
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में सरकार भले ही आधुनिक संचार तकनीक का उपयोग हर काम में करना चाहती है, लेकिन इस मामले में कर्मचारियों व अफसरों की लापरवाही भारी पड़ रही है। इसकी वजह है प्रदेश के दूरदराज के ऐसे ढाई हजार गांव अब भी हैं जिन्हें दूरसंचार की तकनीक से जुड़ने का अब भी इंतजार बना हुआ है। खास बात यह है कि इन गांवों में अब तक मोबाइल और लैंडलाइन कनेक्शन तक की सुविधा शुरू नहीं हो सकी है।
इस वजह से राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे उस दावे की हवा निकल जाती है जिसमें कहा गया है कि हर गांव तक योजना की जानकारी आसानी से मिल रही हैै। यह खुलासा खुद केन्द्र की एक रिपोर्ट में किया गया है। उसमें बताया गया है कि मप्र में सिर्फ उज्जैन जिला ही ऐसा है जहां, पर हर गांव तक नेटवर्क की सुविधा उपलब्ध कराई जा सकी है। उसके अलाव प्रदेश के शेष 51 जिलों में 2612 गांव ऐसे हैं जहां पर बीते साल की समाप्ती तक मोबाइल टावर और लैंडलाइन की सुविधा नहीं पहुंच चुकी है। इनमें इस सुविधा से वंचित सर्वाधिक गांव वे हैं जो आदिवासी अंचलों के तहत आते हैं और जो जंगली क्षेत्रों में स्थित हैं। हालांकि इसकी जो वजहें बताई जा रही हैं उसमें कहा जा रहा है कि यह गांव बेहद घने जंगली इलाकों में हैं, जहां पर नेटवर्क पहुंचाने के लिए लगतार कई सालों से बीएसएनएल और निजी कंपनियां प्रयास कर रही हैं लेकिन, अनुमति के अभाव में उनके प्रोजेक्ट अटके हुए हैं। इधर वाइल्डलाइफ बोर्ड बैठक में भी वन सीमा के अंदर स्थित गांवों तक इंटरनेट और मोबाइल कनेक्टिविटी बढ़ाने के प्रस्ताव पर सहमति दी जा चुकी है। अधिकारियों का कहना है कि पर्यावरण और रेडिएशन फैलने के खतरे को देखते हुए करीब 500 से ज्यादा गांवों में टावर लगाने के लिए क्लीयरेंस नहीं मिल पा रहा है। यह मामले कलेक्टरों के पास पास लंबित है।
ऑपरेटर सरकार से जता चुके हैं आपत्ति
बीते सालों में अनुमतियां न मिलने को लेकर दूरसंचार ऑपरेटर राज्य सरकार से कई बार आपत्तियां दर्ज करा चुके हैं। इनमें कहा गया है कि प्रशासन स्तर पर उन्हें अनुमतियां नहीं दी जा रही हैं, तो वहीं कई जगहों पर ग्रामीणों द्वारा भी टावर लगाने का विरोध किया जा रहा है। आपत्ति दर्ज कराने वाले ऑपरेटरों में बीएसएनएल और जिओ सबसे प्रमुख हैं। हालांकि मुख्य सचिव द्वारा बीएसएनएल को राहत देते हुए उसे एक एक दर्जन से अधिक संवेदनशील इलाकों में टावर लगाने की अनुमति दी है लेकिन फाइबर ऑप्टिकल लाइन बिछाने में अनुमति का मामला अब तक वन विभाग में अटका हुआ है।
पांच जिलों के गांवों में सर्वाधिक समस्या
केंद्रीय संचार विभाग की रिपोर्ट के अनुसार मप्र के करीब 10 से अधिक जिलों के गांवों में मोबाइल कनेक्टिविटी की कमी है। इनमेंं खासतौर से बालाघाट, डिंडोरी, छिंदवाड़ा और बैतूल जिले के गांव शामिल हैं। इन चार जिलों में 500 से अधिक गांवों तक नेटवर्क अब तक नहीं पहुंचा है। इसकी वजह से राज्य और केंद्र सरकार की योजनाएं भी प्रभावित हो रही है। यही नहीं इन गांवों के लोगों को भी कई तरह की असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
यह है स्थिति
प्रदेश में 15 महीने की नाथ सरकार में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए उठाए गए कदमों की वजह से 15 हजार गांवों तक मोबाइल नेटवर्क की पहुंच में तेजी से वृद्धि हुई थी। इसके लिए सरकार द्वारा पॉलसी में बदलाव करते हुए कलेक्टरों को मोबाइल टॉवर लगाने की अनुमति का अधिकार दिया गया था। केंद्र सरकार ने 2020 तक प्रत्येक गांव तक मोबाइल नेटवर्क पहुंचाने का लक्ष्य दिया था। इसके तहत राज्य सरकार ने एक साल में 6255 नए मोबाइल टॉवर लगाने क लक्ष्य तय किया था, जिसकी वजह से ही प्रदेश की 12 हजार से अधिक ग्राम पंचायतों को इंटरनेट से जोड़ा जा सका है। इसके अलावा 11 हजार पंचायतों में ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने का काम भी किया जा रहा है।