
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश की राजनीति में अब तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। अब तक जातिगत राजनीति से दूर मध्यप्रदेश पड़ौसी राज्य उप्र की राह पर चलता दिख रहा है। यही वजह है कि अब जिस तरह के आसार बन रहे है उससे तय हो गया है कि आने वाले समय में मप्र में विकास की जगह चुनाव जातिगत आधार पर लड़े जाएंगे। यही वजह है कि प्रदेश के दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस व भाजपा का पूरा जोर पिछड़ावर्ग और आदिवासी समाज पर बना हुआ है। अब इन दोनों दलों में इन वर्ग के हितैषी बनने को लेकर जंग भी छिड़ी हुई है। हालत यह है कि अब सरकार व विपक्ष सभी जनहितैषी मुद्दोंं को भुलकार पिछड़ा वर्ग को किस तरह से 27 फीसद आरक्षण का लाभ दिलाकर उन्हें अपनी तरफ कर सकें इसी पर पूरा फोकस किए हुए हैं। इन दलों को नेताओं को लग रहा है कि अगर वे अपने मंसूबों में कामयाब हो गए तो फिर जल्द होने वाले प्रदेश में चार उपचुनाव के अलावा अगले विधानसभा चुनाव में उनकी जीत तय हो जाएगी। इसकी वजह भी है इन दोनों वर्गों की आबादी प्रदेश में कुल आबादी का 70 फीसदी है। इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग की करीब 50 और आदिवासी वर्ग की 20 फीसदी है। फिलहाल प्रदेश में आदिवासी समाज के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। यह वर्ग प्रदेश की करीब 99 सीटों को प्रभावित करता है।
यह वो वर्ग है जो भाजपा व कांग्रेस दोनों ही दलों के साथ बंटता रहता है। हालांकि यह समाज भाजपा की तुलना में कांग्रेस के साथ अधिक नजर आता है। इसी तरह से पिछड़ा वर्ग प्रदेश की लगभग सभी सीटों पर प्रभावी है। इसकी वजह से अब कांग्रेस व भाजपा दोनों पिछड़ा वर्ग को लेकर पूरी तरह से सक्रिय बने हुए हैं। इस बीच उप्र की ही तरह मप्र भाजपा ने ओबीसी और आदिवासी मुद्दे पर भाजपा में सत्ता और संगठन ने अब मिलकर मैदान में कैंपेन चलाना तय किया है। इसके लिए सत्ता और संगठन द्वारा अलग-अलग स्तर पर टीमें बनाकर मुहिम चलाई जा रही है। इसके लिए तीन से चार माह का रोडमैप तैयार करने की तैयारी की जा रही है। इसमें किस प्रकार जनता को ओबीसी आरक्षण और जनजाति मुद्दे पर कदमों की जानकारी दी जाए इसका ब्ल्यू-प्रिंट रहेगा। सीएम शिवराज सिंह चौहान द्वारा ओबीसी के मुद्द्दे पर बीते गुरुवार को ही बड़ी बैठक की गई है। यही नहीं अब सत्ता व उसके दल द्वारा ओबीसी मुद्दे पर क्षेत्रवार कैंपेन की रणनीति बनना शुरू कर दी गई है इस वर्ग को ेलकर प्रदेश में बीते एक हफ्ते से कांग्रेस व भाजपा आमने-सामने बने हुए हैं। दोनों दलों के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। इस बीच दोनों ही दलों द्वारा अपने नेताओं को भी मैदान में उतारकर अपने अपने पक्ष में माहौल बनाने का काम सौंप दिया गया है। हालत यह है कि इस मामले में चल रही रार की वजह से विधानसभा का मानसून सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ गया और सत्र समय से पहले ही समाप्त करना पड़ा है।
मंत्री-नेता संभालेंगे मोर्चा
ओबीसी के मामले में अब भाजपा द्वारा अपने इस वर्ग के सभी मंत्री, विधायक और अन्य नेताओं को अलग-अलग जगह मोर्चा संभालने की जिम्मेदारी दे दी गई है। पंद्रह अगस्त के कार्यक्रम में भी ओबीसी मुद्दे पर नेतागण अपनी बात जनता के बीच रखेंगे। इसके अलावा कांग्रेस ने अब तक क्या विफलताएं की और भाजपा ने क्या कदम उठाए इस पर पूरा प्रचार कैंपेन तैयार होगा। जल्द ही इस कैंपेन के लिए बैठक भी बुलाने की तैयारी है।
आदिवासी दिवस पर हो चुका है टकराव
