बिछाना शुरू कर दी है। अभी चुनावों का ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन कोरोना का कहर कम होने से चुनाव होने की उम्मीद बढ़ गई है। इसलिए इन सीटों पर टिकट के दावेदारों की दौड़ भी शुरू हो चुकी है। लेकिन, अभी टिकट के फैसले के पहले सत्ता-संगठन इन इलाकों का पूरा मिजाज भांपना चाहते हैं। इसलिए स्थानीय व प्रभारी मंत्रियों से लेकर संगठन के पदाधिकारियों तक को इन सीटों पर दौरों पर भेजना शुरू कर दिया गया है। सत्ता-संगठन इन सीटों पर टिकट के फैसले से पहले ही पूरी स्थिति का आंकलन करना चाहते हैं। इस कारण हर बूथ तक माइक्रो स्टडी की शुरूआत कर दी गई है।

दिग्गजों के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी
खंडवा लोकसभा और रैगांव, पृथ्वीपुर तथा जोबट विधानसभा उपचुनाव को सत्ता का सेमीफाइनल मानकर चल रही भाजपा ने जो रणनीति बनाई है उसके तहत चुनावी मैदान में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, कैलाश विजयवर्गीय और प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के ऊपर प्रत्याशियों को जीताने की जिम्मेदारी होगी। दरअसल, मप्र भाजपा में ये पांच नेता कुशल रणनीतिकार के साथ ही लोकप्रियता के शिखर पर भी हैं। इसलिए पार्टी चुनाव में इनकी लोकप्रियता को भुनाएगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो उपचुनाव जीतने में माहिर खिलाड़ी हैं। पार्टी में शिवराज ऐसा चेहरा हैं जिसे प्रदेश की जनता अपना मानती है। इसलिए पार्टी हर चुनावी मोर्चे पर उन्हें आगे रखती है। वहीं वीडी शर्मा मप्र भाजपा के लिए शुभंकर बन गए हैं। उनके पास युवाओं की बड़ी टीम है। भाजपा ने उन्हें कई मोर्चों पर परख कर बड़ी जिम्मेदारी दी है। इसलिए पार्टी को उनसे बड़ी उम्मीद है। तोमर और सिंधिया भाजपा में वह चेहरा हैं जो किसी भी मोर्चे पर काम कर सकते हैं। जबकि कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा मप्र के अलावा कई राज्यों में अपनी चुनावी रणनीति का लोहा मनवा चुके हैं। इसलिए उपचुनाव में इन पर बड़ी जिम्मेदारी होगी। उपचुनाव और आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए पार्टी सिंधिया को एक बार फिर सक्रिय करने जा रही है। पिछले माह ज्योतिरादित्य सिंधिया मालवा-निमाड़ का दौरा छोड़ दिल्ली चले गए थे, जहां उन्हें केंद्रीय मंत्री की शपथ लेना थी। केंद्रीय मंत्री बनने के बाद सिंधिया एक बार फिर से मालवा और निमाड़ के चार शहरों के दौरे पर हैं। केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक भी जनता के बीच में पहुंच रहे हैं। दरअसल, पार्टी को पूरा फोकस उपचुनावों के साथ ही विधानसभा और लोकसभा चुनाव पर है। भाजपा के रणनीतिकारों ने अभी से अपने नेताओं को सक्रिय कर दिया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि पार्टी के मंत्री, सांसद, विधायक अब अपना अधिकतर समय जनता के बीच गुजारंगे। ताकि जनसमस्या का त्वरित समाधान हो सके।

दांव पर शिव-नाथ की साख
