
- पद निर्धारण में शहर की छवि बनाने की अनदेखी
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के जिन दो शहरों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू की गई है उनमें आला अफसरों की बल्ले-बल्ले रहने वाली है। इसकी वजह है उनके लिए किया गया पदों का निर्धारण। अब तक इन शहरों में गिनती के ही आला अफसर पदस्थ होते थे लेकिन, अब इनकी संख्या कई गुना बढ़ा दी गई है। इसके उलट पद निर्धारण में इन दोनों ही शहरों की बाहरी लोगों में छवि बनने और बिगड़ने का ध्यान न रखकर गंभीर चूक की गई है। इसकी वजह है यातायात शाखा में डीएसपी के पदों में वृद्धि करने की जगह उन्हें और कम कर दिया जाना।
यह स्थिति तब है, जब इंदौर में वाहनों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है तो भोपाल में लगातार होने वाले धरना-प्रदर्शन व वीआईपी मूवमेंट बने रहते हैं। यही वजह है कि पूर्व में इन वजहोंं से इन दोनों ही शहरों में स्वीकृत पदों की तुलना में अतिरिक्त डीएसपी पदस्थ करने पड़े थे। आयुक्त प्रणाली लागू होने के बाद दोनों ही शहरों में आईपीएस और राज्य पुलिस सेवा के वरिष्ठ अफसरों के लिए पूर्व से स्वीकृत पदों की तुलना में बेहद अधिक पदों का निर्धारण कर दिया गया है। इसकी वजह से अब इन दोनों ही शहरों में पहले से स्वीकृत आइपीएस के पांच पदों की तुलना में अब 11 पदों का निर्धारण किया गया है। इसकी वजह से राजधानी और इंदौर में इस सेवा के अफसरों को पदस्थ होने के अधिक मौके मिलेगें। इनमें डीआईजी और एसपी स्तर के अफसर शामिल हैं। इसी तरह से एएसपी के पदों की संख्या भी दोगुनी कर दी गई है। उधर, कानून व्यवस्था के लिए पदस्थ किए जाने वाले डीएसपी के पदों में भी एक दर्जन की उल्लेखनीय वृद्धि की गई है। इसके उलट यातायात में पहले से स्वीकृत डीएसपी के 5 पदों में से एक कम कर दिया गया है, जबकि उनके पदों में वृद्धि की जरुरत लंबे समय से महसूस की जा रही है। दरअसल भोपाल और इंदौर की सड़कों पर जिस तेजी से वाहनों की संख्या बढ़ी है और शहरी क्षेत्र का विस्तार हुआ है, उससे यातायात में डीएसपी और निरीक्षक स्तर के अफसरों की अधिक आवश्यकता है। दरअसल किसी भी शहर व पुलिस की छवि उस शहर की यातायात व्यवस्था से बनती और बिगड़ती है। पुलिस विभाग के आला अफसर भी मानते हैं कि शहर की पहचान यातायात पुलिस के चेहरे से बनती है। अगर कोई शहर से गुजरता है, तो उसे यह नहीं पता होता है कि उस शहर में कितने और किस तरह के अपराध होते हैं, लेकिन यातायात पुलिस पर हर किसी की नजर पड़ती है और उसी चेहरे से शहर की पहचान बनती है। भोपाल और इंदौर में यातायात में डीएसपी के पांच पद स्वीकृत थे। स्वीकृत पदों की तुलना में इंदौर में आठ और भोपाल में सात डीएसपी पदस्थ थे। भोपाल में वीआईवी मूवमेंट लगातार रहता है। राज्यपाल, मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री के एक साथ निकलने पर यातायात अफसरों की अधिक जरूरत होती है। भोपाल में धरना-प्रदर्शन भी नियमित तौर पर होते रहते हैं। कमोबेश यही स्थिति इंदौर की है। इंदौर में शहरी क्षेत्र बढ़ने और वाहनों की संख्या बढ़ने के कारण अतिरिक्त डीएसपी की मांग की गई थी। इंदौर में तीन और भोपाल में दो अतिरिक्त डीएसपी इन्हीं वजहों से भेजे गए थे। पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने के बाद यातायात में डीएसपी स्तर के अफसरों के पदों में कमी लाकर चार कर दिए हैं। यह स्थिति तब है, जब डीएसपी स्तर के अफसरों की संख्या बढ़ाई जानी थी, तब कम कर दिए गए हैं। यातायात में एएसपी स्तर के अफसरों की संख्या में इजाफा भी किया गया है। पहले यातायात में एएसपी का एक पद स्वीकृत था, जिसे बढ़ाकर दो कर दिया गया है। यह फामूर्ला दोनों शहरों के लिए लागू किया गया है। जब एसपी और एएसपी स्तर के अफसरों के पद बढ़ाए गए हैं, तब डीएसपी स्तर के अफसरों के पद कम क्यों किए गए हैं, यह सवाल खड़ा हो रहा है। सूत्रों की माने तो अफसरों से पदों का निर्धारण करने में चूक हुई है। सड़कों पर लगातार होने वाले हादसों और सड़क हादसों में होने वाली मौतों को कम करने को लेकर सुप्रीमकोर्ट भी सख्त है। हादसे कम करने के लिए सड़क पर अफसरों की दरकार होगी। नगरीय क्षेत्र में आयुक्त प्रणाली लागू होने के बाद देहात क्षेत्र का हिस्सा भी दोनों जिलों में हैं। देहात के लिए अलग यातायात बल की जरूरत होगी। देहात क्षेत्र में यातायात में डीएसपी स्तर के अफसरों को तैनाती भी नहीं की गई है।
इस तरह से की गई पदों में वृद्धि
दोनों शहरों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने के बाद आला अफसरों के पद बढ़ाए गए हैं। यानी डीआईजी स्तर के अधिकारी (एडीशनल कमिश्नर) के पद एक से दो किए गए हैं। एसपी स्तर के अफसरों (डिप्टी पुलिस कमिश्नर) के तीन पद थे, उन्हें बढ़ाकर आठ कर दिया गया है। एएसपी स्तर के अफसरों के छह पद थे, उन्हें बढ़ाकर 12 किए गए हैं। एसीपी स्तर के अफसरों के पद भी बढ़ाए गए हैं, लेकिन यातायात में डीएसपी के पद कम कर दिए गए हैं।