
- बंगाल के ट्रेडर्स और बीड़ी निर्माता उच्चतम बोली लगाकर खरीदते हैं मप्र का तेंदूपत्ता
विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र देश का सबसे बड़ा तेंदूपत्ता उत्पादक राज्य है। यहां के तेंदूपत्ते की गुणवत्ता इतनी अच्छी होती है कि उसकी देशभर में मांग होती है। इसको देखते हुए प्रदेश में हर साल 17 लाख मानक बोरा तेंदूपत्ता की उपज में से अधिकांश पश्चिम बंगाल के ट्रेडर्स और बीड़ी निर्माता उच्चतम बोली लगाकर खरीद लेते हैं। फिर वे इस पत्ते को वहां के लोगों को बीड़ी बनाने के लिए उपलब्ध कराते हैं। जिससे लोगों को रोजगार तो मिलता ही है, साथ ही बड़ी कमाई भी होती है। दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि मप्र के तेंदूपत्ता से पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठिए पल रहे हैं।
दरअसल, इस नीलामी को लेकर बड़ा मामला ये है कि प्रदेश में हर साल 17 लाख मानक बोरा तेंदूपत्ता की उपज में से अधिकांश पश्चिम बंगाल के ट्रेडर्स और बीड़ी निर्माता उच्चतम बोली लगाकर खरीद लेते हैं। फिर वे इस पत्ते को वहां के लोगों को बीड़ी बनाने के लिए उपलब्ध कराते हैं। जिसके एवज में मिली मजदूरी बांग्लादेशी घुसपैठियों को भी भारत में पैर जमाने के काम आती है। सागर में 27 सितंबर 2024 को हुए बुंदेलखंड रीजनल इंडस्ट्रियल कॉन्क्लेव में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने ऐलान किया था कि मप्र और बुंदेलखंड के गरीब परिवारों को रोजगार देने वाले बीड़ी उद्योग को फिर से खड़ा किया जाएगा। इस पर कुछ काम होता अथवा सीएम की घोषणा पर अमल शुरू होता है, उससे पहले मप्र लघु वनोपज संघ (व्यापार एवं विकास) भोपाल ने टेंडर जारी कर दिया। इस टेंडर ने सागर के बीड़ी उद्योग को फिर से चिंता में डाल दिया है। ऐसे में साफ हो गया कि मध्यप्रदेश में लाखों गरीबों को रोजगार देने वाले बीड़ी उद्योग की वापसी की फिलहाल ज्यादा संभावना बनती नहीं दिख रही है।
मजदूरी सस्ती इसलिए पत्ता महंगा खरीद लेते हैं
व्यावसायिक नजरिए से ये सवाल भी उठता है कि मध्यप्रदेश के तेंदूपत्ता ट्रेडर्स या बीड़ी निर्माताओं को किसने रोका है? वे और ऊंची बोली लगाकर तेंदूपत्ता क्यों नहीं खरीदते? जवाब ये है कि अगर मप्र के ट्रेडर्स या बीड़ी निर्माता महंगा पत्ता खरीदेंगे तो उन्हें बीड़ी बनवाना और भी महंगा पड़ेगा। मध्यप्रदेश में बीड़ी मजदूरी दर पश्चिम बंगाल की तुलना में बहुत अधिक है। पश्चिम बंगाल में भी बीड़ी मजदूरी ठीक-ठाक है, लेकिन वह केवल सरकारी कागजों तक सीमित है। व्यापार से जुड़े लोग बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में एक वर्ग विशेष के बीड़ी मैन्युफेक्चरर बांग्लादेशी घुसपैठियों से औने-पौने दाम में बीड़ी बनवाते हैं। जो भारत में बने रहने के लिए 100-120 रुपए प्रति हजार तक के भाव से बीड़ी बनाते हैं। जबकि मध्यप्रदेश में इतनी ही बीड़ी के लिए रजिस्टर्ड बीड़ी निर्माता फर्म को मजदूर को खाते के माध्यम से 147 रुपए प्रति हजार भुगतान करना होता है। मप्र के तेंदूपत्ता ट्रेडर्स या बीड़ी निर्माता तेंदूपत्ता की ऊंची बोली लगाकर क्यों नहीं खरीद पाते हैं, यह भी एक सवाल है। कारण यह है कि अगर मध्यप्रदेश के व्यापारी और बीड़ी निर्माता तेंदूपत्ता महंगा खरीदेंगे, तो उनकी बीड़ी बनवाने की लागत बढ़ जाएगी। मध्यप्रदेश की बीड़ी बनाने की मजदूरी दर पश्चिम बंगाल की तुलना में बहुत ज्यादा है। सरकारी दस्तावेजों में पश्चिम बंगाल में भी बीड़ी मजदूरी ठीक-ठाक है, लेकिन वास्तविकता अलग है। पश्चिम बंगाल में आने वाले बांग्लादेशी घुसपैठियों को काम की दरकार होती है। लिहाजा वे 100 और 120 रुपए प्रति हजार के भाव से बीड़ी बनाने की तैयार हो जाते हैं। इसके इतर, मध्यप्रदेश में बीड़ी मजदूरों को खाते में 147 रुपए प्रति हजार भुगतान करना होता है।
