चुनाव में पार्टी के लिए बन सकते हैं संकट

भोपाल/चिन्मय दीक्षित/बिच्छू डॉट कॉम। मिशन 2023 को फतह करने की राह में भाजपा को अपनों का भी डर सता रहा है। पार्टी के कई पूर्व विधायक, पूर्व सांसद और कुछ वर्तमान भी जीत की राह में स्पीड ब्रेकर बन रहे हैं। हालांकि इनको साधने के लिए पार्टी कई प्रयास कर चुकी है। कुछ नेता तो पार्टी के साथ आ खड़े हुए हैं, वहीं कई राह में रोड़ा बन कर अभी भी खड़े हैं।
प्रदेश में विरोध की जो तस्वीर देखने को मिल रही है उससे भाजपा को लगभग हर अंचल में ऐसे लोगों का डैमेज कंट्रोल करना होगा, जो पिछले चुनाव तक पार्टी को चुनाव जिताने में अग्रिम भूमिका निभाते रहे हैं। इनमें से कई तो विधायक या सांसद भी रह चुके हैं। गौरतलब है की तीन माह में भाजपा के कई अपनों ने दूरियां बनाई हैं। इन दूरियों को खत्म करने भाजपा ने दिग्गजों को मैदान में उतारा है, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी है। यह भाजपा के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। पार्टी से नाता तोड़ चुके नेताओं से जुड़े समर्थक जिनसे अब भी उनके पुराने संबंध बरकरार हैं। अब भाजपा ऐसे कार्यकर्ताओं की घेराबंदी करने की तैयारी में है। इसके लिए वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई है। ये नेता घर-घर जाकर इन कार्यकर्ताओं के साथ-साथ अभी भी नाराज चल रहे नेताओं को मनाने का काम करेंगे।
ये नेता बन सकते हैं परेशानी का सबब
वर्तमान समय में आधा दर्जन से अधिक नेता भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं। सागर के पूर्व सांसद लक्ष्मीनारायण यादव काफी दिनों से पार्टी से नाराज चल रहे हैं। पिछले दिनों उनके पुत्र सुधीर यादव भाजपा छोड़ चुके हैं और उनकी पिता के साथ पीसीसी चीफ कमलनाथ से मुलाकात की एक तस्वीर भी सामने आई है। जानकार मान रहे हैं कि पूर्व सांसद का अभी भी यादव सहित ओबीसी वोट बैंक में प्रभाव है, जो भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजा सकते हैं। नर्मदापुरम के कद्दावर नेता गिरिजाशंकर शर्मा ने भी भाजपा को अलविदा कहा है। वे यहां से दो बार भाजपा के टिकट पर विधायक रहे। पिछले दो बार से उनके भाई सीताशरन शर्मा विधायक हैं। शर्मा पार्टी द्वारा उपेक्षा से व्यथित होकर कांग्रेस में गए हैं। कहा जा रहा है गिरिजाशंकर शर्मा पुराने नेता हैं, जिससे उनकी पूरे जिले ही नहीं अंचल के दूसरी विधानसभा क्षेत्रों में भी पकड़ है। यदि भाई सीताशरन शर्मा को भाजपा टिकट नहीं देती है, तो वे खिलाफत करते नजर आएंगे। भारतीय जनता पार्टी के लिए मालवा क्षेत्र में कभी कद्दावर नेता रहे पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत भी भाजपा का साथ छोड़ चुके हैं। कहा जाता है कि शेखावत के साथ आज भी कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग साथ में है, जो अब भी भाजपा कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहा है।
सतना जिले की एक मात्र आरक्षित सीट रैगांव वर्तमान में कांग्रेस के पास है। यह सीट पूर्व मंत्री जुगुल किशोर बागरी की मानी जाती थी। यहां उनके बाद परिजनों का अभी भी वर्चस्व है। पिछला उपचुनाव कांग्रेस के जीतने के बाद इस बार भाजपा रैगांव को फिर से अपने नाम करना चाहती है। लेकिन उसके सामने सबसे बड़ा संकट इसलिए है कि स्व. बागरी के पुत्र देवराज बागरी अब कांग्रेस का दामन थाम चुके है। इसलिए भाजपा के सामने समस्या यह है कि वह अपनी सीट की वापस लेने के लिए उसे यहां देवराज बागरी और उनसे जुड़े उनसे जुड़े उन कार्यकर्ताओं पर नजर बनानी पड़ेगी, जो अब भी भाजपा के कार्यकर्ता के रुप में काम कर रहे हैं। चंबल क्षेत्र के कोलारस से विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी ने भी भाजपा को अलविदा कह दिया है। उन्हें कांग्रेस मैदान में उतार सकती है। रघुवंशी मौजूदा विधायक हैं। और यह भाजपा के लिए बड़ा झटका माना जा सकता है कि उन्होंने चुनाव से पहले तब पार्टी से नाता तोड़ दिया, जब उनके विधानसभा क्षेत्र के लिए प्रत्याशी भी तय नहीं किया गया। पिछले दिनों विधायक पद से इस्तीफा देने वाले नारायण त्रिपाठी अब भाजपा से नाता तोड़ चुके हैं और दावा कर रहे हैं कि वे विंध्य में भाजपा की कमर तोड़ देंगे।
हालांकि पिछले दो साल से भाजपा से दूरी बनाए रखने वाले त्रिपाठी को लेकर भाजपा पहले से डैमेज कंट्रोल का प्लान बना चुकी है। छतरपुर जिले के पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष पुष्पेंद्र प्रताप सिंह भी बगाबती मूड में है, क्योंकि वे अपनी पत्नी पूर्व नपा अध्यक्ष अर्चना सिंह के लिए टिकट मांग रहे थे, लेकिन भाजपा ने वहां से पूर्व मंत्री लालिता यादव को मैदान में उतार दिया। भाजपा पुष्पेन्द्र सिंह को मनाने की कोशिश कर रही है, क्योंकि जिस तरह से पुष्पेंद्र के समर्थकों ने टिकट नहीं मिलने के बाद ताकत का प्रदर्शन किया था।