बेरोजगारी बढ़ेगी, आउटसोर्स जैसी सबसे बेकार व्यवस्था बढ़ेगी

बेरोजगारी
  • कर्मचारियों की 7 कैटेगरी समाप्त करने का शुरू हुआ विरोध

    भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार ने कर्मचारियों की 7 कैटेगरी (दैनिक वेतन भोगी, अंशकालीन, कार्यभारित, स्थायीकर्मी सहित अन्य) समाप्त कर दी हैं। अब सिर्फ तीन कैटेगरी रहेंगी, इनमें नियमित, संविदा, आउटसोर्स कर्मचारी शामिल हैं। सरकार ने साफ कर दिया है कि अब स्थायी और अस्थायी कैटेगरी नहीं रहेगी। क्योंकि इनकी सेवा शर्तें, वेतन और पेंशन समान हैं। कैबिनेट के इस निर्णय का कर्मचारी संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया है। जिन पदों को कैबिनेट में खत्म कराने का निर्णय लिया है, उसका प्रदेश भर में विरोध होने लगा है। यह निर्णय वित्त विभाग के जरिए हुआ है। कर्मचारी संगठनों का कहना हैं कि जिन पदों को नियमित श्रेणी में डाला जाना था, उन्हें वित्त विभाग के अधिकारियों ने बड़ी चालाकी के साथ खत्म करवाने का निर्णय करवा दिया। इससे बेरोजगारी बढ़ेगी, सरकार की मदद से विभागों में मिलने वाले रोजगार के साधन खत्म होंगे और आउटसोर्स जैसी सबसे बेकार व्यवस्था बढ़ेगी। कर्मचारी संगठनों के प्रमुखों ने उक्त निर्णय पर पुन: विचार करने की मांग की और साथ कहा कि जितने पद खत्म करने का निर्णय लिया, उससे दो गुना नियमित पद सृजित किए जाए।
    सरकार के निर्णय का बड़ा असर पडऩे वाला है। नियमित पद भी स्थाई व अस्थाई में बंटे होते हैं, इस श्रेणी के अस्थाई पदों को स्थाई में बदला जाएगा। लाभ होगा। कार्यभारित व आकस्मिकता स्थापना के के पदों को खत्म किया जाएगा, नई भर्ती नहीं होगी। इससे नुकसान होगा। लेकिन इसके तहत काम करने वाले किसी कर्मचारी का निधन होता है तो उनके परिवार के सदस्यों को अनुकंपा नियुक्ति मिलेगी। इससे लाभ होगा। स्थाईकर्मी व स्थाई वर्गीकृत श्रेणी के सभी कार्मिकों के पदों को सेवानिवृत्ति के साथ ही खत्म किया जाएगा, नई भर्ती नहीं होंगी। बड़ा नुकसान होगा। मप्र अर्थ स्थायी सेवा नियम, मप्र शासकीय सेवक (अस्थायी -अर्धस्थायी) नियम 1960 एवं वित्त विभाग द्वारा अस्थायी पदों को लेकर निरंतरता संबंधी दिशा-निर्देश खत्म माने जाएंगे। इससे कर्मचारियों की न्यायिक लड़ाई प्रभावित होगी।
    सरकार की नीति कर्मचारी विरोधी
    कर्मचारी संगठनों का कहना है कि सरकार की नीति कर्मचारी विरोधी है। मप्र कर्मचारी मंच के अध्यक्ष अशोक पांडेय का कहना है कि जिन वरिष्ठ अधिकारियों पर निचले कर्मचारियों के संरक्षण का जिम्मा है, वे मनमर्जी के निर्णय करवा रहे हैं। कर्मचारियों से जुड़े फैसले लेने से पहले पदाधिकारियों से राय भी नहीं ली जा रही। लंबे समय से हजारों दैवेभो, स्थायीकर्मी न्याय की लड़ाई लड़ रहें, उन्हें सुने बगैर पद ही खत्म करना, यह तानाशाही से कम नहीं है। मप्र संविदा अधिकारी, कर्मचारी संघ के अध्यक्ष रमेश राठौर का कहना है कि प्रदेशभर में संविदा कर्मी, नियमित पदों का काम कर रहे हैं। विभागों में पद भी खाली हैं, तब भी संविदा को नियमित नहीं किया जा रहा। वर्षों से बने पदों को खत्म करने का न निर्णय ठीक नहीं है। वरिष्ठ कर्मचारी नेता अनिल बाजपेयी का कहना है कि आउटसोर्स व्यवस्था को पहले खत्म करना था। इसमें कई एजेंसियां कर्मियों का शोषण कर रही हैं। तय मानदेय नहीं देते। विरोध करने पर हटा देते हैं। युवाओं के साथ यह खिलवाड़ है, जिसे खत्म होना चाहिए। कर्मचारी कल्याण आयोग के पूर्व सदस्य वीरेंद्र खोंगल का कहना है कि आउटसोर्स व्यवस्था में युवाओं को 12 से 18 हजार रुपए मिलते हैं, अवकाश के समय कटौती हो जाती है। इतनी कम राशि में कोई भी व्यक्ति शिक्षित, स्वस्थ्य और विकसित परिवार नहीं बना सकता।

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