‘मेंटेना’ पर क्यों मेहरबान हैं शिव ‘राज’ के अफसर

मेंटेना
  • हजारों करोड़ की परियोजनाओं पर कुंडली मारकर बैठी है ई-टेंडरिंग घोटाला करने वाली कंपनी
  • सरकार के बार-बार के नोटिस के बावजूद कंपनी को नहीं किया जा रहा ब्लैकलिस्ट
  • नियम विरुद्ध दिए गए प्रोजेक्ट की जांच कर 1550 करोड़ की बीना, 120 करोड़ की जुडी और 100 करोड़ की गुढ़ परियोजना को निरस्त करने की उठी मांग
  • मेंटेना कंपनी को मर्जी मुताबिक टेंडर मिले और उसने मनमानी के अनुसार काम किया

    भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के चर्चित ई-टेंडरिंग घोटाले की आरोपी श्रीनिवास राजू मटेंना की मेंटेना कंस्ट्रक्शन कंपनी पर शिवराज सरकार के अफसरों की मेहरबानी चर्चा का विषय बन गई है। 3,000 करोड़ रुपए का ई-टेंडरिंग घोटाला करने वाली कंपनी ने एक तो अवैध तरीके से टेंडर हासिल किया है और उस पर दादागिरी यह की समय पर एक भी परियोजना पूरी नहीं की गई है। इस पर सरकार की तरफ से अफसरों को जांच कर कंपनी को टर्मिनेट और ब्लैकलिस्ट करने के निर्देश दिए गए हैं, लेकिन कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
    आलम यह है कि की मेंटेना कंस्ट्रक्शन कंपनी के जितने कार्य मप्र में चल रहे हैं सभी के सभी अधर में लटके हुए हैं। इससे सरकार को हर साल करोड़ों रूपए की राजस्व हानि हो रही है।
    टेंडर में फिक्सिंग के आरोप
    कंपनी पर टेंडर में फिक्सिंग के आरोप लगते रहे हैं। रीवा में भी नहर परियोजनाओं के कई कार्यों के लिए हुए टेंडर में फिक्सिंग के आरोप शुरू से लगते रहे हैं लेकिन जांच को दबाया जाता रहा है। रीवा में करीब दर्जनभर की संख्या में बड़े कार्य इस ग्रुप की कंपनी ने कराए हैं। कुछ प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं तो कुछ अब भी चल रहे हैं। वर्ष 2010 के बाद सरकार ने टेंडर प्रक्रिया के नियमों में बदलाव किया, तब से लगातार मेंटेना ग्रुप को ठेके मिलते रहे हैं। कुछ कार्य तो ऐसे भी रहे हैं जिनका टेंडर होने से पहले ही कंपनी ने काम शुरू कर दिया था और बाद में उसे ही टेंडर भी मिला। इन कार्यों को अपनी मर्जी के अनुसार कंपनी ने कराए और गुणवत्ता पर सवाल उठे तो जांच नहीं हुई। यहां तक की बीच-बीच में भोपाल से टीमें भेजी जाती थीं जो ठेकेदार को ही क्लीनचिट देकर चली जाती थीं।  जब  मेंटेना के प्रमोटर श्रीनिवास राजू की गिरफ्तारी हुई थी तब से रीवा, सतना एवं सीधी में मेंटेना और उसकी करीबी ठेका कंपनियों को मिले ठेके की जांच करने की मांग उठाई जा रही है।
    सर्वर बंद होने के बाद दो दिन बढ़ाई निविदा अवधि
    मेंटेना ग्रुप को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों में छूट दी जाती रही है। रीवा जिले के कई ऐसे ठेके हैं जिसमें ठेका कंपनी को पहले से पता था कि उसे ही काम मिलेगा। सतना जिले में स्थित मझगवां डिस्ट्रीब्यूटरी के लिए ई-टेंडर का समय आखिरी दिन सायं 5:20 बजे तक निर्धारित था। उस समय पर वेबसाइट का सर्वर बंद कर दिया गया। इसके बाद बिना किसी सूचना के दो दिन निविदा की अवधि और बढ़ा दी गई, जिसका फायदा सीधे मेंटेना को ही मिला। मेंटना ग्रुप के लोगों ने दूसरे नाम की फर्मों से ठेका लेकर काम कराया है।
    कई नहरों का अधूरा काम छोड़ा फिर भी कार्रवाई नहीं
    मेंटेना और उसकी सहयोगी फर्मों को रीवा जिले में कई प्रमुख कार्य इ-टेंडरिंग के जरिए दिए गए। जिस पर कंपनी की ओर से कई परियोजनाओं का अधूरा कार्य छोड़ दिया गया है। जिसकी वजह से नहरों का पानी खेतों तक नहीं पहुंच पा रहा है। कई ऐसे कार्य हैं जिनमें 80 से 90 प्रतिशत कार्य पूरा करने का दावा किया गया है और भुगतान भी हो चुका है लेकिन इस पर जो कार्य अधूरा छोड़ा गया है वह किसी बीच के हिस्से में है। जिसकी वजह से नहरों का पानी आगे की ओर नहीं जा रहा है।
    ईडी और ईओडब्ल्यू में जांच
