
- आधा दर्जन आईएफएस अफसरों की चल रही है लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू में जांच
भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। जैसा नाम वैसा ही काम चल रहा है सूबे के जंगल महकमे में। इसकी वजह से प्रदेश में दागी और घपलों घोटालों के आरोपी आईएफएस अफसरों की विभाग में पौ बारह बनी हुई है। विभाग के आधा दर्जन से अधिक आईएफएस अफसर लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू की जांच का सामना कर रहे हैं, इसके बाद भी विभाग की कार्यप्रणाली में सुधार होता नहीं दिख रहा है। विधानसभा में दी गई जानकारी के अनुसार आईएफएस अफसर प्रशांत कुमार सिंह, मीना मिश्रा, गौरव चौधरी और अनुराग कुमार के खिलाफ लोकायुक्त की जांच जांच चल रही है, इसके बाद भी उन पर आरोप लगने का सिलसिला बंद ही नहीं हो रहा है। इनमें टीकमगढ़ के प्रभारी डीएफओ रहे और सबसे विवादित अफसर अनुराग कुमार चैन लिंक और बायरबेड खरीदी में और उत्तर शहडोल डीएफओ गौरव चौधरी वन-धन योजना और तेंदूपत्ता लाभांश की राशि से वृक्षारोपण कराए जाने के आरोप लग रहे हैं। खास बात यह है कि छतरपुर के डीएफओ अनुराग कुमार पर यह आरोप उन पर तब लगा जब उन्हें महज डेढ़ महीने के लिए टीकमगढ़ का प्रभारी डीएफओ बनाया गया था। उनके द्वारा बगैर भौतिक सत्यापन कराए ही एसडीओ के कहने पर फर्म को भुगतान कर दिया गया था। मामले की शिकायत पर एक महिला आईएफएस अफसर द्वारा जब इस मामले की जांच की गई तो उसमें गड़बड़ी की शिकायत सही पाई गई। मामले की जांच रिपोर्ट उसके बाद प्रमुख सचिव वन अशोक वर्णवाल के पास भेज दी गई थी , लेकिन लंबे समय बाद कार्रवाई करना तो दूर इस मामले में दोषी डीएफओ को नोटिस तक जारी नहीं किया जा रहा है। इसी तरह का दूसरा मामला इंदौर में भी सामने आया था, वहां पर भी चैनलिंक वायर की खरीदी की गई थी। जिस पर तत्काल एक्शन लेते हुए महिला डीएफओ को आरोप पत्र तक जारी किए जा चुके हैं। खास बात यह है कि इस तरीके की खरीदी पूरे प्रदेश भर में की गई है। इसमें भी अहम बात यह है कि सप्लाई करने वाली फर्म इंदौर और मंडला जिले की हैं। दोनों फर्म के संचालक सत्ताधारी दल के प्रभावशाली नेताओं के बेहद खास है। इंदौर की फर्म द्वारा खंडवा, हरदा, इंदौर, दमोह, सागर, सहित एक दर्जन जिले में आॅर्डर में निर्धारित मापदंडों की अनदेखी करते हुए चैन लिंक वायर की सप्लाई की गई है। इसी तरह सीधी में पदस्थापना के दौरान लोकायुक्त की जांच का सामना करने वाले उत्तर शहडोल के डीएफओ गौरव चौधरी एक बार फिर आरोपों में घिरे हैं।
उनके द्वारा तय प्रक्रिया की अनदेखी करते हुए सीधे फर्म को भुगतान कर दिया गया। प्रधानमंत्री वन धन विकास योजना के अंतर्गत स्व सहायता समूह का गठन किया गया था। इस योजना के अंतर्गत कोई भी भुगतान इसी समूह के माध्यम से किया जाना था ,किंतु गौरव चौधरी ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए रेंजरों के जरिए मैकल ट्रेडिशनल ऑर्गेनिक फार्मर शहडोल और केके मेमोरियल समिति शाहपुरा को सीधे भुगतान कर दिया। इसी प्रकार तेंदूपत्ता लाभांश राशि और कराए गए वृक्षारोपण का भुगतान भी समितियों के माध्यम से न कराकर रेंजर के माध्यम से करा दिया गया।
हर साल की जाती है चैन लिंक वायर की खरीदी
वन विभाग द्वारा हर साल दो से तीन करोड़ रुपए की चैन लिंक वायर की खरीदी की जाती है। इसकी सप्लाई के लिए निजी फर्मे के संचालक प्रभावशाली नेताओं के माध्यम से संबधित डीएफओ से सांठगांठ कर उसकी सप्लाई की शर्त ऐसी तय करवाते हैं, जिससे की उन्हें ही सप्लाई का काम मिल सके। इसके बाद भी सप्लायर द्वारा तय मापदंडों की अनदेखी की जाती है। इस खेल में डीएफओ और एसडीओ शामिल रहते हैं। खास बात यह है कि अधिकारी खुद की जगह इसका सत्यापन रेंजरों से कराते हैं , जबकि उन्हें पता ही नहीं होता है कि संबंधित फर्म का आर्डर क्या था और सप्लाई क्या हुई? यह पूरा खेल कमीशन का होता है। टीकमगढ़ का मामला सामने आने की वजह है कर्मचरी संगठन के एक पदाधिकारी द्वारा मामले की शिकायत की जाना।
ई-पेमेंट की जगह कर दिया नकद भुगतान
भुगतान को लेकर लघु वनोपज संघ के प्रबंध संचालक पुष्कर सिंह ने 27 सितंबर 2021 को निर्देश जारी किए थे। जिसमें कहा गया था कि अधोसंरचना एवं वन विकास मद से कराए गए कार्यों का भुगतान ई-पेमेंट से किए जाएं। इस निर्देश में प्रबंध संचालक द्वारा साफ तौर पर उल्लेख किया गया था कि यह देखने में आया है कि कुछ जिला यूनियन निर्धारित प्रक्रिया का पालन न करते हुए नगद भुगतान कर रहे है। यह अनुचित है एवं वित्तीय अनियमितता की श्रेणी में आता है।