दिग्गजों में दरार… क्या बनेगी कांग्रेस की हार…

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भोपाल/राघवेंद्र सिंह/बिच्छू डॉट कॉम। फाइनली मध्य प्रदेश कांग्रेस के दो दिग्गज- दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के  रिश्तों में दरार दिखने के बाद अब उनके चटकने की भी आवाज सुनाई पड़ने लगी है। दोनों नेताओं के 40 साल पुराने संबंधों पर चार दिनों का घटनाक्रम इतना भारी पड़ा कि मानो सब कुछ भले न हो लेकिन लगता है बहुत कुछ  बिगड़ सा गया हो। यह दोनों नेता जब दिल्ली और भोपाल में राजनीति करते थे तो सब ठीक था, मगर जैसे ही कमलनाथ ने प्रदेश का रुख किया तो सूबे के सबसे मुकद्दर वाले नेता के रूप में स्थापित हो गए। प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होते ही पीसीसी चीफ बन गए और एक साल के भीतर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी। यह घटनाक्रम जितनी तेजी से घटा उतनी रफ्तार से वे मुख्यमंत्री के सिंहासन पर बैठे भी और चंद महीनों अर्थात लगभग डेढ़ साल बाद सरकार से रुखसत होकर सड़क पर भी आ गए। यह तब हुआ जब मैनेजमेंट के चैंपियन कमलनाथ और फील्ड के मार्शल दिग्विजय सिंह साथ-साथ थे। इसके पीछे जो कुछ घटित हुआ उसमें रिश्तों के लिहाज से कमलनाथ और दिग्विजय दोनों ही बहुत घाटे में रहे। सरकार भी गई, रिश्तों की मिठास के साथ भरोसा भी। अब दोबारा सरकार में कब आएंगे इसका भी पता नहीं। पूरा घटनाक्रम जिस तेज रफ्तार से गुजरा उसे समझने के लिए बादशाह बहादुर शाह जफर के नाम से मशहूर हुआ यह शेर काफी है- उम्र ए दराज मांग कर लाए थे चार दिन,  दो आरजू में कट गए दो इंतजार में … वैसे ये शेर सीमाब अकबराबादी का है लेकिन यह मशहूर हो गया है हिंदुस्तान की मुगलिया सल्तनत के आखिरी चश्मा -ओ- चिराग बहादुर शाह जफर के नाम से।
अब इसके बाद की कहानी कुछ यूं शुरू होती है। दरअसल कांग्रेस की सियासत में कमलनाथ मुकद्दर के बादशाह हैं।  किसी भी राष्ट्रीय पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनना मुश्किल काम होता है पार्टी का काम करते करते एड़ियां घिस जाती हैं तब कहीं जाकर पार्टी हाईकमान और कार्यकर्ताओं का भरोसा हासिल होता है। युवा तुर्क संजय गांधी के बेहद ही चुनिंदा करीबी दोस्तों में शामिल कमलनाथ 1980 से कांग्रेस के उन दमदार युवा नेताओं में शामिल थे, जो प्रदेश के मुख्यमंत्री तय किया करते थे। 1980 में मध्य प्रदेश कांग्रेस के विधायक मुख्यमंत्री पद के लिए शिवभानु सिंह सोलंकी के साथ थे लेकिन कमलनाथ ने अपना समर्थन अर्जुन सिंह को दिया और वह प्रदेश सरकार के सिकंदर बने। युवा कमलनाथ का आदम कद होना इस बात से ही साबित हो जाता था की उन्हें देश के सबसे सुरक्षित संसदीय सीट छिंदवाड़ा से पार्टी का प्रत्याशी बनाया गया जबकि इस सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गार्गी शंकर मिश्र चुनाव लड़ते थे। इसकी खास बात यह थी की 1977 की जनता पार्टी लहर में भी जब कांग्रेस मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव में साफ हो चुकी थी तब भी छिंदवाड़ा अकेली सीट रही जहां से गार्गीशंकर मिश्र कांग्रेस के लिए चुनाव जीते थे।  पिछले 41 सालों में सिर्फ एक बार कमलनाथ 1997 भाजपा नेता सुंदरलाल पटवा से छिंदवाड़ा चुनाव हारे थे। यहां से उनकी धर्म पत्नी अलका नाथ समेत पुत्र नकुल नाथ जो वर्तमान में सांसद है चुनाव जीते हैं। कुल मिलाकर अब तक उनका एक बार का चुनाव छोड़ दें तो अखंड राज योग है। मैनेजमेंट के उस्ताद और यारबाज कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह को भी दो बार मुख्यमंत्री बनवाने में पूर्ण भूमिका अदा की थी। दिग्विजय सिंह अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उनका कार्यकाल प्रदेश की कांग्रेसी राजनीति में सबसे कठिन था। मुख्यमंत्री के दावेदारों की लंबी फेहरिस्त थी। