कूनो में कमजोर निगरानी तंत्र ने बढ़ाई चिंता

  • चीता पुर्नस्थापना प्रोजेक्ट में लगातार सामने आ रही खामियां
  • विनोद उपाध्याय
कूनो

भारत से विलुप्त हुए चीतों को एक बार फिर से बसाने के लिए दो साल पहले कूनो नेशनल पार्क में जो प्रयास शुरू किया गया है, उसमें अभी भी खमियां हैं। सबसे बड़ी खामी कमजोर निगरानी तंत्र की है। इस कारण पार्क में लगातार चीतों की मौत हो रही है। अभी तक पार्क में जितने भी चीतों की मौत हुई है उसमें चीता पुनस्र्थापना प्रोजेक्ट में निगरानी तंत्र की कमियां सामने आ रही हैं। कभी चीता तो कभी उनके शावकों की मौत पर पार्क प्रबंधन की चुप्पी चिंता बढ़ाने वाली होती है। हाल ही में मादा चीता निर्वा के दो शावकों की मौत का कोई स्पष्ट कारण कूनो प्रबंधन के पास नहीं है। यह सब तब है जब चीते बड़े बाड़े में है। उनकी देखभाल के लिए उच्च स्तरीय निगरानी तंत्र, मजबूत हाई टेक तकनीकी संसाधन और ट्रैकर व अधिकारियों की बड़ी संख्या मौजूद है।
कूनो नेशनल पार्क में प्रोजेक्ट चीता को बड़ा झटका लगा है। हाल ही में जन्मे दो चीता शावकों के शव मिले हैं। वन विभाग के अधिकारियों ने शावकों की मौत की पुष्टि की है। दक्षिण अफ्रीका से लाई गई मादा चीता निर्वा ने 22 नवंबर को चार शावकों को जन्म दिया था। गतदिनों निरीक्षण के दौरान निर्वा अपनी मांद से दूर भटकती पाई गई। जब टीम ने मांद का निरीक्षण किया, तो वहां दो शावकों के क्षत-विक्षत शव बरामद हुए। पहले शावकों की संख्या को लेकर भ्रम की स्थिति थी। राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 25 नवंबर को सोशल मीडिया पर चार शावकों के जन्म की जानकारी साझा की थी, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी पोस्ट हटा ली। कूनो नेशनल पार्क में अभी भी 12 वयस्क चीते और 12 शावक स्वस्थ हैं। निर्वा के शावकों का जन्म प्रोजेक्ट चीता के लिए बड़ी उपलब्धि मानी जा रही थी, लेकिन इस घटना से उदासी छा गई है। वन विभाग और विशेषज्ञ इस घटना के कारणों की जांच कर रहे हैं ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।
दो साल बाद भी पर्यटकों से दूर चीते
 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उच्च प्राथमिकता वाली परियोजनाओं में से एक चीता प्रोजेक्ट पर सरकार के 32 करोड़ रुपये और कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) फंड के 12 करोड़ 80 लाख रुपये खर्च हो चुके है। दो साल बाद भी पर्यटक चीतों को जंगल में देख नहीं पाए हैं। केंद्र से लेकर मप्र सरकार और कूनो प्रबंधन का दावा है कि उनका निगरानी तंत्र मजबूत है। इसके बाद भी चीतों के जन्म, मौत, उनमें आपसी संघर्ष, दूसरे जिलों में जाने से लेकर जुड़े तथ्य या कारण गोपनीयता बरतने की आड़ में स्पष्ट नहीं किए जाते। पिछले वर्ष खुले जंगल में छोड़ते समय हर चीते को कालर आइडी पहनाई गई। दो अगस्त, 2023 को जब मादा चीता धात्री की मौत हुई तो इसका कारण कालर आइडी की रगड़ से गर्दन में हुए संक्रमण को बताया गया। मौत हो जाने तक प्रबंधन को संक्रमण फैलने की जानकारी ही नहीं हुई। 23 अगस्त, 2024 को नामीबिया से लाए गए चीते पवन का शव पानी से भरे गड्ढे में मिला था। इसने भी निगरानी की पोल खोली थी। बता दें, कूनो में आठ चीता और सात शावकों की मौत हो चुकी है। मध्य प्रदेश के महालेखाकार की एक रिपोर्ट में कूनो में प्रोजेक्ट चीता के प्रबंधन पर चिंता व्यक्त की जा चुकी है। इसमें केंद्र और राज्य सरकार के विभागों के बीच समन्वय की कमी को उजागर किया गया था।