अधिकांश तेंदूपत्ता जाता है प. बंगाल
गौरतलब है कि मप्र के कई जिलों में तेंदूपत्ता रोजगार का बड़ा साधन है। खासकर सागर में रोजगार का सबसे बड़ा साधन तेंदूपत्ता और बीडी उद्योग है, लेकिन वह तबाह होने की स्थिति में है। इस तरह के हालात ग्लोबल टेंडर के कारण बने है। इस टेंडर में अगर मप्र का अलग कोटा तय कर दिया जाए, तो उससे राज्य के बीड़ी उद्योग को फायदा मिलेगा। प्रदेश के नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय खुद स्वीकार कर चुके हैं कि मप्र में पैदा होने वाले सबसे बेहतर गुणवत्ता के तेंदूपत्ता से पश्चिम बंगाल में घुसपैठिए पल रहे हैं। खास बात यह कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सागर के बीड़ी उद्योग को बढ़ाने का ऐलान कर चुके हैं, लेकिन अपनी मनमानी पर आमादा अफसर सीएम की घोषणाओं को भी पलीता लगाने से नहीं चूक रहे है। मप्र राज्य लघु वनोपज संघ ने तेंदूपत्ता का विक्रय करने के लिए ऑनलाइन टेंडर जारी किया है। यह नीलामी ग्लोबल स्तर पर होगी। इससे पश्चिम बंगाल के लोग नीलामी में हिस्सा लेते हैं, लेकिन वे खुद सामने नहीं आते हैं। उनकी ओर से डमी ठेकेदार उतार दिए जाते हैं। बाद में सेटिंग के आधार पर सौदा तय हो जाता है। लिहाजा सागर का तेंदूपत्ता पश्चिम बंगाल चला जाता है। वहां पर बीड़ी का निर्माण होता है। मान्यता है कि मप्र और खासतौर पर बुंदेलखंड में सबसे अच्छा तेंदूपत्ता पाया जाता है, जो बीड़ी के बेहद अनुकूल है। पश्चिम बंगाल हिंदुस्तान का बड़ा बीड़ी उत्पादक राज्य है, लेकिन वहां पर तेंदूपत्ता मप्र का उपयोग किया जाता है। वह तेंदूपत्ता नीलामी के जरिए पश्चिम बंगाल तक पहुंचता है। बताते हैं कि कुछ तेंदूपत्ता अवैध तरीके से भी पश्चिम बंगाल के बीड़ी कारोबारियों को बेचा जाता है।
बीड़ी उद्योग से पल रहे बांग्लादेशी घुसपैठिए
मध्यप्रदेश का तेंदूपत्ता पश्चिम बंगाल जा रहा है और इसकी जानकारी राज्य सरकार को नहीं है, ऐसा बिल्कुल नहीं है। तेंदूपत्ता पश्चिम बंगाल जा रहा है और उसका उपयोग बांग्लादेशी घुसपैठिए कर रहे हैं, इसकी पूरी जानकारी मध्यप्रदेश सरकार को भी है। इस मुद्दे पर राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में चर्चा भी हो चुकी है। चर्चा के बाद मीडिया को खुद विजयवर्गीय ने बताया था कि मध्यप्रदेश में अच्छी क्वालिटी का पूरा तेंदूपत्ता पश्चिम बंगाल चला जाता है, जहां बाग्लादेशी घुसपैठियों से कम मजदूरी देकर बीड़ी निर्माण कराया जा रहा है। इस काम को कराने के लिए पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों की अनेक कालोनिया विकसित हो गई है। उन्होंने यहां तक कहा कि मैं पश्चिम बंगाल का प्रभारी (भाजपा संगठन) रहा हूं, मुझे पूरी जानकारी है। विशेषज्ञों की माने तो प्रदेश में हर साल 17 लाख मानक बोरा तेंदूपत्ता की उपज हो रही है। इसमें से तकरीबन 90 प्रतिशत हिस्सा पश्चिम बंगाल के व्यापारी और बीड़ी निर्माता अधिकतम बोली लगाकर खरीद ले जाते हैं। पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिले के धुलियान, कालिया चक, फरक्का, औरंगाबाद जिलों के गांवों में सबसे ज्यादा बीड़ी उत्पादन होता है। उन गांवों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की बड़ी-बड़ी बस्तियां हैं। अगर नीलामी के दौरान 40 से 60 फीसदी का एक निश्चित कोटा मध्यप्रदेश के लिए तय कर दिया जाए, तो प्रदेश की दिक्कत दूर हो जाएगी। अगर सरकार ग्लोबल टेंडर भी करती है, तो यह तय करे कि खरीदने वाले ठेकेदार मध्यप्रदेश में बीड़ी बनाने का कारोबार करेंगे, ताकि रोजगार स्थानीय लोगों को मिले। अभी ऐसा नहीं हो रहा है।