मप्र में एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। दावेदारों ने भी सक्रियता बढ़ा दी है। वहीं दोनों पार्टियों में मंथन तेज हो गया है। लेकिन एक बात तो यह है कि उपचुनावों में प्रत्याशी कोई भी क्यों न हो साख तो शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ की ही दांव पर होगी। भाजपा जहां शिवराज सरकार, भरोसा बरकरार के भरोसे है, तो कांग्रेस कमलनाथ सरकार के 15 महीने कार्यकाल के ओबीसी वर्ग को आरक्षण और किसानों की कर्ज माफी पर दांव लगाने को तैयार है। हालांकि लोकसभा की एक और विधानसभा की तीन सीटों पर जीत-हार से सत्ता की सेहत पर फर्क नहीं पड़ेगा। दरअसल, पिछले साल शिवराज सिंह चौहान ने जब चौथी बार सत्ता की कमान संभाली, तब कोरोना मप्र में दस्तक दे चुका था। चौहान इसकी पहली लहर से प्रदेश को उबारने में पूरी तरह कामयाब हो पाते, इससे पहले ही दूसरी लहर ने भी अपना असर दिखाया। ऐसे में उनका अब तक का करीब 16 महीने का कार्यकाल कोरोना की चुनौतियों से निपटने में ही निकल गया। समर्थन मूल्य पर खरीदी, कमजोर तबके को मदद, जरूरतमंद विभिन्न वर्गों के लोगों को आर्थिक सहायता सहित कई उपलब्धियां कोरोना से इतर रहीं हैं। उपचुनाव में भाजपा शिवराज सरकार की उपलब्धियां गिनाएगी। कोरोना संक्रमितों के लिए इलाज, दवा, इंजेक्शन, ऑक्सीजन और बेड की व्यवस्था के अलावा शिवराज सरकार ने वैक्सीनेशन में रिकॉर्ड स्थापित किया है। ये उपलब्धियां चूंकि चौहान के खाते में जाती हैं और वह भाजपा का जिताऊ चेहरा रहे हैं तो पार्टी कोई जोखिम लेने के बजाय चौहान को आगे कर रही है। इसका एक और लाभ होगा कि प्रदेश में सत्ता का चेहरा बदलने की अफवाहों का खुद ही खंडन हो जाएगा और बदलाव की अटकलें खारिज हो जाएंगी। भाजपा के प्रदेश मंत्री रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि केंद्र की मोदी सरकार प्रदेश की शिवराज सरकार और संगठन की शक्ति के आधार पर भाजपा ये उपचुनाव लड़ेगी। बहुत स्वाभाविक है कि प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि जो जनकल्याणकारी कार्यक्रमों, योजनाओं और सेवा व संवेदना से स्थापित हुई है, वह हमारा एक मजबूत पक्ष है। वहीं दूसरी तरफ, कांग्रेस ने उपचुनाव के लिए कमलनाथ के 15 महीने के शासन को उपलब्धि भरा बताकर ओबीसी वर्ग को आरक्षण और किसान कर्ज माफी का मुद्दा उठाने की तैयारी की है। कांग्रेस का दावा है कि कमलनाथ सरकार ने ही ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण की कवायद शुरू की थी। कांग्रेस का ये भी दावा है कि यदि कमल नाथ की सरकार होती तो अब तक प्रदेश के सभी पात्र किसानों के ऋण माफ हो चुके होते। कांग्रेसी बखूबी जानती है कि इन उपचुनाव के परिणाम सत्ता के समीकरण प्रभावित नहीं कर सकते लेकिन इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि यदि भाजपा को इन चुनावों में नुकसान होता है तो 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए जनता के बीच भाजपा के खिलाफ संदेश जाएगा और यही कांग्रेस की रणनीति का अहम हिस्सा है। उपचुनाव के परिणाम का असर स्थानीय निकायों के चुनाव पर भी पड़ेगा। कमलनाथ 2018 की तरह एक बार फिर ऐसा माहौल बनाने की कोशिश में है जिसमें सत्ता विरोधी लहर का लाभ उन्हें मिल सके।

चारों सीटों पर सियासी समीकरण