    मेंटेना कंपनी के कई घपले-घोटालों की जांच ईडी और ईओडब्ल्यू में चल रही है। ई-टेंडर घोटाले की जांच कर रही ईओडब्ल्यू की टीम मेंटेना कंपनी को लेकर साक्ष्य जुटा रही है।  इस केस में ईडी की रिपोर्ट के तहत 17 जनवरी को कंपनी के मालिक श्रीनिवास राजू और उसके एक सहयोगी आदित्य त्रिपाठी को जेल भेजा जा चुका था, जो फिलहाल जमानत पर हैं। मेंटेना कंस्ट्रक्शन कंपनी की सिस्टर कन्सर्न मेसर्स एचईएस मैक्स को छिंदवाड़ा में सिंचाई कॉम्प्लेक्स बनाने के लिए तत्कालीन सीएस एम गोपाल रेड्डी के इशारों पर पांच सौ करोड़ रुपए एडवांस दिए गए थे। जबकि न तो सिंचाई कॉम्प्लेक्स बना और न ही इस मामले में किसी जिम्मेदार पर कार्रवाई हुई। खानापूर्ति के लिए सिर्फ विभाग के दो इंजीनियरों को निलंबित किया गया।
    मप्र को बनाया चारागाह
    हैदराबाद की इस कंपनी ने मप्र को चारागाह बना लिया है। इसकी बानगी इससे मिलती है कि प्रदेशभर में कंपनी के जो भी प्रोजेक्ट चल रहे हैं वे आधे-अधूरे पड़े हैं। मेंटेना कंपनी को मर्जी के मुताबिक टेंडर मिले और उसी मनमानी के अनुसार काम कर रही है। 12 अप्रैल को बीना प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट की समीक्षा बैठक में यह तथ्य सामने आया कि  कंपनी को गोपालपुरा केनाल परियोजना का वर्क आर्डर 21 अगस्त 2015 को  किया गया था। यह कार्य अब भी पूरा नहीं हुआ है। इस काम को वर्षा से पहले करना था लेकिन कंपनी ने नहीं किया। वहीं 15 अप्रैल को सुथालिया प्रोजेक्ट ब्यावरा राजगढ़ को समय पर पूरा नहीं करने के कारण कंपनी को टर्मिनेट और ब्लैकलिस्ट करने की चेतावनी दी गई थी, उसके बाद भी कंपनी ने काम पूरा नहीं किया है।
    नियम विरूद्ध हथियाए प्रोजेक्ट
    सूत्रों की माने तो कंपनी ने प्रदेश में नियमों को ताक पर रखकर कई प्रोजेक्ट हथियाए  हैं। कमलनाथ सरकार में कंपनी की खूब मनमानी चली है। अब मांग उठ रही है कि कमलनाथ के शासनकाल में कंपनी को जितने प्रोजेक्ट दिए गए हैं उनकी जांच कराई जाय और उन्हें निरस्त किया जाए। जानकारी के अनुसार कंपनी ने  1550 करोड़ की बीना, 120 करोड़ की जुडी और 100 करोड़ की गुढ़ परियोजना को अफसरों के साथ मिलीभगत से पाया है।
    धांधली कर झटके अरबों के ठेके
    जब ईडी ने  ई-टेंडर सिस्टम में हेराफेरी करके फर्जी तरीके से टेंडर अपनी कंपनी के नाम करा लेने के आरोप में श्रीनिवास राजू मटेंना और उसके साथी आदित्य त्रिपाठी को गिरफ्तार किया था तब यह बात सामने आई थी की इसने किस तरह मप्र में अपना काला कारोबार जमाया है।  ईडी की जांच के मुताबिक मप्र सरकार अपने हर सरकारी काम के लिए ई-टेंडर के जरिए ठेके जारी करती हैं। टेंडर लेने वाली सभी कंपनियों को इसी प्रक्रिया से गुजरना होता है।  जांच में पता चला था कि श्रीनिवास राजू की कंपनी और हैदराबाद की कुछ कंपनियां पिछले कुछ समय से लगातार टेंडर जीत रही थी और ये सब टेंडर संभालने वाली कंपनियों की मिलीभगत से हो रहा था। इस काम में श्रीनिवास राजू की मदद आदित्य कर रहा था, जो कि एक तरह से फ्रंट कंपनी के तौर पर काम कर रही थी। इसी के जरिए श्रनिवास राजू सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने और हवाला का पैसा इधर-उधर करने में इस्तेमाल करता था।
    बिना काम किए दे दिए 500 करोड़ रुपए
    इस साल मार्च में विधानसभा में शून्यकाल में विधायक दिनेश राय मुनमुन ने मेंटाना कंस्ट्रक्शन कंपनी को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे। दिनेश राय ने आरोप लगाया था कि बिना काम किए ही कंपनी को 500 करोड़ रूपए का भुगतान कर दिया गया है। दिनेश राय ने आरोप लगाया है कि इस कंपनी को सिवनी में नहर बनाने का टेंडर दिया गया था लेकिन, कंपनी नहर का काम आधा छोड़ कर चली गई। फिर भी कंपनी को पूरा पेमेंट जारी कर दिया गया। दिनेश मुनमुन ने कहा कि यह घोटाला बिना बड़े अधिकारियों की सांठगाठ के नहीं हो सकता। भोपाल में बैठे बड़े अधिकारियों की मिलीभगत से ही इस करोड़ों का गोलमाल भी किया गया है। वहीं उन्होंने कहा कि अभी कम से कम 40 करोड़ का काम नहर में बाकी है।

Related Articles