विश्व आदिवासी दिवस पर बीते सोमवार को भाजपा और कांग्रेस में जमकर टकराव हो चुका है। कांग्रेस ने जहां सार्वजनिक अवकाश रद्द करने पर भाजपा पर आदिवासी विरोधी होने का आरोप लगाया तो भाजपा भी कांग्रेस के शासनकाल की याद दिलाने में पीछे नहीं रही। अगले ही दिन पिछड़ों का आरक्षण 14 से 27 प्रतिशत किए जाने पर सियासी संग्राम के बीच विधानसभा में भी इस पर जमकर हंगामा हुआ।
सीएम शिवराज ने बोला कांग्रेस पर हमला
इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि कांग्रेस भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही है और समाज को तोड़ने के प्रयास में लगी है। पहले आदिवासियों को लेकर भ्रम फैलाया और फिर पिछड़े वर्ग को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है। मुख्यमंत्री चौहान ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार का जिक्र करते हुए कहा, 8 मार्च 2019 को 14 से 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने का तत्कालीन सरकार ने वचन दिया था। 10 मार्च को याचिका लगी और 19 मार्च को स्टे आ गया। 10 से 19 तारीख तक तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने अपना एडवोकेट जनरल तक कोर्ट में खड़ा नहीं किया। तत्कालीन सरकार ने अपने शासन के दौरान कोई प्रयास तक नहीं किया। उन्होंने कहा, कमल नाथ ने पिछड़े वर्ग की पीठ में छुरा घोंपा है। कांग्रेस पाखंड कर रही है, पिछड़ा वर्ग को कांग्रेस ने धोखा दिया है।
आदिवासी समाज रहा कांग्रेस के साथ
कांग्रेस के साथ आदिवासी समाज के जुड़ाव की वजह है उस समाज के कई नेता कांग्रेस ने दिए हैं। इनमें प्रमुख रुप से जमुना देवी, शिवभानु सिंह सोलंकी और उनके पुत्र सूरजभान सिंह सोलंकी, उर्मिला सिंह और कांतिलाल भूरिया शामिल हैं। खास बात यह है कि इनमें से शिवभानु सिंह सोलंकी और जमुना देवी प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री तक रहे, वहीं कांतिलाल भूरिया कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
नाथ ने अच्छी पैरवी न करने का लगाया आरोप
उधर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने राज्य सरकार पर ओबीसी के मामले में न्यायालय में बेहतर तरीके से पैरवी न करने का आरोप लगाते हुए कहा कि शिवराज सरकार की न्यायालय में कमजोर पैरवी व पक्ष ठीक ढंग से नहीं रखने के कारण भी, आज ओबीसी वर्ग को बढ़े हुए आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है। वर्ष 2004 से 2014 तक भी प्रदेश में शिवराज की सरकार थी, इस दौरान कमजोर पैरवी के कारण केस हारे और आज हम पर कमजोर पैरवी का झूठा आरोप लगाया जा रहा है। उन्होंने कहा, न्यायालय में केस हारने के बाद भी वर्ष 2014 से 2018 तक शिवराज सरकार ने ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए कोई कदम नहीं उठाया, मुझ पर झूठे आरोप लगाने वाले शिवराज सरकार की यह वास्तविकता है। उनका कहना है कि मेरी सरकार द्वारा आठ मार्च 2019 को ओबीसी वर्ग के आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का निर्णय लिया था। इसको चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में कुछ याचिकाएं लगीं।
नहीं बन सके पिछड़े वर्ग के नेता
मप्र में तमाम बड़े नेता पिछड़े वर्ग के हैं , लेकिन वे कभी भी उनके सर्वमान्य नेता नहीं बन सके हैं। इनमें कांग्रेस के सुभाष यादव, भाजपा के शिवराज सिंह चौहान और उमा भारती पिछड़े वर्ग से आते हैं लेकिन उनके राजनीतिक उत्थान को पिछड़े वर्गों का सशक्तिकरण नहीं माना जा सकता है। एक राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार, शिवराज सिंह चौहान और उमा भारती हिंदुत्ववादी आंदोलन से निकले नेता हैं। भाजपा और कांग्रेस, दोनों पार्टियों में इन वर्गों की मौजूदगी जरूर है लेकिन उसे सिर्फ सांकेतिक ही माना जा सकता है।
भाजपा को मिलता रहा साथ