प्रदेश की 4 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में टिकट के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों में दावेदार कतार में लग चुके हैं। चार सीटों के सियासी समीकरण पर नजर डालें तो खंडवा लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा था। यहां से 2019 के चुनाव में नंदकुमार सिंह चौहान चुनाव जीते थे और अब भाजपा की कोशिश है कि उपचुनाव में नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन को टिकट दिया जाए। हालांकि यहां पर भाजपा में अर्चना चिटनीस और कृष्ण मुरारी मोघे भी अपनी दावेदारी जता रहे हैं। भाजपा यहां कोई रिस्क लेना नहीं चाहती है। इसलिए संभावनाओं पर मंथन चल रहा है। वही रैगांव विधानसभा सीट पर 2018 के चुनाव में जुगल किशोर बागड़ी ने चुनाव जीता था और भाजपा यहां पर बागड़ी के बड़े बेटे पुष्पराज को टिकट देने की तैयारी में है। टिकटों को लेकर भाजपा में अभी मंथन का दौर जारी है। अब कांग्रेस के कब्जे वाली 2 विधानसभा सीटों की बात करें तो 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने पृथ्वीपुर और जोबट विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया था। पृथ्वीपुर सीट पर बृजेंद्र सिंह राठौर ने जीत हासिल की थी। उनके निधन के बाद कांग्रेस पार्टी बृजेंद्र सिंह राठौर के बेटे नितेंद्र सिंह राठौड़ को उम्मीदवार बनाने की तैयारी में है। इसके अलावा जोबट विधानसभा सीट पर कलावती भूरिया के रिश्तेदार और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत भूरिया को टिकट देने की तैयारी में हैं। पूर्व मंत्री लखन घनघोरिया ने कहा पार्टी सभी पहलुओं पर विचार कर रही है। हो सकता है, जिन सीटों पर पार्टी का कब्जा था उसी परिवार के सदस्य को उपचुनाव में पार्टी अपना उम्मीदवार बनाए। फिलहाल सत्ता-संगठन के लिए सबसे अहम खंडवा लोकसभा सीट है। यह सीट पूर्व सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के कोरोना से निधन के चलते खाली हुई है। इस सीट पर नंदकुमार के बेटे हर्ष की दावेदारी है। लेकिन, साथ ही क्षेत्रीय पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस और इंदौर के नेता कृष्ण मुरारी मोघे के नाम भी सामने आए हैं। कांग्रेस से यहां पर पूर्व सांसद अरुण यादव का नाम चल रहा है। भाजपा इस क्षेत्र में मंत्रियों व अन्य नेताओं को सक्रिय कर चुकी है। मंत्री कमल पटेल, ऊषा ठाकुर सहित अन्य यहां दौरे कर चुके हैं। यहां टिकट का फैसला सीएम शिवराज सिंह चौहान से सलाह करके उनकी रजामंदी के हिसाब से ही होगा। उपचुनाव वाली तीनों विधानसभा सीटों पर टिकट के लिए रस्साकशी के हालात हैं।

खंडवा नाक का सवाल
खंडवा लोकसभा सीट भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए नाक का सवाल बनी हुई है। भाजपा जहां अपना कब्जा बरकरार रखना चाहती है, वहीं कांग्रेस इसे कब्जाने की कोशिश कर रही हैै। खंडवा उपचुनाव को लेकर भाजपा में अंदर ही अंदर रस्साकशी शुरू हो गई है। भाजपा यहां से उम्मीदवार घोषित करने में जल्दबाजी नहीं करना चाहती है, फिर भी यहां से दमदार उम्मीदवार के नाम पर विचार कर रही है, लेकिन सहमति नहीं बन पा रही है। टिकट के लिए मुख्य मुकाबला मोघे, अर्चना और हर्ष के बीच ही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्रसिंह