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और उनके समर्थकों समेत शुक्ल बंधुओं में श्यामाचरण शुक्ल और विद्या चरण शुक्ला, मोतीलाल वोरा, सुभाष यादव के साथ सबसे चमकदार, असरदार चेहरों में शामिल माधवराव सिंधिया का नाम शामिल था। मुख्यमंत्री चयन के महाभारत में कई शकुनी दुर्योधन दुशासन के बीच दिग्विजय के साथ खड़े रहे। इसके बाद भाजपा के केंद्र में सत्तारूढ़ होने पर जब दिल्ली में सत्ता की संभावनाएं कम दिखी तो नाथ ने मप्र का रुख किया। प्रदेश में आते से ही कमलनाथ पीसीसी चीफ  बनते हैं और संगठन की कमान अपने हाथ में आने के बाद दिग्विजय सिंह के साथ टीम मैनेजमेंट करने लग जाते हैं। करीब साढ़े तीन हजार किमी की नर्मदा परिक्रमा के दौरान जनता और कार्यकर्ताओं के संपर्क में आए दिग्विजय सिंह प्रत्याशी चयन और गुटबाजी खत्म कर कार्यकर्ताओं को पार्टी की सरकार बनाने के लिए पंगत में संगत जैसे अभियान में जुट गए। कमलनाथ के मैनेजमेंट के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया की छवि और दिग्विजय सिंह द्वारा कार्यकर्ताओं को एकजुट करने मिशन ने कांग्रेस को जिताने में सफलता दिलाई। इसमें किसानों का दो लाख रु तक का कर्जा माफ करने जैसे वादे ने भी भाजपा के मजबूत संगठन और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सहजता, सरलता व मिलनसारिता को भी मात दे दी। कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका दिग्विजय सिंह के बीच ठीक तालमेल चल रहा था। लेकिन दोनों के बीच शकुनी और मंथराएं भी सक्रिय थीं। दिग्विजय सिंह अपने पुत्र जयवर्धन सिंह को मंत्री बनाकर और कमलनाथ अपने पुत्र नकुल नाथ को छिंदवाड़ा से सांसद बनाकर लगभग संतुष्टि को प्राप्त कर गए थे। दिग्विजय सिंह कांग्रेस के भीतर और बाहर भी समन्वय की राजनीति के पक्षधर रहे हैं यही, वजह है कि उनके मुख्यमंत्री रहते जब भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भोपाल में हुई तो उन्होंने तमाम विरोध – मतभेद के बावजूद भाजपा नेताओं को अपने मुख्यमंत्री निवास पर भोजन के लिए आमंत्रित किया। चुनाव में विपक्ष की नेता होने के बाद भी वे राजमाता विजयाराजे सिंधिया से चुनाव में जीतने का आर्शीवाद भी लेने जाते थे। मुख्यमंत्री रहते भाजपा के दो पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा और कैलाश जोशी, कैलाश सारंग, विक्रम वर्मा,  गौरीशंकर शेजवार आदि से अक्सर उनके आवास पर मिलने पहुंच जाते थे। राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय छोटे बड़े कार्यकर्ताओं के घर भी सुख दुख में जाने की परंपरा को उन्होंने मुख्यमंत्री से लेकर अब तक कायम रखा है। समन्वय के बहुत से उदाहरण हैं, लेकिन एक समय पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बनाई तब उनके समन्वय और सरलता के सिद्धांत ने ही एक तरह से प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को बचाए रखा था। सब जानते थे कि कांग्रेस सरकार में अर्जुन सिंह के समर्थक मंत्री और विधायक बड़ी संख्या में थे। यदि वे बगावत करते तो कांग्रेसी सरकार गिर जाती। तब दिग्विजय सिंह ने बड़ी चतुराई से अपनी सरकार में अर्जुन सिंह समर्थक मंत्री विधायकों को अर्जुन सिंह से मिलने जुलने की आजादी दे रखी थी। उस समय के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने प्रदेश की यात्रा के दौरान दिग्विजय सिंह के लिए सब्यसाची नाम से संबोधित किया था। महाभारत में कृष्ण ने अर्जुन को सब्यसाची नाम दिया था। इसका अर्थ यह है कि जो धर्नुधर दोनों हाथों से तीर चलाने में निष्णात हो। एक तरफ सब्यसाची दिग्विजय सिंह जो भाजपा के साथ कांग्रेस छोड़कर गए अर्जुन सिंह और उनके मंत्री विधायकों कार्यकर्ताओं व पत्रकारों के साथ समन्वय और संवाद बनाए रखते हैं दूसरी, तरफ कमलनाथ हैं जो मुख्यमंत्री पीसीसी चीफ का दायित्व भी संभाले हुए थे तब वे अपने कार्यकर्ता और विधायकों को तो छोड़िए मंत्रियों के लिए भी पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जब किसानों से किए वादे पूरे नहीं करने पर सड़क पर उतरने की बात की तब प्रतिक्रिया स्वरूप तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा था – सड़क पर उतर जाएं, किसने रोका है। इसके अलावा बहुत सारी बातें हैं लेकिन एक बात तय है की कमलनाथ उसके बाद सिंहासन से सड़क पर आ गए और सड़क पर चलने वाले सिंधिया केंद्र सरकार में मंत्री बन हवाई जहाज में उड़ रहे हैं। महाभारत में दुर्योधन को लक्ष्य करके कहे गए द्रोपदी के एक वाक्य -अंधे के अंधे होते हैं ने महाभारत करवा दिया था उसी तरह सिंधिया के सड़क पर उतर जाने की चेतावनी और उस पर वह कहना  कि- उतर जाएं किसने रोका है… कांग्रेस मध्यप्रदेश में सरकार से सड़क पर आ गई है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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