
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। किसी भी विश्वविद्यालय की साख का पता उसे मिले नैक के तमगे से चलता है, लेकिन प्रदेश का एकमात्र तकनीकी विश्वविद्यालय राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) को शायद अपनी साख की ही चिंता ही नहीं है। शायद यही वजह है कि नेशनल असेसमेंट एंड एक्रीडिटेशन काउंसिल (नैक) ग्रेडिंग के तमगे के बिना ही विवि का संचालन किया जा रहा है। हद तो यह है कि पूर्व में मिले ए-ग्रेड का तमगा डेढ़ साल पहले हट चुका है , लेकिन अब तक विवि प्रशासन द्वारा इसके लिए अब तक आवेदन तक नहीं किया गया है। गौरतलब है कि विवि में नैक का मूल्यांकन मई 2017 में हुआ था, जिसके आधार पर विवि की ग्रेडिंग हुई थी। यह तमगा पांच सालों के लिए दिया जाता है। इस हिसाब से तमगे की अवधि जून 2022 को समाप्त हो चुकी है। इस वजह से विवि के नाम के आगे से नैक ग्रेडिंग का तमगा हटा दिया गया है। विवि के मामले में हद तो यह है कि उससे ही संबद्ध कई कालेजों को अच्छी ग्रेडिंग मिली हुई है। इसके बाद भी विवि प्रशासन इस मामले में पूरी तरह से लापरवाह बना हुआ है, जिसकी खामियाजा विवि की गिरती साख के रुप में भुगतना पड़ रहा है। आरजीपीवी के महज चार डिपार्टमेंट राष्ट्रीय रैंकिंग में शामिल हैं। हद तो यह है कि विवि के जिम्मेदार अधिकारी और एकेडमिक एचओडी अपने ही कैंपस में संचालित यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (यूआईटी) को बीते दो दशक में महज चार कोर्स बीटेक मैकेनिकल, सिविल, आईटी और ईई कोही नेशनल बोर्ड ऑफ एक्रीडिटेशन (एनबीए) से मान्यता दिला सके हैं।
साढ़े छह साल में भी नहीं हुई खामियां दूर
नैक द्वारा किसी भी संस्था का सात क्राइटेरिया पर मूल्यांकन किया जाता है, जिसमें शोध, प्लेसमेंट, नियमित फैकल्टी, छात्रों के लिए सुविधाजनक माहौल हॉस्टल जैसे बिंदु शामिल होते हैं। नैक ने 2017 के दौरे के समय विवि प्रशासन को उसकी खामियां बताकर उन्हें दूर करने के सुझाव दिए थे। इनमें फैकल्टी और नॉन टीचिंग स्टॉफ के खाली पद भरने , कमजोर औद्योगिकी संबंध, अपर्याप्त उत्पादक सहयोगी गतिविधियां, अपर्याप्त रिसर्च एंड डेवलपमेंट फंडिंग जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं पर काम करने को कहा था, लेकिन वह कमियां साढ़े छह साल बाद भी दूर करने में कोई रुचि नही ली गई है। दरअसल विवि में 2009-10 से नियमित शिक्षकों की भर्ती ही नहीं की गई है।