तोमर और संगठन का एक धड़ा नंदू भैया के पुत्र हर्ष चौहान को यहां से उम्मीदवार बनाने के पक्ष में हैं, ताकि सहानुभूति के वोटों के साथ-साथ भाजपा के वोट भुनाए जा सके, लेकिन जिस तरह से कृष्णमुरारी मोघे और अर्चना चिटनीस हर्ष के पीछे लगे हैं, उससे हर्ष की राह भी आसान नहीं है। हर्ष चौहान के खंडवा विधानसभा में बंधे रहने के कारण वे दूसरी विधानसभा में कितने वोट ला पाते हैं, उसमें संशय हैं। मोघे जैसे कद्दावर नेता संघ और संगठन के भरोसे यहां से दावेदारी कर रहे हैं, वहीं कोरोना काल में उन्होंने सक्रिय रहकर बता दिया था कि वे भी खंडवा उपचुनाव में एक सशक्त दावेदार हैं। मोघे पहले खरगोन से सांसद रह चुके हैं और उनका खरगोन, भीकनगांव और बड़वाह में अच्छा होल्ड है। खंडवा तथा बुरहानपुर के कुछ नेता भी उनके साथ हैं, लेकिन वे खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं। अर्चना चिटनीस की बुरहानपुर, नेपानगर में अच्छी पैठ हैं और वे नंदू भैया के दिवंगत होने के बाद सभी विधानसभा क्षेत्रों में लगातार सक्रिय रही हैं और प्रमुख दावेदारों में शामिल हैं। चिटनीस और मोघे दिल्ली में अपने संबंधों के आधार पर भी संगठन पर दबाव बना रहे हैं। हालांकि पार्टी इस चुनाव में अंतिम समय में उम्मीदवार का नाम घोषित कर सकती है। कांग्रेस में उपचुनाव से पहले घमासान तेज होता हुआ नजर आ रहा है। खंडवा लोकसभा सीट को लेकर निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा ने अपने समर्थकों के साथ पीसीसी चीफ कमलनाथ से मुलाकात की है। शेरा ने खंडवा लोकसभा सीट पर अपनी पत्नी के लिए कांग्रेस से टिकट की मांग रखी है। शेरा ने कमलनाथ के सामने दावा किया है कि खंडवा सीट पर यदि कोई सर्वे होता है तो उससे उनकी पत्नी की जीत की रिपोर्ट आएगी। ऐसे में पार्टी को उनकी पत्नी को टिकट देना चाहिए। खंडवा सीट पर कांग्रेस के सीनियर लीडर अरुण यादव पहले ही अपने को प्रबल दावेदार बता चुके हैं। ऐसे में खंडवा लोकसभा सीट पर सुरेंद्र सिंह शेरा के अपनी पत्नी का नाम आगे बढ़ाने पर पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। कांग्रेस खंडवा लोकसभा का उम्मीदवार जल्दी घोषित करने की तैयारी कर रही है। इसके लिए दिल्ली में बैठकों का दौर शुरू हो चुका है। पिछले दिनों भोपाल में भी संगठन प्रभारी मुकुल वासनिक के साथ खंडवा लोकसभा और तीन विधानसभा के प्रभारियों तथा प्रमुख नेताओं की बैठक हो चुकी हैं और माना जा रहा है कि इसी माह कांग्रेस अपने प्रत्याशी घोषित कर सकती हैं। यहां से अरुण यादव अपने आपको प्रबल दावेदार के रूप में मानकर चल रहे हैं, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ चाह रहे हैं कि यहां सर्वे के आधार पर ही टिकट दिया जाए, क्योंकि दमोह उपचुनाव में कांग्रेस ने यही फंडा अपनाया था। सर्वे की रिपोर्ट भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पास पहुंच गई है और पिछले दिनों भोपाल में हुई बैठक में प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक की मौजूदगी में नामों पर विचार भी किया गया है, लेकिन नामों को जाहिर नहीं किया गया है।

उपचुनाव में इमोशनल कार्ड पर दांव!