पिछड़े वर्ग का अचानक भाजपा को साथ करीब दो दशक पहले मिलना शुरू हुआ जो अब तक बरकरार है। यही वजह है कि प्रदेश में चार बार से भाजपा सत्ता में बनी हुई है। इसकी वजह है प्रदेश में लगातार भाजपा की सरकार बनने पर एक के बाद एक तीन मुख्यमंत्री हुए हैं, जो पिछड़ा वर्ग से ही रहे हैं। अभी भी इसी वर्ग से आने वाले शिवराज सिंह सीएम हैं। उनके पहले बाबू लाल गौर और उमा भारती भी सीएम रह चुकी हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री भी इसी वर्ग से आते हैं।
क्यों महत्वपूर्ण बन रहा है ओबीसी आरक्षण का मामला
ओबीसी का मामला एक और दृष्टि से भाजपा के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसकी वजह है अगले साल उप्र में विधानसभा का चुनाव होना। मप्र की जो सीमा उप्र से लगती है वहां ओबीसी की जनसंख्या बहुत है। चंबल से लेकर बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र तक फैली इस पट्टी में 13 जिले मुरैना, भिंड, दतिया, शिवपुरी, अशोक नगर, सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, पन्ना, सतना, रीवा और सिंगरौली आते हैं। इन जिलों के लोगों का न सिर्फ उप्र में लगातार आना जाना होता है बल्कि वहां उनके पारिवारिक रिश्ते वाले भी बहुत से लोग हैं। ऐसे में चुनाव के समय इन लोगों की भूमिका अहम देखी जा रही है। भाजपा नहीं चाहेगी कि उप्र जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील और अहम राज्य के चुनाव के वक्त वह ऐसा कोई जोखिम मोल ले जिससे उसे चुनावी खमियाजा उठाना पड़े।
कांग्रेस ने नहीं किया पिछड़ों का भला
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद विष्णुदत्त शर्मा ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि आजादी के बाद सबसे अधिक समय तक कांग्रेस की सरकार रही, लेकिन कभी भी कांग्रेस पिछड़ों का भला नहीं कर पाई। कांग्रेस सरकार ने ओबीसी कमीशन बनाकर पिछड़ों को लॉलीपॉप दिया, लेकिन उसे संविधान का दर्जा नहीं दिया, क्योंकि पिछड़ा वर्ग को इन्होनें हमेशा वोट बैंक माना। कांग्रेस को डर था कि अगर ओबीसी कमीशन को संवैधानिक दर्जा मिल जाएगा तो यह वर्ग अपने अधिकारों को प्राप्त कर लेगा और कांग्रेस का वोट बैंक खत्म हो जाएगा। कांग्रेस ने वर्षों तक जातियों को लड़ाने और भ्रमित करने का काम किया है और यही कमलनाथ और कांग्रेस के नेता प्रदेश में कर रहे हैं।
कांग्रेस ने विधायकों को सौंपा जिम्मा
इस मामले में कांग्रेस भी पीछे नहीं है। उसने भी अपने आधा दर्जन विधायकों को मैदानी स्तर पर पार्टी का पक्ष रखने और कांग्रेस सरकार के समय किए गए प्रयासों को सार्वजनिक रुप से रखने का जिम्मा दिया है। यह सभी नेता मीडिया से इस मामले में अलग-अलग जिलों में जाकर बात करेंगे। इसके अलावा भाजपा की असफलताओं को भी सामने रखेंगे। यह काम कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ विधायकों को सौंपा है।
चुनावी सरगर्मी के बीच कैंपेनिंग
प्रदेश में जल्द ही तीन विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर उपचुनाव होना है। इन सीटों पर अलग से जिम्मेदारी तय करके ओबीसी और आदिवासी मुद्दे पर कैंपेन होगा। इन उपचुनावों के अलावा नगरीय निकाय और फिर पंचायत चुनाव भी होना है। अभी कानूनी पेचीदगियों के कारण इसमें देरी है, लेकिन भाजपा संगठन चुनावी मोड में ही इसके लिए तैयारी कर रहा है। इस कारण दोनों मुद्दों पर गंभीरता से जनता के बीच जाने की तैयारी की जा रही है।
प्रदेश की 99 सीटों पर प्रभावी है आदिवासी समाज
47 विस सीट आरक्षित हैं प्रदेश में
06 विधानसभा सीट बैतूल संभाग में
09 विस सीट जबलपुर संभाग में
10 विधानसभा सीट शहडोल संभाग में
10 विधानसभा सीट खरगोन संभाग में
02 विधानसभा सीट उज्जैन संभाग में
10 विधानसभा सीट इंदौर संभाग में
99 सीटों पर आदिवासी वर्ग चुनाव प्रभावित करता है,जिन पर 20 फीसदी से ज्यादा है यह समाज