ट्रैकरों की व्यवस्था लंबे समय से बंद
गौरतलब है कि हर चीते की निगरानी के लिए तीन से चार ट्रैकरों का दल बनाया गया था। चीतों को मांस परोसने को लेकर विवाद हुआ और ट्रैकरों की व्यवस्था लंबे समय से बंद है। अब बड़े बाड़े में चीते किसके भरोसे हैं, अफसरों के पास इसका जवाब नहीं है। कूनों में उच्च तकनीक के नाइट विजन कैमरों से भी निगरानी का दावा है लेकिन पिछले वर्ष 11 और 14 जुलाई को आपसी संघर्ष में नर चीता तेजस और सूरज की मौत हुई, तब इन कैमरों से मदद नहीं मिली। कूनो के बड़े बाड़े में चिकित्सा विशेषज्ञों का दल है। वर्तमान में यही चीतों के सीधे संपर्क में है। इसके बाद भी गर्भवती निर्वा की निगरानी नहीं हो पाई। इससे पहले भी इस दल ने जांच के दावे किए लेकिन कभी ठोस जानकारी नहीं मिली। चीतों को खुले जंगल में छोडऩे पर भी असमंजस बरकरार है जबकि केंद्र और राज्य सरकार से इन्हें छोड़े जाने के लिए हरी झंडी मिल चुकी है। चीता स्टीयरिंग कमेटी के अध्यक्ष डा. राजेश गोपाल के अनुसार चीतों को छोडऩे की अनुमति दे दी गई है। सारी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। अब कूनो प्रबंधन को इन्हें छोडऩा है।
राजस्थान-मप्र के बीच बनेगा चीता कॉरिडोर
कूनो नेशनल पार्क के चीते राजस्थान में भी घूमे सकेंगे। कूनो पार्क से राजस्थान की सीमाओं से सटे इलाकों में कारिडोर बनाया जाएगा। मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के वन क्षेत्रों को मिलाकर कारिडोर बनाया जाएगा। दिसंबर में राजस्थान और मप्र के बीच समझौता होगा। 1500 से 2000 किलोमीटर तक के इस कारिडोर से तीनों राज्यों के 22 जिले के कुल 27 डिवीजन जुड़ेंगे। चीता कारिडोर श्योपुर के कूनों से शिवपुरी से होकर राजस्थान के मुकुंदरा टाइगर रिजर्व से होते हुए मंदसौर के गांधीसागर सेंचुरी तक फैला होगा। चीता लैंडस्केप समन्वय के संबंध में अंतरराज्यीय समिति की बैठक राजस्थान के सवाई माधोपुर स्थित ताज सवाई विलास में शुक्रवार को इस पर चर्चा हुई। इसमे चीतों को खुले जंगल में छोडऩे, जिले की सीमा से बाहर जाने पर उनकी देखरेख करने आदि विषयों पर प्लान तैयार किया गया। चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन पवन कुमार उपाध्याय ने बताया कि बैठक में दोनों राज्यों के प्रधान मुख्य वन संरक्षक, मुख्य वन्यजीव वार्डन, अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक, चीता लैंडस्केप के सभी प्रभागीय वन अधिकारी और भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के विशेषज्ञ भी उपस्थित रहे। बैठक में चीतों के राजस्थान में भी विचरण पर चर्चा हुई। इनकी फिजिबिलिटी स्टडी, टूरिज्म की संभावना आदि को लेकर चर्चा हुई। फिजिबिलिटी स्टडी वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया के माध्यम से कराई जाएगी। इसमें राजस्थान के 13, मध्य प्रदेश के 12 और उत्तर प्रदेश के 2 डिवीजन शामिल है। धौलपुर से चित्तौडगढ़़ तक लगभग साढ़े छह हजार से सात हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में चीता के लिए जमीन को चिह्नित किया गया है।

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