प्रदेश की 4 सीटों पर होने वाले उपचुनाव को जीतने के लिए पार्टियां कई रणनीति पर काम कर रही हैं। सूत्रों का कहना है कि दोनों पार्टियां सहानुभूति की लहर पर सवार होने की तैयारी भी कर रही हैं। यानी दिवंगत नेताओं के परिजनों पर दांव लगाने पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। इन चारों सीटों पर कोरोना संक्रमण के कारण नेताओं की मौत हुई। अब दोनों ही सियासी दल सहानुभूति के वोट बटोरने के प्लान में जुटे हैं। दोनों तरफ से प्रबल दावेदारों के नाम सामने आए हैं। उससे साफ है कि उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही सहानुभूति के जरिए चुनाव जीतने की कोशिश में हैं। खंडवा लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा था। यहां से 2019 के चुनाव में नंदकुमार सिंह चौहान चुनाव जीते थे और अब भाजपा की कोशिश है कि उपचुनाव में नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन को टिकट दिया जाए। वही रैगांव विधानसभा सीट पर 2018 के चुनाव में जुगल किशोर बागड़ी ने चुनाव जीता था और भाजपा यहां पर बागड़ी के बड़े बेटे पुष्पराज को टिकट देने की तैयारी में है। टिकटों को लेकर भाजपा में अभी मंथन का दौर जारी है। मंत्री गोपाल भार्गव ने कहा हर बार सहानुभूति के सहारे चुनाव लडऩा सफल साबित नहीं होता है। आगर सीट इसका उदाहरण है। लेकिन फिर भी यह देखा जाता है कि चुनाव में सहानुभूति अपना असर दिखाती है। पार्टी सभी पहलुओं पर मंथन करने के बाद ही टिकट फाइनल करेगी। अब कांग्रेस के कब्जे वाली 2 विधानसभा सीटों की बात करें तो 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने पृथ्वीपुर और जोबट विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया था। पृथ्वीपुर सीट पर बृजेंद्र सिंह राठौर ने जीत हासिल की थी। उनके निधन के बाद कांग्रेस पार्टी बृजेंद्र सिंह राठौर के बेटे नितेंद्र सिंह राठौड़ को उम्मीदवार बनाने की तैयारी में है। इसके अलावा जोबट विधानसभा सीट पर कलावती भूरिया के रिश्तेदार और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत भूरिया को टिकट देने की तैयारी में हैं। पूर्व मंत्री लखन घनघोरिया का कहना है कि पार्टी सभी पहलुओं पर विचार कर रही है। हो सकता है, जिन सीटों पर पार्टी का कब्जा था उसी परिवार के सदस्य को उपचुनाव में पार्टी अपना उम्मीदवार बनाए। भले ही उप चुनाव की तारीखों का ऐलान ना हुआ हो लेकिन यह तय है उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों का भरोसा सहानुभूति से मिलने वाले वोटों पर होगा।

कांग्रेस को जिताऊ उम्मीदवार की खोज
उपचुनाव में जिताऊ उम्मीदवार तलाशने कांग्रेस सर्वे करा रही है। सर्वे में कमलनाथ का फोकस जातिगत समीकरणों पर है। देश में भले ही जाति आधारित चुनाव नहीं होते, पर जीत-हार में बड़ा आधार माना जाता है। चुनावी क्षेत्र में जाति-वर्ग को देखते हुए ही उम्मीदवार तय करते हैं। कांग्रेस को लगता है कि कोरोना काल और महंगाई के मुद्दे पर जनता सरकार के खिलाफ है। लोगों की नाराजगी को वोट में बदलने प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ उपचुनावों का चक्रव्यूह तैयार कर रहे हैं। इसमें हर सीट पर कम से कम दस विधायकों की टीम तैनात की जाएगी। इन चुनावों की कमान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के हाथों में ही रहेगी। कमलनाथ के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा जाएगा और वे ही बड़े स्टार प्रचारक होंगे। हालांकि अन्य वरिष्ठ नेताओं को भी इन उपचुनावों में जिम्मेदारी दी जाएगी। हर सीट पर चार पूर्व मंत्रियों की भी ड्यूटी लगाई जाएगी। उपचुनाव के नतीजे लिटमस टेस्ट होंगे। नतीजे ही बताएंगे कि कांग्रेस को 2023 के विधानसभा चुनावों की तैयारियों में कितनी मेहनत की जरूरत है। कांग्रेस चारों सीटों का अलग घोषणा जिले की तासीर और जरूरतों के आधार पर तैयार कर रही है। टीम सर्वे कर रही है। कमलमाथ सरकार के 15 माह के कामकाज को भी प्रमुखता से जनता के सामने रखा जाएगा। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस को लगता है कि कोरोना काल और महंगाई के मुद्दे पर जनता सरकार के खिलाफ है। खंडवा लोकसभा क्षेत्र से उपचुनाव लडऩे के प्रबल दावेदार पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने दिल्ली में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से मुलाकात की। उनकी इस मुलाकात को काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि यादव पिछले दिनों भोपाल में आयोजित उपचुनाव की तैयारी बैठक में शामिल नहीं हुए थे। यादव ने राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह और विवेक तन्खा से भी मुलाकात की। माना जा रहा है की अरुण यादव ने खंडवा उपचुनाव में अपनी दावेदारी जताई है। सूत्रों के मुताबिक नाथ और यादव के बीच करीब आधा घंटे की मुलाकात हुई। इस दौरान खंडवा लोकसभा सीट के उपचुनाव से जुड़े सभी पहलूओं पर विचार किया गया। साथ ही निर्दलीय सुरेंद्र सिंह शेरा को लेकर भी स्थिति साफ की गई। यादव ने साफ कर दिया है कि उपचुनाव को लेकर पार्टी जो भी निर्णय लेगी, वो उसमें तैयार हैं। यादव ने प्रदेश के पूर्व प्रभारी महासचिव मोहन प्रकाश, राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह और विवेक तन्खा से मुलाकात की। प्रदेश में होने वाले उपचुनाव की तैयारियों को लेकर पिछले दिनों भोपाल में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के आवास पर बैठक हुई थी। इसके एक दिन पहले बुरहानपुर से निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा ने कमल नाथ से मिलकर पत्नी के लिए खंडवा लोकसभा उपचुनाव की टिकट देने की मांग की थी। उन्होंने दावा किया था कि कोई भी सर्वे करा लें, कार्यकर्ता उनके पक्ष में हैं और इस चुनाव का असर वर्ष 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में नजर आएगा। माना जा रहा है कि सुरेंद्र सिंह को तवज्जो मिलने के कारण ही यादव ने उपचुनाव की तैयारी संबंधी बैठक से दूरी बना ली थी। जबकि, इसमें प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक सहित अन्य पदाधिकारी मौजूद थे। उनके छोटे भाई और पूर्व कृषि मंत्री सचिन यादव भी बैठक में शामिल नहीं हुए थे, जबकि वे चुनाव क्षेत्र में काफी समय से सक्रिय है। इसे उनकी नाराजगी से जोडक़र देखा जा रहा है। बताया जा रहा है कि कुछ भाजपा नेताओं ने भी इस नाराजगी में संभावनाएं तलाशने यादव से संपर्क भी साधा था। हालांकि, उन्होंने इसका यह कहते हुए खंडन किया था कि उनके नाम के साथ सिंधिया नहीं जुड़ा है।

ओबीसी आरक्षण बनेगा चुनाव मुद्दा
जिन चार क्षेत्रों में उपचुनाव होना है वहां ओबीसी मतदाता अधिक हैं। इसलिए पार्टियों का फोकस ओबीसी वोट बैंक पर है। ऐसे में ओबीसी आरक्षण चुनावी मुद्दा बनेगा। पिछड़ा वर्ग का आरक्षण चौदह से बढ़ाकर सत्ताइस प्रतिशत किए जाने का असर सडक़ों पर दिखाई देने लगा है। यद्यपि पिछड़ा वर्ग महासभा का पहला प्रदर्शन बहुत उत्साहजनक दिखाई नहीं दिया है, लेकिन राजनीतिक पटल पर हलचल जरूर दिखाई दे रही है। कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण बढ़ाया था। लेकिन, हाईकोर्ट ने क्रियान्वयन पर रोक लगाई हुई है। कमलनाथ की कोशिश पिछड़ों के बीच शिवराज सिंह चौहान से आगे निकलने की है। जबकि वर्ष 2003 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मप्र में भाजपा की पूरी राजनीति अन्य पिछड़ा वर्ग के चेहरे पर चल रही है। उमा भारती और बाबूलाल गौर के बाद मुख्यमंत्री बनाए गए शिवराज सिंह चौहान अन्य पिछड़ा वर्ग के ही हैं। शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने मप्र हाईकोर्ट में आंकड़े प्रस्तुत कर यह दावा किया गया है कि राज्य में पिछड़ा वर्ग की कुल आबादी पचास प्रतिशत से अधिक है। सरकार ने यह दावा वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर किया है। वर्ष 1994 से राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग को सरकारी नौकरियों में चौदह प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। जुलाई 2019 में कमलनाथ सरकार ने कानून में संशोधन कर अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिए जाने की सीमा चौदह से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दी थी। कमलनाथ ने यह फैसला लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को मिली करारी हार के बाद लिया था। अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण बढ़ाकर कमलनाथ ने अपनी अल्पमत सरकार को बचाने के लिए बड़ा दांव खेला था। यद्यपि उनकी सरकार नहीं बच पाई। पिछले साल मार्च में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में हुए दलबदल में उनकी सरकार गिर गई। दल बदलने वाला सदस्यों में पिछड़ा वर्ग के अलावा अनुसूचित जाति वर्ग के विधायक भी थे। शिवराज सिंह चौहान की सबसे बड़ी ताकत अन्य पिछड़ा वर्ग का वोटर ही है। सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा 27 प्रतिशत किए जाने का मामला कोर्ट में अटक जाने से इस वर्ग में खासी बेचैनी है। पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष कांग्रेस नेता जेपी धनोपिया कहते हैं कि भाजपा की नीति चेहरा दिखाकर वोट लेने की है। वे कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान की मंशा ज्यादा से ज्यादा लोगों को आरक्षण का लाभ देने की नहीं है। राज्य में आने वाले कुछ माह में एक लोकसभा और तीन विधानसभा के उपचुनाव होना है। कांग्रेस की कोशिश आरक्षण का प्रतिशत न बढ़ पाने का ठीकरा शिवराज सिंह चौहान के सिर डालकर उपचुनाव जीतने की है। राज्य के नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री भूपेन्द्र सिंह कहते हैं कि भाजपा और उसकी सरकार पिछड़ा वर्ग का आरक्षण बढ़ाए जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रही है। सरकार सुप्रीम कोर्ट में किस आधार पर याचिका दायर करेगी, यह अभी स्पष्ट नहीं है। राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का प्रतिशत चौदह से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किए जाने से कुल आरक्षण पचास प्रतिशत की सीमा को पार गया। राज्य में अनुसूचित जनजाति को बीस एवं अनुसूचित जाति को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। इस कारण ही वर्ष 1994 में दिग्विजय सिंह सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग को अधिकतम उपलब्ध चौदह प्रतिशत आरक्षण दिया था। राज्य में दस प्रतिशत आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को दिए जाने का प्रावधान भी कमलनाथ सरकार ने किया था। इस तरह राज्य में कुल आरक्षण 73 प्रतिशत हो गया। पिछड़ा वर्ग की लड़ाई में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग हाशिए पर चला गया है।

Related Articles